इस बार कब है बसंत पंचमी? जानिए, इसकी पूजा विधि, सरस्वती मंत्र और महत्व के बारे में...
By: Future Point | 27-Jan-2020
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माघ मास की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी (Vasant Panchami) का त्योहार मनाया जाता है। कलाकारों, शिक्षकों, गायकों, लेखकों, व अध्ययन के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। इस दिन विद्या और वाणी की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है। इसे ऋतुराज यानी वसंत ऋतु के आगमन के तौर पर भी देखा जाता है। इस दिन को वर्ष का सबसे शुभ दिन माना जाता है। इसलिए नया कारोबार शुरु करने, विवाह, गृह प्रवेश, सोने चांदी की ख़रीदारी आदि के लिए यह सबसे उत्तम दिन है। आइए जानते हैं इस पर्व की तिथि, शुभ मुहूर्त, सरस्वती पूजा, धार्मिक और पौराणिक महत्व के बारे में...
पौराणिक संदर्भ
बसंत पंचमी का उल्लेख हमें कई धर्मग्रंथों में मिलता है। हिंदी और संस्कृत में इसे वंसत पंचमी (Vasant Panchmi 2020) और बसंत पंचमी (Basant Panchami 2020) दोनों तरह से लिखा जाता है। शास्त्रों में यह श्री पंचमी के नाम से उल्लिखित है। इन ग्रंथों में बसंत पंचमी की चर्चा अलग-अलग तरह से की गई है। कहा गया है कि माघ मास के पांचवे दिन प्राचीन भारत और नेपाल में एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती थी। यह वसंत पंचमी का त्योहार कहलाता था।
पुराणों, शास्त्रों और उपनिषदों में इसके धार्मिक महत्व पर विस्तार से चर्चा की गई है। उपनिषदों में वसंत को मां सरस्वती के जन्म से जोड़कर देखा गया है तो अनेक काव्यग्रंथों में इसे प्रेम की ऋतु के रूप में वर्णित किया गया है। ऋग्वेद में मां सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है...
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात् परम चेतना के रूप में “देवी सरस्वती हमारी बुद्धि, प्रज्ञा और सभी मनोवृत्तियों का संरक्षण करती हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार मां सरस्वती है जिनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव बहुत ही अद्भुत है।”
पुराणों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती को वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी आराधना की जाएगी। तभी से वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी के रूप में मां सरस्वती की भी पूजा की जाने लगी। मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2020) की तरह ही बसंत पंचमी के दिन भी पतंग उड़ाने का रिवाज़ है। मान्यता है कि पतंग उड़ाने की परंपरा हज़ारों वर्ष पूर्व चीन में शुरु हुई थी। वहां से फ़िर यह परंपरा कोरिया और जापान से होते हुए भारत पहुंची।
बसंत पंचमी 2020: मुहूर्त व तिथि (Vasant Panchami 2020 Date and time)
- पंचमी तिथि प्रारंभ: सुबह 10:45 बजे (29 जनवरी, 2020)
- पंचमी तिथि समाप्त: दोपहर 1:19 बजे (30 जनवरी, 2020)
- बसंत पंचमी पूजा मुहूर्त: सुबह 10:45 बजे से दोपहर 12:34 बजे तक
- पूजा मुहूर्त की कुल अवधि: 1 घंटा 49 मिनट
बसंत पंचमी का महत्व
बसंत पंचमी के दिन को मां सरस्वती के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि ब्रह्मा द्वारा देवी सरस्वती के जन्म के बाद ही धरती पर हरियाली और खुशहाली छाई।
इसके अलावा बसंत पंचमी का संबंध इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाओं से भी है। बसंत पंचमी हमें त्रेता युग से जोड़ता है। मान्यता है कि रावण द्वारा सीता हरण के बाद राम जिन-जिन स्थानों पर सीता की खोज में गएं, उनमें दंडकारण्य भी था। यहां पर शबरी नामक भीलनी (भील एक जाति है) रहती थी। राम जब उसकी कुटिया में प्रवेश करते हैं तो प्रेम पूर्वक शबरी राम को मीठे-मीठे बेर चख-चख कर खिलाती है। दंडकारण्य का वह क्षेत्र अब छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और ओडिशा में पड़ता है। आज भी वहां के वनवासी एक शिला की पूजा करते हैं जिसके बारे में मान्यता है कि श्रीराम जब शबरी से मिले तो इसी शिला पर बैठे थे। वह बसंत पंचमी का दिन था। उस स्थान पर शबरी माता का मंदिर भी है। इस घटना का उल्लेख बसंत पंचमी के कई लोकगीतों में भी मिलता है जिनमें इसे अलग-अलग तरह से प्रस्तुत किया गया है।
बसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान के शौर्य की भी याद दिलाता है। बसंत पंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान वीरगति को प्राप्त हुए थे। चंदबरदाई द्वारा लिखित पृथ्वीराज रासो के अनुसार पृथ्वीराज ने मोहम्मद गौरी को 16 बार पराजित किया था लेकिन उदारता दिखाते हुए हर बार ज़िंदा छोड़ दिया। पर जब दोनों के बीच 17वीं बार युद्ध होता है तो पृथ्वीराज हार जाते हैं। मोहम्मद गौरी उन्हें कैद कर अपने साथ अफ़गानिस्तान ले जाता है और उनकी आंखें फोड़ देता है लेकिन मृत्युदंड देने से पूर्व वह उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहता था।
पृथ्वीराज के कवि चंदबरदाई के परामर्श पर वह ऊंचे स्थान पर बैठ जाता है और तवे पर चोट मारकर बाण छोड़ने का संकेत देता है। इसी बीच चंदबरदाई निम्न पंक्तियां बोलकर पृथ्वीराज (जो अपनी आंखें खो चुके थे) को मोहम्मत गौरी के होने का संकेत देते हैं:
