अपरा एकादशी विशेष – महत्व एवं पूजा विधि ।
By: Future Point | 24-May-2019
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हिन्दू पंचांग के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है जैसे कि नाम से ही पता चलता है अपरा यानि कि अपार शुभ फल और अपार पुण्य प्रदान करने वाली एकादशी में सभी बड़े- बड़े पापों का नाश करने वाली है. अपरा एकादशी अपार धन और अपार ऐश्वर्य प्रदान करने वाली है. एकादशी व्रत प्रत्येक मास के दोनों पक्षों कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है, एकादशी व्रत सभी व्रतों में सबसे पावन और सभी व्रतों में सबसे उत्तम व्रत माना जाता है।
अपरा एकादशी व्रत का महत्व -
इस एकादशी व्रत को पुण्य फल देने वाला बताया गया है अतः इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के कीर्ति, पुण्य और धन में वृद्धि होती है और इस व्रत के पुण्य से ब्रह्म हत्या, असत्य भाषण, झूठा वेद पढ़ने से लगा हुआ पाप आदि नष्ट हो जाता है, इससे भूत योनी से भी मुक्ति मिल जाती है. अपरा एकादशी व्रत को करने से मनुष्य को तीनों पुष्करों में स्नान के समान, गंगा जी के तट पर पिण्ड दान के समान और कार्तिक मास के स्नान के समान, सूर्य-चंद्र ग्रहण में कुरुक्षेत्र में यज्ञ, दान एवं स्नान के पुण्य के समान फल की प्राप्ति होती है और इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है.
एकादशी व्रत के नियम –
- एकादशी व्रत के नियम तीन दिन के होते हैं, दशमी, एकादशी और द्वादशी, इन तीन दिनों में व्रती को चावल, लहसुन, प्याज और मसूर की दाल की दाल का सेवन नही करना चाहिए और इसके साथ ही मास व मदिरा का सेवन तो किसी भी व्यक्ति को नही करना चाहिए।
- पुराणों में एकादशी के व्रत के बारे में कहा गया है कि व्यक्ति को दशमी के दिन शाम में सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए. रात में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए.
- एकादशी के दिन सुबह उठकर, स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. पूजा में तुलसीदल, श्रीखंड चंदन, गंगाजल व फलों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए.
- व्रत रखने वाले को पूरे दिन परनिंदा, झूठ, छल-कपट से बचना चाहिए.
- जो लोग किसी कारण व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें भी एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिए.
- जो व्यक्ति एकादशी के दिन ‘विष्णुसहस्रनाम’ का पाठ करता है, उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है.
2019 में अपरा एकादशी तिथि व मुहूर्त -
इस वर्ष 2019 में अपरा एकादशी तिथि 30 मई को गुरुवार के दिन पड़ रही है।
पारण का समय – 31 मई दिन शुक्रवार को प्रातः 05:25 से 08:01 बजे तक
एकादशी तिथि आरंभ – 29 मई दिन बुधवार को दोपहर 15:21 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त – 30 मई दिन गुरुवार से शाम 16:38 बजे को ।
अपरा एकादशी की कथा -
पौराणिक कथाओं के अनुसार महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था. राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था. एक दिन मौका पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे शव को गाड़ दिया. अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी. मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती थी. एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे. इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना. ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया. राजा को प्रेत योनी से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा. द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया. एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया.
अपरा एकादशी व्रत की पूजा विधि -
- एकादशी के उपवास में भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है।
- एकादशी उपवास के लिये व्रती को दशमी तिथि से ही नियमों का पालन आरंभ कर देना चाहिये।
- दशमी तिथि को रात्रि के समय सात्विक अल्पाहार ग्रहण करना चाहिये और इसके साथ ही ब्रह्मचर्य का पालन बहुत आवश्यक होता है इसके अलावा व्रती को मन से वचन से और कर्म से शुद्ध आचरण रखना चाहिए।
- एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रियाओं से निवृत हो कर स्नानादि के पश्चात स्वच्छ होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिये।
- इसके पश्चात् भगवान विष्णु, भगवान श्री कृष्ण एवं बलराम की पूजा करनी चाहिये।
- एकादशी तिथि को जहां तक संभव हो निर्जला उपवास रखना चाहिये अन्यथा एक समय फलाहार तथा जल ग्रहण करना चाहिए।
- एकादशी तिथि को रात्रि में भगवान का जागरण करना चाहिये ।
- द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन करवा कर दान-दक्षिणा से संतुष्ट कर स्वयं आहार ग्रहण कर व्रत का पारण करना चाहिये।