Vinayaka Chaturthi 2020: जानिए, विनायक चतुर्थी की तिथियां, शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में...
By: Future Point | 26-Feb-2020
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हिंदू धर्म में भगवान गणेश का विशेष महत्व है। सभी देवताओं से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। किसी भी शुभ कार्य का आरंभ भगवान गणेश की आराधना के बिना नहीं होता। जब भी कोई संकट आए तो भगवान गणेश याद आते हैं। मान्यता है कि भगवान गणेश को प्रसन्न कर आप अपनी कोई भी इच्छा पूर्ण कर कर सकते हैं। इसलिए प्रत्येक माह भगवान गणेश का व्रत और पूजन किया जाता है। विनायक चतुर्थी भी एक ऐसा ही व्रत है जो प्रत्येक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। आइए, जानते हैं विनायक चतुर्थी क्या है? इस व्रत की तिथियां, शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में...
विनायक चतुर्थी क्या है?
हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी पड़ती हैं। एक शुक्ल पक्ष में अमावस्या या उसके बाद की चतुर्थी और दूसरी कृष्ण पक्ष में पूर्णिमा या उसके बाद की चतुर्थी। हिंदू धर्मग्रंथों में चतुर्थी को भगवान गणेश का दिन माना गया है। इसलिए प्रत्येक मास की चतुर्थी को भगवान गणेश का व्रत किया जाता है। अमावस्या या उसके बाद की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी का व्रत किया जाता है जबकि कृष्ण पक्ष में पूर्णिमा या उसके बाद की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाता है। वैसे तो विनायक चतुर्थी का व्रत प्रत्येक माह किया जाता है लेकिन भाद्रपद में पड़ने वाली विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व है जिसे गणेश चतुर्थी भी कहा जाता है। पूरे विश्व में इसे भगवान गणेश के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है।
विनायक चतुर्थी का महत्व
विनायक चतुर्थी को ‘वरद’ विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। ‘वरद’ यानी ‘ईश्वर से किसी चीज़ की कामना करना’। मान्यता है कि इस दिन विधि पूर्वक व्रत करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और व्रती को भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है। भगवान गणेश उसे सद्बुद्धि, विवेक और धैर्य प्रदान करते हैं। ये वे गुण हैं जिनसे कोई व्यक्ति अपने जीवन में प्रगति करता है और अपनी कोई भी इच्छा पूरी कर सकता है।
पौराणिक ग्रंथों में इस व्रत के महत्व की चर्चा विस्तार से की गई है। नरसिंह पुराण और भविष्य पुराण में इस व्रत का उल्लेख किया गया है। भगवान कृष्ण भी युधिष्ठिर को इस व्रत के महत्व के बारे में बताते हैं। इस व्रत को करने से व्रती को भौतिक सुख के साथ-साथ आंतरिक सुख भी मिलता है। उसके जीवन के सभी कष्ट व बाधाएं दूर होती हैं और उसकी प्रगति के मार्ग खुलते हैं। इससे ज्ञान, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से बुध ग्रह के दुष्प्रभावों में भी कमी आती है।
पुराणों में इसके महत्व से संबंधित एक कथा मिलती है। इस कथा के अनुसार चंद्र देव ने भी विनायक चतुर्थी का व्रत किया था। उन्होंने भगवान गणेश के रंग-रूप का अपमान किया था। क्योंकि चंद्र देव खुद बहुत सुंदर थे इसलिए जब उन्होंने गणेश जी को देखा तो उनका उपहास किया। इससे भगवान गणेश क्रोधित हो गएं। उन्होंने चंद्र देव को श्राप दिया और कहा कि जो भी तुम्हें देखेगा यह श्राप उसे भी लग जाएगा। चंद्र देव ने भगवान गणेश से क्षमा मांगी और इसका समाधान पूछा। भगवान गणेश ने उन्हें चतुर्थी के दिन पूरे विधि-विधान से व्रत करने को कहा। चंद्र देव ने भगावन गणेश के कहे अनुसार चतुर्थी को व्रत किया। इस तरह उन्हें अपने श्राप से मुक्ति मिली।
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विनायक चतुर्थी 2020: तिथि व मुहूर्त
2020 में विनायक चतुर्थी की तिथियां व शुभ मुहूर्त निम्न हैं:
गुरुवार, फरवरी 27, 2020: सुबह 11:25 बजे से दोपहर 1:43 बजे तक
शनिवार, मार्च 28, 2020: सुबह 11:12 बजे से दोपहर 1:40 बजे तक
सोमवार, अप्रैल 27, 2020: सुबह 11:00 बजे से 1:38 बजे तक
मंगलवार, मई 26, 2020: सुबह 10:56 बजे से 1:41 बजे तक
बुधवार, जून 24, 2020: सुबह 11:00 बजे से 1:47 बजे तक
शुक्रवार, जुलाई 24, 2020: सुबह 11:06 बजे से दोपहर 1:49 बजे तक
