Navratri 2024: नवरात्रि पर देवी पूजन की उत्तम विधि क्या है? वर्ष 2024 में चैत्र नवरात्र पूजन मुहूर्त
By: Acharya Rekha Kalpdev | 14-Mar-2024
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Navratri 2024: नवरात्र पर देवी पूजन शक्ति पूजन का प्रतीक है। 9 देवियों का पूजन व्यक्ति को सब दुखों से दूर रखता है और आराधक के घर में सुख-समृद्धि बनाए रखता है। देवी कृपा से हर कष्ट कटता है। रोग, शोक, दरिद्रता, बाधा और संकटों का नाश होता है और जीवन सुखमय होकर आन्नदित होता है। नवरात्रि शक्ति पूजन सनातन प्रेमियों के लिए बहुत खास रहता है। नवरात्र की नौ रात्रियों में 9 देवियों के अलग अलग स्वरुप की पूजा की जाती है। नवरात्रि पर देवी के भक्ति उनका दर्शन, पूजन, मन्त्र जाप कर, प्रसन्न करते है। भजन, कीर्तन और अखंड जोत जलाकर ९ देवियों का आशीर्वाद लेते है। हवन, अनुष्ठान, मंत्र सिद्धि और दुर्गासप्तसती पाठ के लिए भी इस समय अवधि को अतिशुभ माना जाता है।
Chaitra Navratri, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होते है। नवरात्र के पहले दिन (प्रतिपदा तिथि) को घट स्थापना की जाती है। इस दिन से अखंड जोत जलानी शुरू करते है। घट स्थापना को कलश स्थापना भी कहा जाता है।
नवरात्रि के नौ दिन नियम अनुसार आराधक व्रत/ उपवास कर देवी पूजन करते है। नवरात्रि के नौ दिन चारों पुरुषार्थ देने वाले कहे गए है। नौ दिन देवी पूजन करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। देवी पुराण के अनुसार जो भक्त 9 दिन आस्था और विश्वास सहित नवदेवियों की पूजा करता है, देवी उसे प्रसन्न होकर धन, आरोग्य और उन्नति देती है। नवरात्रि का पर्व प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर नवमी तिथि तक चलता है। इस मध्य आराधक देश के बड़े-बड़े देवी मंदिरों में जाकर विशेष रूप से देवी दर्शन करते है। इन नौ दिनों को बहुत ही शुभ माना जाता है।
नवरात्र देवी पूजन केवल धर्म और आस्था का विषय ही नहीं है, बल्कि यह आरोग्य और महामारियों से बचाव के लिए भी किया जाता है। चैत्र नवरात्र हो या शारदीय नवरात्र दोनों नवरात्र ऋतू संधिकाल में आते है, उस समय मौसमी बीमारियां होने का भय सबसे अधिक होता है। ऐसे में हवन यज्ञ में प्रयुक्त सामग्री के शुभ प्रभाव से आरोग्यता की प्राप्ति होती है और घर से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। नौ दिनों में किस किस देवी की पूजा के जाती है? आइये जानें-
देवी शैलपुत्री - पहला नवरात्र देवी
9 दिन के नवरात्र पर्व के पहले दिन देवी शैलपुत्री का दर्शन-पूजन किया जाता है। देवी शैलपुत्री के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल है। देवी की पूजा के समय साधक को पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। माता के सम्मुख गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए। माता प्रसन्न होकर अपने भक्तों की सभी कामनाएं पूर्ण करती है। माता शैलपुत्री के बारे में और पढ़ें
देवी ब्रह्मचारणी - दूसरी नवरात्र देवी
देवी ब्रह्मचारणी की पूजा सफलता और उन्नति के लिए की जाती है। ब्रह्मचारणी के रूप में देवी साध्वी रूप में है। उनका स्वरुप अविवाहित कन्या का है। उनके एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जप माला है। देवी ब्रह्मचारणी के एक रूप को शक्कर का भोग लगाया जाता है। देवी की कृपा से सब काम सरल होते है। देवी ब्रह्मचारिणी के बारे में और पढ़ें
