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मुहूत्र्त विश्वोत्पादक काल भगवान के त्रुटि आदि कल्पान्त अनन्त अवयवों में एक महत्वपूर्ण अंग है। जिसके आधार पर ही विश्व के मानव समाज अपने-अपने कत्र्तव्य करते रहते हैं, तथा स्व-स्व प्रारब्ध और पुरुषार्थ के अनुसार उसका फल प्राप्त करते हैं। मानव के हृदय में प्रतिदिन नई भावनाएँ एवं कल्पनाएँ जागृत होती रहती हैं, वह उनकी परिपूर्ति के लिए सतत प्रयत्नशील रहता है। कभी वह सिद्धार्थ हो जाता है, कभी नहीं भी।
यह ’सरलमुहूत्र्तबोध’ का लेखन ज्योतिष के आर्ष ग्रन्थों की सहायता से ही क्रियान्वित हो सका है यह पुस्तक उन छात्रों को ध्यान में रखकर बनाया गया है जो मुहूत्र्त के बारे में सर्वथा अनभिज्ञ हैं। उनके लिए सरल रीति से मुहूत्र्तों का बोध कराया गया है। आशा है कि इससे छात्रों को समुचित लाभ होगा।