शनिवार, अगस्त 22, 2020: सुबह 11:06 बजे से 1:42 बजे तक (गणेश चतुर्थी)
रविवार, सितंबर 20, 2020: सुबह 11:01 बजे से दोपहर 1:27 बजे तक (अधिक विनायक चतुर्थी)
मंगलवार, अक्टूबर 20, 2020: सुबह 10:57 से 11:18 बजे तक
बुधवार, नवंबर 18, 2020: सुबह 11:02 बजे से दोपहर 1:10 बजे तक
शुक्रवार, दिसंबर 18, 2020: सुबह 11:16 बजे से दोपहर 1:20 बजे तक
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि विनायत चतुर्थी के व्रत व पूजा की तिथि व मुहूर्त की गणना सूर्योदय और सूर्यास्त के आधार पर की जाती है। अब क्योंकि दो शहरों या राज्यों में सूर्योदय या सूर्यास्त के समय में थोड़ा अंतर हो सकता है इसलिए विनायक चतुर्थी के व्रत व पूजन की तिथियों व मुहूर्त में थोड़ा फ़र्क हो सकता है।
विनायक चतुर्थी व्रत एवं पूजा विधि
विनायक चतुर्थी के दिन दोपहर में गणेश जी की पूजा करने का विशेष महत्व है। श्रद्धातु इसके लिए सबसे पहले प्रात: जल्दी उठकर स्नान कर लें और पूरे दिन व्रत करने का संकल्प लें। इस दिन लाल वस्त्र धारण करना शुभ होता है इसलिए पूजा में श्रद्धालु लाल रंग के कपड़े पहनें। शुभ मुहूर्त में पूजा करें। इस माह की चतुर्थी 27 फरवरी को है जिसका शुभ मुहूर्त सुबह 11:25 बजे से दोपहर 1:43 बजे तक है।
पूजा के लिए सबसे पहले एक चौकी बनाकर उसे लाल वस्त्र से ढक दें और उस पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। अब भगवान गणेश को दूर्वा, लाल सिंदूर और पुष्प अर्पित कर उनकी आरती करें। भगवान गणेश को लड्डू बहुत पसंद हैं इसलिए भगवान गणेश को बेसन या बूंदी के लड्डू का भोग लगाएं। इस दिन गणेश जी को 21 लड्डू चढ़ाएं जिनमें से 5 लड्डू किसी ब्राह्मण को दान कर दें और 5 लड्डू भगवान गणेश के चरणों में रख दें। बाक़ी के बचे लड्डू प्रसाद में बांट दें। भगवान गणेश की कथा सुनें और ऊँ गणपताय नम: मंत्र का जाप करें।
इस दिन ब्राह्मणों और ज़रूररतमंदों को दान करना चाहिए इसलिए जितना संभव हो सके उतने लोगों को भोजन कराएं और ज़रूरी सामान दान करें। कम से एक व्यक्ति को तो इस दिन ज़रूर भोजन कराएं। पूरे दिन व्रत रखकर शाम को गणेश जी की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं और गणेश स्तुति, गणेश सहस्रनामावली, गणेश पुराण आदि गणेश जी के ग्रंथों का पाठ करें। उसके बाद सात्विक भोजन करके व्रत खोलें।
विनायक चतुर्थी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती के मन में ख्याल आता है कि उनका कोई पुत्र नहीं है। तब वे अपने मैल से एक बालक की प्रतिमा बनाती हैं और उसमें जान डाल देती हैं। उसके बाद वे कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने के लिए चली जाती हैं। लेकिन जाने से पहले वे बालक को आदेश देती हैं कि कंदरा में किसी को प्रवेश मत करने देना। बालक माता पार्वती के आदेश का पालन करते हुए वहां पहरा देने लगता है। कुछ देर बाद तभी भगवान शिव वहां प्रवेश करते हैं। वे माता पार्वती से मिलने के लिए कंदरा में प्रवेश करने ही जा रहे होते हैं कि बालक उन्हें रोक देता है। इस पर भगवान शिव को क्रोध आ जाता है और वे अपने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर देते हैं।
माता पार्वती स्नान कर जब कंदरा से लौटती हैं तो अपने पुत्र की यह दशा देखकर बेहद क्रोधित हो जाती हैं। भगवान शिव समेत सभी देवगण माता पार्वती के क्रोध को देखकर भयभीत हो जाते हैं। भगवान शिव देवगण को आदेश देते हैं कि ऐसे बालक का सिर लेकर आओ जिसकी माता की पीठ बच्चे की ओर हो। बहुत खोजने के बाद देवगण एक गज (हाथी) के बच्चे का शीश लेकर आते हैं। भगवान शिव गणेश जी के यह शीश लगाकर उन्हें जीवित कर देते हैं। लेकिन माता पार्वती कहती हैं कि गज का शीश होने के कारण सभी उनके बालक का उपहास करेंगे। तब भगवान शिव गणेश जी को वरदान देते हैं कि आज से सभी उनके बालक को गणपति के नाम से जानेंगे। इसके साथ ही सभी देवगण भी उन्हें वरदान देते हैं कि कोई भी मांगलिक कार्य शुरु करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करना अनिवार्य होगा। ऐसा न करने पर उसे मनचाहे फल की प्राप्ति नहीं होगी। इस कथा के अनुसार भगवान गणेश का विधि पूर्वक व्रत एवं पूजन करने से आपके सभी कार्य सफल होते हैं और आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
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