देवी चंद्रघंटा - तीसरी नवरात्र देवी
देवी चंद्रघंटा नवरात्र की तीसरी देवी है। देवी चंद्रघंटा का पूजन करने से साधक को उसके पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है। देवी चंद्रघंटा के मस्तक पर अर्धचंद्र होता है। माता की पूजा करते समय उन्हें दूध या दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए। देवी बुराई को समाप्त कर, अच्छाई को स्थापित करती है। इस प्रकार जो देवी का दर्शन पूजन करता है, उसके सभी दुःख दूर होते है। माता चंद्रघंटा के बारे में और पढ़ें
देवी कुष्मांडा - चौथे नवरात्र की देवी
नवरात्र का चौथा दिन देवी कुष्मांडा की पूजा को समर्पित है। देवी की पूजा के समय साधक को नारंगी रंग के वस्त्र धारण कर पूजन करना चाहिए। देवी दुःख हरती और संकट काटती है। चौथे नवरात्र के पूजन में देवी कुष्मांडा को मालपुए का भोग लगाना चाहिए। मां कूष्मांडा के बारे में और पढ़ें
देवी स्कंदमाता - पांचवें नवरात्र की देवी
नवरात्रि पर्व के पांचवें नवरात्र की देवी स्कंदमाता है। देवी स्कंदमाता को केले का भोग लगाया जाता है। देवी प्रसन्नता और हर्ष देने वाली देवी है। संतान सम्बन्धी समस्याओं के लिए भी माता की विशेष पूजा की जाती है। इस देवी की पूजा करते समय आराधक को सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण कर रखने चाहिए। देवी स्कंदमाता के बारे में और पढ़ें
देवी कात्यायनी - छठे नवरात्र की देवी
नवरात्र के छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्यायनी देवी के हाथ चार है। देवी के हाथ में तलवार है। और वो बाघ की सवारी करती है। देवी कात्यायनी का पूजन करने से रोग, शोक दूर होते है। देवी कात्यायनी की पूजा लाल रंग के वस्त्र पहनकर करनी चाहिए। देवी को पूजन के बाद शहद का भोग लगाना शुभ रहता है। कात्यायनी देवी के बारे में और पढ़ें
देवी कालरात्रि - सातवें नवरात्र की देवी
9 रात्रियों के पर्व नवरात्र का सातवां दिन देवी कालरात्रि की पूजा का काम है। देवी कालरात्रि भयंकर स्वरुप में है। शत्रुओं पर विजय पाने के लिए देवी कालरात्रि का दर्शन पूजन करना चाहिए। आर्थिक लाभ बेहतर करने के लिए भी देवी का दर्शन पूजन करना चाहिए। देवी को भोग के रूप में गुड़ प्रस्तुत किया जाता है। देवी पूजन के लिए नीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। देवी कालरात्रि के बारे में और पढ़ें
देवी महागौरी - आठवें नवरात्र की देवी
महागौरी देवी की पूजा आठवें दिन की जाती है। देवी की पूजा गुलाबी रंग के वस्त्र धारण कर करनी चाहिए। देवी महागौरी धन और समृद्धि की देवी है, इनकी पूजा करने से गरीबी का नाश होता है। महागौरी की पूजा करने से संतान की कामना करने वाले आराधक भी करते है। देवी को प्रसन्न करने के लिए नारियल का भोग लगाया जाता है। माता महागौरी की कृपा से जीवन के सभी सुख प्राप्त होते है। देवी महागौरी के बारे में और पढ़ें
देवी सिद्धिदात्री - नवम नवरात्र की देवी
नवरात्र के नवें दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माता सिद्धिदात्री चार हाथ वाली है। माता कमल पर विराजमान है। देवी सिद्धिदात्री की पूजा करने से जीवन की सभी कामनाएं पूर्ण होती है। माता की कृपा से साधक की सभी कामनाएं पूर्ण होती है। माता तिल का भोग स्वीकार करती है। देवी सिद्धिदात्री की पूजा से सिद्धि प्राप्ति सहज होती है। देवी सिद्धिदात्री के बारे में और पढ़ें
नवरात्रि में कन्या पूजन क्यों होता है? | Why is Kanya Puja done during Navratri?
