शुभ कार्यों को करने से पहले क्यों पढ़ी जाती है सत्यनारायण भगवान की कथा
By: Future Point | 10-May-2020
Views : 5427
सत्यनारायण भगवान की कथा सदियों से मानवजगत का कल्याण करती आ रही है| ज्योतिष के जानकारों की मानें तो सत्यनारायण व्रत का अनुष्ठान करके इंसान अपने तमाम दुखों से मुक्ति पा सकता है, हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य या मांगलिक कार्य को प्रारंभ करने के पूर्व सत्यनारायण व्रत की कथा का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जब भी किसी व्यक्ति की कोई मनोकामना की पूर्ति हो जाती है तब भी सत्यनारायण की कराई जाती है। हिन्दू धर्म में सत्यनारायण की बहुत का बहुत बड़ा महत्व होता है। सत्यनारायण कथा सुनने का फल इतना बड़ा होता है, जितना कि हजारों वर्ष तक यज्ञ करने पर मिलता है। हिन्दू धर्म के शास्त्रों के अनुसार जब कोई भी व्यक्ति कथा सुनने के साथ-साथ भगवान विष्णु जी का व्रत भी करता है, तो भगवान विष्णु उसके जीवन के सभी दुःखों का हरण कर लेते है।
सत्यनारायण भगवान की महिमा-
भगवान सत्यनारायण विष्णु भगवान का ही एक रूप हैं, भगवान सत्यनारायण का उल्लेख स्कन्द पुराण में मिलता है| स्कन्द पुराण में भगवान विष्णु ने नारद को इस व्रत का महत्व बताया है| कलयुग में सबसे सरल, प्रचलित और प्रभावशाली पूजा भगवान सत्यनारायण की ही मानी जाती है, सत्यनारायण की कथा में भगवान विष्णु की महिला का वर्णन किया जाता है। यह कथा मुख्य रुप से पूर्णिमा के दिन सुनी जाती है तो इसका फल हजार गुना ज्यादा प्राप्त होता है। सत्यनारायण की कथा को पूर्णमासी की कथा के नाम से जाना जाता है। जो लोग किसी कारणवश पूर्णिमा के दिन कथा का श्रवण नही कर पाते है, वह अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी सुन सकते है, और अगर गुरुवार का दिन हो तो बहुत ही लाभकारी तथा शुभ माना जाता है। मन मे अगर सच्चा भाग हो तो आप किसी भी दिन सत्यनारायण कथा को सुन सकते है, भगवान किसी भी दिन के लिए भूखे नही होते है, वह तो केवल आपके भावों के भूखे होते हैं। ज्योतिष के जानकारों की मानें तो सत्यनारायण व्रत कथा के दो भाग हैं, पहले व्रत-पूजन और दूसरा सत्यनारायण की कथा, सत्यनारायण भगवान का व्रत कलियुग का सबसे कल्याणकारी व्रत है, क्योंकि इनकी पूजा बेहद आसान और विशेष है|
सत्यनारायण भगवान की कथा लोक में प्रचलित है। हिंदू धर्मावलंबियो के बीच सबसे प्रतिष्ठित व्रत कथा के रूप में भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की सत्यनारायण व्रत कथा है। कुछ लोग मनोकामना पूरी होने पर, कुछ अन्य नियमित रूप से इस कथा का आयोजन करते हैं। सत्यनारायण व्रत कथा के दो भाग हैं, व्रत-पूजा एवं कथा। सत्यनारायण व्रतकथा स्कंदपुराण के रेवाखंड से संकलित की गई है। भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। इसके मूल पाठ में पाठांतर से लगभग 170 श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध हैं जो पांच अध्यायों में बंटे हुए हैं। इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं- जिनमें एक है संकल्प को भूलना और दूसरा है प्रसाद का अपमान।
व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस तरह की परेशानियां आती है। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर भगवान न केवल नाराज होते हैं अपितु दंड स्वरूप संपति और बंधु बांधवों के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य हैं। प्रायः पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में वाचन किया जाता है। अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि विधान से करने का निर्देश दिया गया है।
विशेष उद्देश्यों के लिए सत्यनारायण पूजन का महत्व-
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो सनातन सत्यरूपी विष्णु भगवान कलियुग में अलग-अलग रूप में आकर लोगों को मनवांछित फल देंगे. इंसानों के कल्याण के लिए ही श्री हरि ने सत्यनारायण रूप लिया, विशेष उद्देश्यों के लिए सत्यनारायण भगवान की पूजा का क्या महत्व है|
गृह शान्ति और सुख समृद्धि के लिए इनकी पूजा विशेष लाभ देती है|
ये पूजा शीघ्र विवाह के लिए और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए भी लाभकारी है|
ये पूजा संतान के जन्म के अवसर पर और संतान से जुड़े अनुष्ठानों पर बहुत लाभकारी है|
विवाह के पहले और बाद में सत्यनारायण की पूजा बहुत शुभ फल देती है|
आयु रक्षा तथा सेहत से जुड़ी समस्याओं में इस पूजा से विशेष लाभ होता है|
पूजा का उत्तम मुहूर्त-
हर पूजा और उपासना का एक उत्तम मुहूर्त होता है, जिसमें की गई उपासना का बहुत उत्तम फल मिलता है | तो आइए हम आपको बताते हैं कि भगवान सत्यनारायण की पूजा करने का सबसे अच्छा समय कब होता है, श्री सत्यनारायण व्रत-पूजनकर्ता पूर्णिमा, संक्रांति, बृहस्पतिवार, अथवा किसी भी बड़े संकट के आने पर इनकी पूजा सबसे उत्तम होती है| इस दिन स्नान करके धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस कार्य हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके सत्यनारायण भगवान का पूजन करें। इसके पश्चात् सत्यनारायण व्रत कथा का वाचन अथवा श्रवण करें।
किस प्रकार करें सत्यनारायण भगवान की पूजा-
ज्योतिष के जानकारों मानें तो जीवन में हर तरह के कल्याण के लिए सत्यनारायण भगवान का व्रत, कथा और पूजा सबसे उत्तम है. क्योंकि सत्यनारायण का पूजन जीवन में सत्य का महत्व बताता है तो आइए जानते हैं कि कैसे करें श्रीहरि के इस रूप का पूजन, शास्त्रों के अनुसार जिस जगह पर सत्यनारायण कथा का आयोजन किया जाता है, सर्व प्रथम घर के ब्रह्म स्थान पर केले के पौधों से मंडप बनाया जाता है, फिर भगवान सत्यनारायण के विग्रह या चित्र की स्थापना की जाती है, कलश और दीपक की भी स्थापना की जाती है, फिर सर्व प्रथम गौरी-गणेश तथा नवग्रहों की पूजा की जाती है।
सत्यनारायण भगवान की पूजा में केले के पत्ते व फल के अलावा पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा की आवश्यकता होती है, जिनसे भगवान की पूजा होती है। सत्य नारायण की पूजा में केले के फल तथा केले के पत्तों का प्रयोग बहुत ही अच्छा कहा गया है, क्योंकि केले का संबंध सीधा भगवान विष्णु जी से होता है। सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है जो भगवान को काफी पसंद है। इन्हें प्रसाद के तौर पर फल, मिष्टान्न के अलावा आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर एक प्रसाद बनता है जिसे पंजिरी कहा जाता है, उसका भी भोग लगता है। सत्यनारायण की पूजा का मुख्य उदे्श्य सत्य को नारायण के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है।