यदि पितृ दोष है कुंडली में तो करें ये अचूक उपाय-
By: Future Point | 16-Mar-2020
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प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में पितृदोष सबसे बड़ा दोष माना गया है। इससे पीड़ित व्यक्ति का जीवन अत्यंत कष्टमय हो जाता है। जब परिवार के किसी पूर्वज की मृत्यु के पश्चात उसका सही तरह से अंतिम संस्कार संपन्न ना किया जाए, या जीवित अवस्था में उनकी कोई इच्छा अधूरी रह जाये तो उनकी आत्मा अपने घर और आगामी पीढ़ी के लोगों के बीच ही भटकती रहती है। मृत पूर्वजों की अतृप्त आत्मा ही परिवार के लोगों को कष्ट देकर अपनी इच्छा पूरी करने के लिए दबाव डालती है और यह कष्ट पितृदोष के रूप में जातक की कुंडली में उत्पन्न होता है। पितृ दोष’ का वह प्रभाव जो जातक के लिए निरंतर असफलतायें, परेशानियां तथा बाधाओं को उत्पन्न करता है| जातक को इस जन्म या पिछले जन्मों का परिणाम भोगना पड़ता है, अतः इसकी पहचान करना बहुत आवश्यक है, ताकि जातक द्वारा किये गए अधर्म का पता लग जाये तथा उपाय द्वारा इसे सुधारा जा सके, ‘पितृ दोष’ के अशुभ योग जातक की कुंडली में देखे जा सकते है|
नवग्रहों में सूर्य को स्पष्ट रूप से पूर्वजों का प्रतीक माना गया है। किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य को बुरे ग्रहों के साथ स्थित होने से या फिर बुरे ग्रहों की दृष्टि पड़ने से जो दोष लगता है, उसे पितृदोष कहते हैं। ज्योतिष के अनुसार कुंडली के नवम भाव को पूर्वजों का स्थान माना गया है। यह पिता का घर भी होता है, अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो यह सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी, लग्न और चन्द्रमा से नवम भाव, नवम भाव का मालिक ग्रह अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की परेशान रहता है, उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है, उसे आजीविका उपार्जन के लिए अत्यधिक संघर्ष करना पड़ता है, वह किसी न किसी प्रकार से मानसिक या शारीरिक रूप से अपंग होता है।
पितृदोष के लक्षण-
पितरों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही पितृदोष माना गया है। पितृ दोष जिन लोगों की कुंडली में होता है उन्हें धन अभाव से लेकर मानसिक क्लेश तक का सामना करना पड़ता है। उनकी तरक्की बाधित होती है। कई कार्यों में बाधाएं आती हैं। आये दिन घर में कलह होती है। जीवन एक उत्सव की जगह संघर्ष बन जाता है। रुपया पैसा होते हुए भी शांति और सुकून नहीं मिल पाता। शिक्षा में अनेक बाधाएं आती हैं, क्रोध अधिक आने से कई कार्य बिगड़ जाते हैं, परिवार में आये दिन कोई न कोई बीमार रहता है, आत्मबल में कमी रहती है| संतान होने में समस्याएं आती हैं, कई बार तो ऐसा देखा गया है कि संतान पैदा ही नहीं होती और यदि संतान हो जाए तो उनमें से कुछ अधिक समय तक जीवित नहीं रहती, और उनकी शादी होने में कई प्रकार की समस्याएं आती हैं, और घर-परिवार में किसी न किसी कारण झगड़ा होता रहता है, परिवार के सदस्यों में मनमुटाव की स्थिति बानी रहती है, पितृ दोष होने के कारण ऐसे लोगों को नौकरी और व्यापार में हमेशा परेशानियां बनी रहती हैं, और किसी न किसी रूप में धन की हानि होती रहती है,
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पितृदोष के कारण -
- जन्म कुण्डली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें या दसवें भाव में यदि सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है, इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है|
- सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ हो तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और भी अधिक वृद्धि हो जाती है|
- किसी जातक की कुंडली में लग्नेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है|
