ये है मकर संक्रांति 2023 को पूजा का शुभ मुहूर्त, जानें किन चीजों का करना चाहिए दान | Future Point

ये है मकर संक्रांति 2023 को पूजा का शुभ मुहूर्त, जानें किन चीजों का करना चाहिए दान

By: Future Point | 12-Jan-2023
Views : 2512ये है मकर संक्रांति 2023 को पूजा का शुभ मुहूर्त, जानें किन चीजों का करना चाहिए दान

भारत में अनेक त्‍योहार मनाए जाते हैं जिनमें से एक महत्‍वपूर्ण त्‍योहार मकर संक्रांति का भी है। मकर संक्रांति एक भारतीय पर्व है जो कि सर्दी के खत्‍म होने के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में गोचर करते हैं। मकर संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा और अच्‍छी फसल के लिए प्रार्थना की जाती है। भारत के अलग-अलग राज्‍यों में मकर संक्रांति को भिन्‍न नामों से जाना जाता है। इसे बहुत ही शुभ त्‍योहार माना जाता है। 

मकर संक्रांति 2023 कब है

मकर संक्रांति 2023 पुण्य काल मुहूर्त : 15 जनवरी को सुबह 7 बजकर 14 मिनट से शुरू होकर रात्रि के 12 बजकर 36 मिनट तक रहेगा। यह अवधि 5 घंटे 32 मिनट क होगी।

महा पुण्य काल मुहूर्त : 15 जनवरी, प्रात: 7:14 बजे से प्रात: 9:02 बजे तक होगा। यह अवधि: 1 घंटा 48 मिनट की होगी।

संक्रांति मुहूर्त : 14 जनवरी, रात्रि 8:49 बजे का है।

यह एकमात्र भारतीय त्योहार है जो हिंदू कैलेंडर में सौर दिवस के संबंध में मनाया जाता है। यही कारण है कि यह हर साल ग्रेगोरियन कैलेंडर में ठीक उसी दिन यानी 14 जनवरी को पड़ता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, मकर संक्रांति माघ के चंद्र महीने और मकर के सौर महीने में आती है।

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मकर संक्रांति के महत्वपूर्ण समय

सूर्योदय : जनवरी 15, 2023 7:14 पूर्वाह्न

सूर्यास्त : जनवरी 15, 2023 5:57 अपराह्न

पुण्य काल मुहूर्त : 15 जनवरी, प्रात: 7:14 से 15 जनवरी, को रात्रि 12:36 बजे

महा पुण्य काल मुहूर्त : 15 जनवरी, प्रात: 7:14 से 15 जनवरी, प्रात: 9:02 बजे

संक्रान्ति मुहूर्त जनवरी 14, 2023 रात्रि 8:49 बजे

मकर संक्रांति का क्‍या महत्‍व है

इस भारतीय त्‍योहार का बहुत गहरा महत्‍व है क्‍योंकि यह सूर्य और प्राकृतिक स्रोतों को समर्पित है। यह समय ईश्‍वर द्वारा दिए गए जीवन और साधनों के लिए उनका धन्‍यवाद करने के लिए होता है। लोग संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा करते हैं और उनके द्वारा दी गई सफलता और समृद्धि एवं शाति के लिए धन्‍यवाद करते हैं।

मकर संक्रांति शुभ दिनों की शुरुआत का प्रतीक है जो अगले छह महीनों तक जारी रहता है और अशुभ दिनों की समाप्ति दिसंबर के मध्य से शुरू होती है। इस काल को उत्तरायण काल भी कहते हैं। उत्सव चार दिनों तक चलता है और लोगों द्वारा गंगा, गोदावरी, यमुना, आदि जैसी पवित्र नदियों में डुबकी लगाई जाती है।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्‍नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन, देश के विभिन्न हिस्सों में कई मेलों का आयोजन किया जाता है। इनमें सबसे लोकप्रिय कुंभ मेला है जो हर 12 साल में एक बार प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में लगता है। इस दिन आयोजित होने वाले अन्य मेलों में प्रयाग में माघ मेला, पश्चिम बंगाल और झारखंड के कुछ हिस्सों में तुसू मेला और गंगा नदी पर गंगासागर मेला शामिल हैं।

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मकर संक्रांति की पूजन विधि

यह दिन भगवान सूर्य की पूजा के लिए समर्पित है, हालांकि, इस पर्व पर हिंदू देवता जैसे कि भगवान गणेश, भगवान शिव, देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा भी की जाती है। इस शुभ दिन पर घर और मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद उपरोक्त देवताओं का आशीर्वाद पाने के लिए इस विधि से पूजा की जाती है :

पंच पत्र में जल भरें और पूजा चौकी को गंगाजल से शुद्ध करें। अब चौकी पर साफ पीले रंग का कपड़ा बिछा दें। फिर इस पर कच्चे चावल के चार ढेर लगाएं और उनमें से प्रत्येक पर भगवान गणेश, भगवान शिव, देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा या मूर्ति रखें।

