गणेश चतुर्थी विशेष- महत्व, कथा एवं पूजा विधि। | Future Point

गणेश चतुर्थी विशेष- महत्व, कथा एवं पूजा विधि।

By: Future Point | 26-Aug-2019
Views : 6442गणेश चतुर्थी विशेष- महत्व, कथा एवं पूजा विधि।

गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश की जयंती के रूप में मनाया जाता है, गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश जी को ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है. ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश जी का जन्म भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष के दौरान हुआ था, वर्तमान में अंग्रेजी कैलेंडर में अगस्त या सितंबर के महीने में गणेश चतुर्थी का दिन आता है. गणेश चतुर्थी का त्योहार, गणेशोत्सव, अनंत चतुर्दशी के 10 दिनों के बाद समाप्त होता है, जिसे गणेश विसर्जन दिवस के रूप में भी जाना जाता है और अनंत चतुर्दशी पर भक्त एक जुलूस निकाल कर भगवान गणेश की मूर्ति को जल में विसर्जित करते हैं, 10 दिन तक चलने वाला गणेश चतुर्थी का यह उत्सव इस वर्ष 2019 में 2 सितंबर को मनाया जाएगा, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से गणेश जी का उत्सव गणपति प्रतिमा की स्थापना कर उनकी पूजा से आरंभ होता है और लगातार दस दिनों तक घर में रखकर अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा की विदाई की जाती है और इस दिन ढोल नगाड़े बजाते हुए, नाचते गाते हुए गणेश प्रतिमा को विसर्जन के लिये ले जाया जाता है और विसर्जन के साथ ही गणेशोत्सव की समाप्ति होती है।

गणेश चतुर्थी का महत्‍व-

भादो मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश का इसी दिन जन्म हुआ था. भगवान गणेश जी का जन्म भाद्रपद के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को सोमवार के दिन मध्याह्न काल में, स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था. इसलिए मध्याह्न काल में ही भगवान गणेश की पूजा की जाती है, इसे बेहद शुभ समय माना जाता है. भारतीय संस्कृति में गणेश जी को विद्या-बुद्धि का प्रदाता, विघ्न-विनाशक, मंगलकारी कहा गया है. हर माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत किया जाता है. पर ये गणेश चतुर्थी व्रत इन सभी में सबसे उत्‍तम होता है।

भगवान गणेश जी से जुड़ी कथाएँ-

  • एक बार पार्वती जी स्नान करने के लिए जा रही थीं, उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक पुतला निर्मित कर उसमें प्राण फूंके और गृहरक्षा (घर की रक्षा) के लिए उसे द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया, ये द्वारपाल गणेश जी थे, गृह में प्रवेश के लिए आने वाले भगवान शिव जी को उन्होंने रोका तो शंकरजी ने रुष्ट होकर युद्ध में उनका मस्तक काट दिया, जब पार्वती जी को इसका पता चला तो वह दुःख के मारे विलाप करने लगीं और उनको प्रसन्न करने के लिए शिवजी ने गज(हाथी) का सर काटकर गणेश जी के धड़ पर जोड़ दिया, गज का सिर जुड़ने के कारण ही उनका नाम गजानन पड़ा।
  • एक अन्य कथा के अनुसार विवाह के बहुत दिनों बाद तक संतान न होने के कारण पार्वती जी ने श्रीकृष्ण के व्रत से गणेश जी को उत्पन्न किया, शनि ग्रह बालक गणेश को देखने आए और उनकी दृष्टि पड़ने से गणेश जी का सिर कटकर गिर गया, फिर विष्णु जी ने दुबारा उनके हाथी का सिर जोड़ दिया।
  • ऐसी मान्यता है कि एक बार परशुराम जी शिव-पार्वती जी के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत गए, उस समय शिव-पार्वती निद्रा में थे और गणेश जी बाहर पहरा दे रहे थे उन्होंने परशुराम जी को रोका इस पर विवाद हुआ और अंततः परशुराम जी ने अपने परशु से उनका एक दाँत काट डाला इसलिए गणेश जी ‘एकदन्त’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।

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गणेश चतुर्थी पूजन विधि-

  • गणेश चतुर्थी पर गणेश जी को विधिवत वस्त्र और उपनयन से सजा कर उचित आसन देकर विधिवत पूजन कर के स्थापित करते हैं।
  • मध्यान्ह काल में पूरे विधि विधान स गणेश पूजन किया जाता है।
  • इस दिन भक्त पूरे पांडाल को सजाते हैं। श्री गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए उनको गीत और संगीत के माध्यम से भजन का सुंदर प्रस्तुतीकरण किया जाता है, मंत्रों के मधुर उच्चारण से पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है, यह उत्सव 10 दिन चलता है फिर अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन कर देते हैं।

गणेश चतुर्थी पर्व तिथि व मुहूर्त 2019-

  • मध्याह्न गणेश पूजा – 11:05 से 13:36
  • चंद्र दर्शन से बचने का समय- 08:55 से 21:05 (2 सितंबर 2019)
  • चतुर्थी तिथि आरंभ- 04:56 (2 सितंबर 2019)
  • चतुर्थी तिथि समाप्त- 01:53 (3 सितंबर 2019)

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गणेश चतुर्थी पर विशेष सावधानी-

  • गणेश चतुर्थी पर चंद्र दर्शन बिल्कुल नही करना चाहिए वरना कलंक मिल सकता है।
  • इस पर्व पर चंद्र दर्शन करने से मिथ्या दोष लगता है, भगवान कृष्ण पर स्यमन्तक नामक बहुमूल्य मणि की चोरी का कलंक इस चंद्र दर्शन के कारण ही लगा था।

गणपति की स्थापना कैसे करें-

  • गणपति जी को लेने जाने से पहले स्नान आदि कर लें और नये या साफ कपड़े पहनें।
  • चांदी की थाली में स्वास्तिक बनाकर उसमें गणपति को विराजमान करके लाएं अगर चांदी का बर्तन नहीं है तो पीतल या तांबे का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
  • आप चाहें तो बड़ी मूर्ति को हाथों में लाकर भी विराजमान कर सकते हैं, भगवान गणेश जी की मूर्ति स्थापित करने के बाद उनकी विधिवत पूजा करें।
  • साथ ही लड्डू का भोग लगाएं और सुबह-शाम आरती करें।
  • आप जहां भगवान गणेश को रखने वाले हैं, उस जगह को रंगोली, फूल, आम के पत्ते और अन्य सामग्री से सजाएं।
  • साथ ही उनके आसन को भी हल्दी, कुमकुद, फूल आदि से सजा दें, ये सारी तैयारियां तैयारी गणेश को लाने से पहले ही कर लें।