गणना या फलादेश - दोनों में किसका महत्व अधिक
By: Future Point | 26-Jun-2019
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ज्योतिष विद्या का मूल वेद है। समस्त शास्त्रों में ज्योतिष शास्त्र को वेदों का नेत्र कहा गया है। संपूर्ण ज्योतिष विद्या फलित और गणित दो विभागों पर आधारित है। इसके तीन स्कंध है। जिसमें सिद्धांत, संहिता और होरा ज्योतिष है। सिद्धांत ज्योतिष में काल गणना, गणितीय गणना, खगोलीय ग्रह स्थिति का निर्धारण किया जाता है। संहिता ज्योतिष के अंतर्गत व्यक्तिगत फलादेश न करके समूह, राष्ट्र, देश, प्रदेश, प्राकृतिक आपदाओं, कॄषि, भूकंप आदि का अध्ययन किया जाता है। आज के समय में जिसका सबसे अधिक व्यवहारिक प्रयोग किया जाता है वह होरा ज्योतिष है। इस ज्योतिष स्कंध में व्यक्ति की जन्मपत्री के आधार पर जीवन की शुभ-अशुभ घटनाओं का विश्लेषण किया जाता है।
शास्त्रों में शिरोमणि - गणित
ज्योतिष शास्त्रों में गणित ज्योतिष के विषय में कहा गया है कि जिस प्रकार मोर के सिर पर शिखा, नाग के सिर पर मणि का महत्व है, उसी प्रकार वेद शास्त्रों में गणित का स्थान सर्वोपरी है। सरल शब्दों में फलित ज्योतिष और गणित ज्योतिष एक दूसरे के पूरक है। गणित विद्या और ज्योतिष विद्या के दूसरे के बिना निरर्थक साबित होते है। गणित ज्योतिष फलित ज्योतिष को मार्ग दिखाता है, और फलित ज्योतिष दिखाए गए मार्ग पर चलते हुए भविष्य का शुभ-अशुभ फलादेश करता है। गणितीय ज्योतिष में किसी भी प्रकार की त्रुटियां होने पर फलादेश में निश्चित रुप से गलतियां होने की संभावना बनती है। शुद्ध गणित के आधार पर किए गए फलादेश के निष्कर्ष सटिक और अचूक होते है।
गणित और फलित एक दूसरे के पूरक
फलित ज्योतिष पूर्ण रुप से सटिक भविष्यवाणियों पर आश्रित हैं, इसकी सफलता और प्रसिद्धि कुल मिलाकर सटिक भविष्यवाणियों पर निर्भर करती है। सटिक फलादेश, शुद्ध भविष्यवाणियों को ज्योतिष विद्या रुपी वट वॄक्ष का फल कहा जा सकता है। इसमें गणितीय ज्योतिष फूल का कार्य करता है। बिना फूल के फल का सृजन संभव नहीं है। ठीक इसी प्रकार गणित गणना त्रुटिरहित होने पर भविष्यवानियों में शुद्धता का प्रतिशत बढ़ जाता है।
एक फल तो दूसरा फूल
फलित ज्योतिष पर भविष्यवाणी रुपी फल की मिठास इस बात कर निर्भर करती है कि उसकी गणना कितनी सही थी। यदि वैदिक ज्योतिष से फलित ज्योतिष को अलग कर दिया जाए तो इसका महत्व, इसकी उपयोगिता और इसका अर्थ लगभग समाप्त हो जाएगी। ज्योतिष शास्त्र में फलादेश करने के लिए अनेक गणितीय विधियों का प्रयोग किया जाता है। जिसमें विभिन्न प्रकार की दशाएं- विशोंतरी दशा, योगिनी दशा, चर दशा, जैमिनी दशा, गोचर, ताजिक और नक्षत्र आधारित ज्योतिष गणित शामिल है। इसमें सभी पदवतियों की गणना करने की विधियां एक दूसरे से विपरीत है, तथा इनकी गणना से आने वाले परिणाम भी अलग अलग ही आते हैं। जैसे - पाराशरी ज्योतिष से आयु गणना करने और जैमिनी ज्योतिष से आयु गणना करने पर परिणाम अलग अलग आते हैं।
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फलित ज्योतीष - शोध का बीज
ज्योतिष विद्या ग्यान और अनुभव आधारित विद्या है। योग्य ज्योतिषी अथक, निरंतर प्रयास कर ज्योतिष सागर से सटिक फलादेश रुपी रत्न प्राप्त करने में सफल होता है। फलकथन में ज्योतिषीय सूत्रों के साथ साथ अनुभव और ग्यान का भी महत्व है। अनुभव के साथ साथ फलकथन की क्षमता में उत्तरोतर वृद्धि होती है। दशकों प्रयास करने पर भी यह नहीं कहा जा सकता है कि कोई ज्योतिषी सभी फलकथन पूर्ण रुप से सत्य नहीं कर पाता है, फलकथन का सटिक होना, बहुत हद तक ईश्वरीय कॄपया पर भी आधारित है। फिर भी ज्योतिषी अनुभव, ग्यान, अध्ययन और शोध आधारित विश्लेषण से फलकथन में सत्यता के अधिक से अधिक निकट होने का प्रयास अवश्य करता है।