- जो ग्रह पितृ दोष बना रहे हैं यदि उन पर छठे, आठवें या बारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि या युति हो जाती है तब इस प्रभाव से व्यक्ति को वाहन दुर्घटना, चोट, ज्वर, नेत्र रोग, ऊपरी बाधा, तरक्की में रुकावट, बनते कामों में विघ्न, अपयश की प्राप्ति, धन हानि आदि अनिष्ट फलों के मिलने की संभावना रहती है|
- जन्म कुण्डली में दशम भाव का स्वामी छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में हो और इसका राहु के साथ दृष्टि संबंध या युति हो रहा हो तब भी पितृ दोष का योग बनता है|
- यदि जन्म कुंडली में आठवें या बारहवें भाव में गुरु व राहु का योग बन रहा हो तथा पंचम भाव में सूर्य-शनि या मंगल आदि क्रूर ग्रहों की स्थिति हो तब पितृ दोष के कारण संतान कष्ट या संतान से सुख में कमी आती है|
- बारहवें भाव का स्वामी लग्न में स्थित हो, अष्टम भाव का स्वामी पंचम भाव में हो और दशम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तब यह भी पितृदोष के कारण धन हानि या संतान के कारण कष्ट होता है|
पितृ दोष से बचने के अचूक उपाय-
- पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध करना चाहिए, और ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए, तथा प्रत्येक अमावस्या में ब्राह्मणों को भोजन सामग्री जिसमें आटा, फल, गुड़, शक्कर, सब्जी और दक्षिणा दान में दें, इससे पितृ दोष का प्रभाव कम होता है|
- किसी विद्वान ब्राह्मण को काले तिलों का दान करने मात्र से भी पितृ प्रसन्न हो जाते हैं|
- जन्मकुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तो जातक को घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजनों का फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर रोजाना उनकी पूजा स्तुति करनी चाहिए, उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है,
- पीपल के वृक्ष पर दोपहर के समय जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय परिजनों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगें|
- ब्राह्मणों को प्रतीकात्मक गोदान, गर्मी में पानी पिलाने के लिए कुंए खुदवाएं या राह चलते लोगों को शीतल जल पिलाने से भी पितृदोष से छुटकारा मिलता है।
- पितरों के नाम पर गरीब विद्यार्थियों की मदद करने तथा दिवंगत परिजनों के नाम से अस्पताल, मंदिर, विद्यालय, धर्मशाला आदि का निर्माण करवाने से भी अत्यंत लाभ मिलता है।
- स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर जरूरतमंदों अथवा गुणी ब्राह्मणों को भोजन कराए। भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं।
- प्रत्येक संक्रांति, अमावस्या और रविवार के दिन सूर्यदेव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगाजल और शुद्ध जल मिलाकर बीज मंत्र पढ़ते हुए तीन बार अर्ध्य दें, और “ऊँ पितृभ्य: नम:” मंत्र का जाप करें. उसके बाद पितृ सूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है|
- शाम के समय में दीपक जलाएं और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या पितृ स्तोत्र का पाठ करें, इससे भी पितृ दोष की शांति होती है,
- कुंडली में पितृदोष हो तो किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने से भी पितृदोष में लाभ मिलता है,
- विष्णु भगवान के मंत्र जाप, और श्रीमद्भागवत गीता का पाठ करने से भी पित्तरों को शांति मिलती है और दोष में कमी आती है|
- गायत्री मन्त्र का विधिवत पाठ करवाने से भी पितृ दोष से मुक्ति मिलती है|
- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य-राहु, सूर्य-शनि आदि योग के कारण पितृ दोष बन रहा हो, तब उसके लिए नारायण बलि, नाग बलि, गया में श्राद्ध, आश्विन कृष्ण पक्ष में पितरों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन तथा दानादि करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है|
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