नवरात्रि की नवमी को कन्या पूजन / Kanya Poojan के साथ नवरात्र पर्व का समापन होता है। नवरात्र में नौ देवी का बाल स्वरुप नौ कन्याओं को माना जाता है। नवमी तिथि के तिथि के दिन, 10 वर्ष से छोटी कन्याओं को भोग लगाया जाता है, उनका चरण पूजन कर उन्हें स्नेह से भोग खिलाया जाता है। साथ ही इस दिन कन्याओं को उपहार स्वरुप भेंट भी दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि कन्या पूजन करने से घर में गरीबी का नाश होता है। एक अन्य मत के अनुसार नौ कन्याओं का पूजन देवियों का पूजन होता है। जिस प्रकार देवी के चरणों को स्नान कराया जाता है, तिलक किया जाता है, उन्हें स्वादिष्ट भोग लगाया जाता है, ठीक उसी प्रकार कन्याओं का भी मान किया जाता है।
प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात:काल में स्नानादि से मुक्त होकर, घर के मंदिर में बैठ, एक मिटटी के बर्तन में मिटटी भरे और उसमें जौ और गेंहू फैलाएं, उस पर फिर से थोड़ी मिटटी डालें, और हल्का सा पानी छिड़के। फिर एक मिटटी का कलश लेकर उसमें अक्षत, सुपारी, फूल और जल डालें। साथ ही लौंग, इलायची, सिक्का डालकर उसे जल से भर दें। कलश पर आम के 5 पत्ते, दूर्वा रखकर, उस पर जट्टा वाला नारियल रखे। उस पर कुमकुम से तिलक करें, नारियल को लाल चुनरी से लपेट दे।
कलश को जौं से भरकर माता के सामने रखें। देवी को चुनरी उड़ाएं, तिलक करें, फूल, फल और भोग अर्पित करें। श्रृंगार चढ़ाएं। दुर्गा सप्तसती का पाठ करें। साथ ही दुर्गा चालीसा भी पढ़ें। जौ में प्रतिदिन थोड़ा थोड़ा जल छिड़कें। अष्ठमी या नवमी के दिन कन्या पूजन कर नवरात्र समापन करें। कन्या पूजन में कन्याओं को हलवा, पूरी, काले चने और कच्चे नारियल का प्रसाद खिलाएं। राम नवमी के दिन जौ और कलश को विसर्जित करें। इस प्रकार नौ दिन नवरात्र में देवियों का प्रतिदिन पूजन करना चाहिए।
नवरात्र की नौ देवियां माता के स्नेह, करुणा और सौहार्द की प्रतीक है। नौ देवियों की पूजा करने से साधक को सभी तीर्थों के स्नान का फल मिलता है।
वर्ष 2024 में चैत्र नवरात्र पूजन मुहूर्त
इस वर्ष 2024 में चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा तिथि का प्रारम्भ 8 अप्रैल 2024, सोमवार, समय रात्रि 11:51 मिनट पर हो रहा है और 9 अप्रैल, 2024, मंगलवार, रात्रि 08:30 पर प्रतिपदा तिथि का समापन हो रहा है। 9 अप्रैल 2024 में प्रतिपदा तिथि में सूर्योदय की शुभता शामिल रहेगी। घटस्थापना मुहूर्त के लिए प्रात: 06:02 से लेकर 10:16 मिनट के मध्य का रहेगा। इस प्रकार घटस्थापना मुहूर्त का शुभ समय 4 घंटे 14 मिनट का रहेगा। इस वर्ष कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त का रहेगा - 9 अप्रैल, 2024, मंगलवार, समय, मंगलवार, 11:57 से 12:48 बजे के मध्य रहेगा।
चैत्र नवरात्र के प्रथम दिन इस वर्ष इस लिए भी खास हो गया है, क्योंकि इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग भी बन रहे है। दो विशेष शुभ योगों के प्रभाव से इस दिन की शुभता चौगुनी हो गई है। नौ देवियों का दर्शन, पूजन करने से इस संसार के सभी सुख प्राप्त होते है। इस वर्ष नवरात्र 17 अप्रैल, 2024 तक रहेंगे।