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।।
और इस बार चौहान नहीं चूके। तवे की चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर उन्होंने जो बाण छोड़ा, वह मोहम्मह ग़ौरी के सीने में जा लगा। इसके बाद मोहम्मद ग़ौरी और पृथ्वीराज चौहान एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर वीरगति को प्राप्त हुए।
परमार (पंवार) वंश के राजा भोज का जन्म भी बसंत पंचमी के दिन ही हुआ था। कहा जाता है कि उन्होंने अपने शासनकाल में कई मंदिरों का निर्माण करवाया था। अपने दरबार में बसंत पंचमी के अवसर पर वे एक बड़े उत्सव का आयोजन करते थे जिसमें पूरी प्रजा के लिए प्रतिभोज रखा जाता था। यह प्रतिभोज बसंत पंचमी के दिन से शुरु होकर अगले 40 दिन तक चलता था।
बसंत पंचमी 2020: सरस्वती पूजा
इस दिन सरस्वती पूजा (Saraswati Puja) करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि प्राचीन काल में मां बाप इस दिन बच्चों को पढ़ने के लिए गुरुकुल भेजा करते थे। इसलिए लेखन, कला, संगीत, गायन, अध्ययन और अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोगों के लिए यह दिन बेहद मायने रखता है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा करते वक्त इन बातों का ध्यान रखें:
- प्रात: काल जल्दी उठकर स्नान करें और केसरिया, श्वेत या पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
- मां सरस्वती की पूजा करने से पूर्व भगवान गणेश का ध्यान ज़रूर करें।
- स्कंदपुराण के अनुसार इस दिन सफेद पुष्प, चंदन, श्वेत वस्त्रादि अर्पित कर मां सरस्वती की पूजा की जाती है।
- संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोग अपने वाद्य यंत्रों की पूजा करें। यदि आप लेखन या अध्ययन के क्षेत्र से जुड़े हैं तो कलम, क़िताब, नोटबुक समेत अपनी समस्त विद्या समग्री की पूजा करें।
- मां सरस्वती को मोर पंख चढ़ाएं। उन्हें खीर या केसरिया भात का भोग लगाएं।
- सरस्वती वंदना कर मां सरस्वती का ध्यान करें।
- सरस्वती माता के नाम से इस मंत्र का 108 बार जाप करें:
ऊँ श्री सरस्वतयै नम:
- आप इस दिन सरस्वती मां के नाम से हवन भी करा सकते हैं।
- सरस्वती यंत्र (Saraswati Yantra), पुखराज (Pukhraj) आदि धारण करने के लिए यह उत्तम दिन है।
सरस्वती वंदना
सरस्वती या कुंदेंदु मां सरस्वती की सबसे प्रचलित स्तुति है। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करते समय इसका पाठ किया जाता है...
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥
अर्थ: विद्या और वाणी की देवी, भगवती सरस्वती कुंद के फूल, चंद्रमा और मोती के हार के समान श्वेत वर्ण की हैं। वे श्वेत वस्त्र धारण किए और हाथों में वीणा लिए हुए हैं। सफेद कमल उनका आसन है। ब्रह्मा, शिव, विष्णु आदि देवताओं द्वारा जो पूजित हैं, वह संपूर्ण जड़ता और अज्ञानता को दूर करने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करे।
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्॥
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥२॥
अर्थ: शुक्ल वर्ण वाली, संपूर्ण चराचर (जड़ और चेतन) में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार और चिंतन के सार रूप को धारण करने वाली, सभी भय से मुक्ति देने वाली, जड़ता और अज्ञान के अंधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक माला धारण किए हुए पद्मासन पर विराजमान, बुद्धि प्रदान करने वाली परमेश्वरी भगवती शारदा (देवी सरस्वती) की मैं वंदना करता/करती हूं।
बसंत पंचमी कथा: ऐसे हुआ था मां सरस्वती का जन्म
उपनिषदों में दी गई कथा के अनुसार भगवान शिव की आज्ञा से भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की कई चीज़ों, ख़ासकर मनुष्य योनि की रचना की। लेकिन उन्हें अपनी रचना में एक कमी नज़र आई। उन्हें लगा की इस संसार में बेहद उदासी है, हर तरफ़ मौन छाया हुआ है।
तब ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल का छिड़काव किया और भगवान विष्णु की स्तुति की। ब्राह्मा की स्तुति को सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए। ब्रह्मा जी ने उनसे अपनी समस्या बताई। तब भगवान विष्णु ने देवी दुर्गा का आह्वान किया। भगवान विष्णु के आह्वान पर देवी दुर्गा तुरंत प्रकट हुईं। तब ब्रह्मा और विष्णु ने देवी दुर्गा से इस संकट को दूर करने का निवेदन किया।
ब्रह्मा और विष्णु की बात सुनने के बाद मां दुर्गा के शरीर से श्वेत रंग का तेज उत्पन्न हुआ और मां दुर्गा श्वेत वस्त्र धारण किए हुए एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री में बदल गईं। इस स्त्री के एक हाथ में वीणा और दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं स्फटिक माला (Crystal Mala) थी। ब्रह्मा के आग्रह पर इस सुंदर देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे पृथ्वी की उदासी दूर हुई और सभी जीव जंतुओं को वाणी प्राप्त हुई। तब सभी देवताओं ने इस देवी को वाणी और संचार की देवी “सरस्वती” कहा। यह बसंत पंचमी का दिन था। इस कारण बसंत पंचमी को मां सरस्वती के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि देवी सरस्वती के जन्म की कथा अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग तरह से दी गई है।
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