शुक्र प्रदोष व्रत - दूर करे जीवन की हर बाधा, विवाह के लिए अत्यंत लाभकारी
By: Future Point | 16-Sep-2022
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हिन्दू मान्यता में प्रदोष व्रत का अत्यंत महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि प्रदोष के व्रत करने से जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। प्रदोष व्रत भगवान् शिव से सम्बंधित है और सभी बाधाओं को हरने वाला है। प्रत्येक माह में दो पक्ष होते हैं कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। दोनों पक्षों में पड़ने वाली त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है। आश्विन मास में प्रदोष व्रत 23 सितंबर 2022, दिन शुक्रवार को रखा जाएगा। इस दिन जो भी वार पड़ता है उसी के नाम से प्रदोष व्रत जाना जाता है। इस दिन शुक्रवार पड़ने से इसे शुक्र प्रदोष व्रत क नाम से जाना जायेगा। इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने का विधान है। यह अत्यंत लाभकारी व्रत है और अत्यधिक मात्रा में लोग इसका पालन करते हैं।
ज्योतिष में प्रदोष व्रत का महत्व
शुक्र ग्रह को ज्योतिष में भौतिकता व सुख सुविधा का ग्रह माना गया है। जब शुक्रवार को इतना महत्वपूर्ण व्रत रख समस्त कुंडली दोषों से बचाने वाले भगवान् शिव की आराधना की जाएगी तो शुक्र ग्रह को मजबूती मिलेगी और यदि कुंडली में शुक्र बाधा उत्पन्न कर रहा होगा तो उस बाधा से मुक्ति मिलेगी। तो सही मायनों में यदि आप अपने जीवन में सुख सुविधाएं सुनिश्चित करना चाहते हैं तो इस आश्विन मास में पड़ने वाले शुक्रवार को प्रदोष व्रत रखकर अपने जीवन में सुख व समृद्धि पाएं।
शुक्र ग्रह वैवाहिक जीवन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रह है। यदि किसी का विवाह न हो रहा हो या कोई अपने वैवाहिक जीवन में कटुता का अनुभव कर रहा हो तो यह व्रत अत्यंत लाभदायी है। यह दाम्पत्य जीवन की मधुरता को बढ़ाने वाला व क्लेशों को काटने वाला व्रत है। भोले शंकर की कृपा से मनचाहे वर की प्राप्ति भी इस व्रत को रखने से प्राप्त होती है।
प्रदोष व्रत सुख और समृद्धि बढ़ाता है और इस दिन भगवान भोलेनाथ के साथ देवी पार्वती की भी आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजन करने से सभी प्रकार के रोग, कुंडली व ग्रह दोष, कष्ट और पापों से मुक्ति मिलती है। आइये जानते है इस महत्वपूर्ण दिन से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारी। हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रदोष व्रत की तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और संपूर्ण पूजन विधि का विवरण इस लेख में दिया गया है।
शुक्र प्रदोष व्रत 2022 तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (तेरस) तिथि, 23 सितंबर, शुक्रवार को सुबह 01 बजकर 17 मिनट पर शुरू हो जाएगी और इसका समापन अगले दिन यानि 24 सितंबर शनिवार को सुबह 02 बजकर 30 मिनट पर हो जायेगा। उदयातिथि और प्रदोष पूजा मुहूर्त के अनुसार शुक्र प्रदोष व्रत 23 सितंबर को रखा जाएगा।
शुक्र प्रदोष व्रत पर बन रहे है ये अत्यंत विशेष योग
23 सितम्बर को पड़ने वाला शुक्र प्रदोष व्रत आपकी मनोकामनाओं व इच्छाओं की पूर्ति करने वाला है। इस व्रत के प्रभाव से सभी विघ्न बाधाएं दूर हो जीवन में सफलता प्राप्त होगी। यह दिन इसलिए महत्वपूर्ण है कि इस दिन सिद्ध और साध्य नामक अत्यंत शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन सिद्ध योग का समय सूर्योदय से लेकर सुबह 09 बजकर 56 मिनट तक है। उसके बाद साध्य योग प्रारम्भ हो जायेगा, जो अगले दिन यानि 24 सितम्बर को सुबह 09 बजकर 43 मिनट तक रहेगा। ये दोनों ही योग ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत शुभ योग हैं।
चौघड़िया मुहूर्त - लाभ और उन्नति प्राप्त करने का मुहूर्त
शुक्र प्रदोष व्रत को शाम 07 बजकर 56 मिनट से लेकर रात 09 बजकर 23 मिनट तक रात्रि चैघड़िया में लाभ व उन्नति मुहूर्त है। यह अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है और इसमें किये गए कार्य जीवन में लाभ व उन्नति लेकर आते हैं। यह मुहूर्त प्रदोष पूजा के लिए बताये गए शुभ समय के बीच पद रहा है। अतः इसका पूरा लाभ उठाएं। यदि आप शुक्रवार प्रदोष व्रत को रखकर और शुभ मुहूर्त का ध्यान रख कर पूजा अर्चना करते हैं तो निश्चित ही आप बहुत अधिक धन लाभ ले सकते हैं। शुभ मुहूर्त में पूजा करने से निश्चित तौर पर आपको सुख व समृद्धि की प्राप्त होगी और आशतीत सफलता मिलेगी।
शुक्र प्रदोष पूजा मुहूर्त
23 सितंबर को शुक्र प्रदोष पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 06 बजकर 17 मिनट से लेकर रात्रि 08 बजकर 39 मिनट तक है। ऐसे में जो लोग प्रदोष व्रत का पालन करेंगें, उनको शिव जी की पूजा के लिए लगभग 02 घंटे से अधिक का समय प्राप्त होगा। प्रदोष व्रत की पूजा करने का महत्व शुभ मुहूर्त में ही करने का है। मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्यूंकि ऐसा माना गया है कि सही मुहूर्त में की गयी पूजा व अर्चना का लाभ कई गुना बढ़ जाता है।
प्रदोष व्रत अनुष्ठान और पूजा
प्रदोष व्रत वाले दिन प्रदोष काल का समय पूजा-अर्चना के लिए सबसे अधिक शुभ माना जाता है। इस दौरान की गईं सभी प्रकार की पूजा या प्रार्थना सफल परिणाम लाती हैं। सूर्यास्त होने के एक घंटे पहले स्नान करना चाहिए और पूजा के लिए तैयार हो जाना चाहिए। स्नान के बाद शाम के समय बताये गए शुभ मुहूर्त में भगवान् शिव का पूजन शुरू करें। पंचामृत जिसमें गाय के दूध, दही, घी, शहद, शक्कर और गंगाजल आदि का प्रयोग होता है, उससे शिवलिंग का अभिषेक करें। उसके बाद शिवलिंग पर सफ़ेद चंदन अर्पित करें और बेलपत्र, मदार, फूल, फल, भांग, आदि अर्पित करें। उसके बाद विधिपूर्वक पूजा करें। शिव व पार्वती स्त्रोत पढ़ें व आरती करें। उसके बाद प्रसाद वितरित करें।