इस विषय में किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है कि फलकथन में सत्यता का प्रतिशत बढ़ने से ज्योतिषी को प्रसन्नता एवं आत्मविश्वास वृद्धि अवश्य होती है। यहां हमें कदापि यह नहीं भूलना चाहिए कि त्रुटि ग्यान का पहली सीढ़ी है। त्रुटियों से ही व्यक्ति को बेहतर करने की सीख मिलती है। एक बार गलत करने पर व्यक्ति दूसरी बार सही करने का प्रयास करता है। ज्योतिष विद्या के क्षेत्र में आज हमारे द्वारा किया गया अधूरा शोध भी आने वाली पीढ़ियों के लिए "शोध बीज" का कार्य करेगा। यह आने वाली पीढ़ियों के लिए मनन, चिंतन और दिशा निर्देश के रुप में कार्य करेगा। ज्योतिष के क्षेत्र में शोध कार्य में सफलता और असफलता मिलना उतना आवश्यक नहीं है जितना यह आवश्यक है कि इस दिशा में कार्य प्रारम्भ भी हुआ या नहीं। यहां शोध का उद्देश्य और प्रयास महत्वपूर्ण हैं, सफलता का स्तर बहुत अधिक महत्व नहीं रखता है। निरंतर प्रयास करते रहने से अन्तत: सफलता मिल ही जाती है।
गणित या फलित - दोनों में किसका अधिक महत्व ?
अक्सर यह देखने में आया है कि गणितीय ज्योतिषी फलित ज्योतिषियों की आलोचना करते हैं। जबकि गणना करने से अधिक मुश्किल कार्य फलकथन करना है। गणितीय ज्योतिष पूर्णत सूत्र और नियमों पर आधारित होता है, इसमें दो संख्या को दो संख्या में जमा करने पर परिणाम चार ही आएगा, इसलिए एक कुशल बालक भी दो में दो जमा कर सकता हैं, परन्तु फलकथन में सटिकता एवं शुद्धता प्राप्त करना अनेक दशकों की ग्यान, अनुभव और अनुसंधान आधारित प्रयास करने के बाद भी कई बार प्राप्त नहीं हो पाता है। एक सही फलकथन करने के लिए एक फलित ज्योतिषी को संघर्ष की अनेक परीक्षाओं से होकर गुजरना पड़ता है। जिस प्रकार किसी विवाहित स्त्री का जीवन संतान उत्पत्ति के बाद ही पूर्ण होता हैं ठीक इसी प्रकार एक फलित ज्योतिषी की योग्यता भी शुद्ध फलकथन के बाद ही तय होती है। गणतीय ज्योतिष करने की अपेक्षा फलित ज्योतिष करना अधिक दुष्कर और साहस का कार्य है। इसमें अधिक श्रम और समय लगता है। अपने साहस की परीक्षा देने के लिए प्रत्येक ज्योतिषी को सदैव तैयार रहना चाहिए।
गणित मशीन आधारित हो सकता है - फलकथन नहीं
गणित करना बच्चों का काम हैं, यह कहना सही नहीं हैं परन्तु फिर भी कम प्रयास से भी बच्चे गणना करने में निपुण हो सकते हैं, इसके विपरीत फलित ज्योतिष करना विद्वान और ग्यानी व्यक्तियों का ही कार्य है। फलकथन में निपुणता प्राप्त करने के लिए गहन शोध, मनन, चिंतन के साथ साथ अनेकों कुंड्लियों का अध्ययन करने की प्रवॄत्ति होनी आवश्यक है। आज के कैलकुल्टर और कम्प्यूटर के युग में गणना कार्य सहज और सरल हो गया। लगभग त्रुटि रहित भी हो गया है। लम्बी से लम्बी गणना कम्प्यूटर से सैकेंडों में की जा सकती है, परन्तु अभी तक विग्यान ने फलकथन करने की कोई मशीन इजाद नहीं की है, आज भी विग्यान फलकथन के लिए पूर्णत ज्योतिषी पर भी निर्भर करता है।
सार - अनुभव में यह पाया गया है कि गणित ज्योतिषी में महारत रखने वाले विद्वान फलकथन करने से घबराते हैं, फलकथन की चुनौतियों को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। ज्योतिष विद्या में गणितीय गणना करने वाला व्यक्ति यदि फलकथन करना नहीं जानता है तो उसकी स्थिति उस स्थिति की भांति है जो संतान सुख चाहती है परन्तु प्रसव वेदना नहीं। वास्तव में गणित ज्योतिष और फलित ज्योतिष का साथ फूल और फल का साथ हैं। जिसमें एक के बिना दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं है।