अब दाईं ओर एक तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं और पूजा शुरू करने के लिए भगवान गणेश का आह्वान करें। देवताओं को फल, फूल, पान, सुपारी, जनेऊ और मिठाई अर्पित करें। भगवान गणेश के मंत्र का जाप करें, इसके बाद भगवान शिव, देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करें। सूर्य की ओर मुख करके अर्घ्य दें और आपके द्वारा तैयार किया गया नैवेद्य देवताओं को अर्पित करें। इसके पश्‍चात्त प्रत्येक देवता का आशीर्वाद पाने के लिए आरती करें। नैवेद्य को प्रसाद के रूप में बांटें।

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मकर संक्रांति को क्‍या करना चाहिए

संक्रांति के दिन गुड़ और तिल का उपयोग किया जाता है। इन दोनों को दान में देने का गहरा धार्मिक महत्व है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शनि को प्रसन्न करने के लिए तिल का उपयोग किया जाता है। मकर संक्रांति की कहानी के अनुसार गुड़ और तिल से बनी मिठाई का दान करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं।

ऐसा माना जाता है कि गुड़ आर तिल से बनी मिठाइयों में सात्विक गुण होते हैं और इसलिए लोग सक्रिय रूप से मकर संक्रांति 2023 तिथि पर इनका दान और आदान-प्रदान करते हैं।

इसके अलावा परिवार की विवाहित महिलाओं को बर्तन भेंट किए जाते हैं।

गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने से शनि देव प्रसन्न होते हैं, इसलिए संक्रांति के दिन दान का बहुत महत्‍व होता है।

इस दिन लोग गंगा, यमुना और गोदावरी जैसी पवित्र नदियों के पवित्र जल में डुबकी लगाने भी जाते हैं। इससे सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्‍त होता है।

इसके अलावा, इस दिन, मौसम की नई कटी हुई फसल से स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं। इस शुभ दिन पर खिचड़ी, तिल के लड्डू और चावल की मिठाई जैसे व्यंजन बनते हैं।

मकर संक्रां‍ति पुण्‍य काल क्‍या है

मकर संक्रांति और 40 घाटियों के बीच के अंतर को मकर संक्रांति पुण्‍य काल कहा जाता है। 40 घाटी का मतलब है 16 घंटे और 1 घाटी में 24 मिनट होते हैं।

मकर संक्रां‍ति के दिन हर शुभ कार्य पुण्‍य काल मुहूर्त में ही किया जाता है जैसे कि मकर संक्रांति की पूजा, सूर्य देव को मिठाई और पारंपरिक खाद्य अर्पित करना, दान करना, व्रत खोलना आदि।

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पोंगल भी मनाते हैं

मकर संक्रांति के उत्सव के अगले दिन, देश के कुछ हिस्सों में मट्टू पोंगल नामक एक और त्योहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति के बाद का यह दिन खेत की उपज और जानवरों के श्रम और कड़ी मेहनत का सम्मान करने के लिए होता है। खेतों में काम करने वाले जानवरों के बिना सफल फसल का आना लगभग असंभव है। इसलिए, इस त्योहार को बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है क्योंकि यह हमारे ग्रह पर अन्य प्रजातियों के साथ-साथ प्रकृति के साथ साझा किए गए विशेष बंधन को श्रद्धांजलि देता है।

मकर संक्रांति की पौराणिक कथा

मौसम की फसल को बढ़ावा देने और प्रकृति का धन्‍यवाद करने के लिए किसानों के बीच यह पर्व बहुत महत्‍व रखता है। संक्रांति का पारंपरिक के साथ-साथ धार्मिक महत्‍व भी है। पुराणों के अनुसार इस दिन सूर्य देवता अपने पुत्र शनि देव से मिलने जाते हैं। शनि देव मकर राशि के स्‍वामी हैं। पिता-पुत्र यानि सूर्य देव और शनि देव के बीच सदा अनबन रहती है और शत्रु का संबंध रहता है लेकिन मकर संक्रां‍ति के दिन ये दोनों अपने मतभेदों को सुलझाने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार यह पर्व पिता और पुत्र के मजबूत संबंध को मनाने का प्रतीक है। इस दिन दो शक्‍तिशाली देवता एकसाथ आते हैं जो कि हर्ष और उत्‍साह मनाने का कारण है।

इसके अलावा किवदंती है कि इस दिन भगवान विष्‍णु ने असुरों पर विजय प्राप्‍त की थी। भगवान विष्णु ने राक्षसों का सफाया कर पृथ्वी पर उनके द्वारा किए गए दुखों और पापों का अंत किया था। भगवान विष्‍णु ने सभी राक्षसों को मंदरा पर्वत के नीचे गाढ़ दिया था और न्‍याय को जीत दिलाई थी।