शनि महादशा और शनि साढ़ेसाती के बुरे प्रभाव से बचाते हैं ये उपाय | Future Point

शनि महादशा और शनि साढ़ेसाती के बुरे प्रभाव से बचाते हैं ये उपाय

By: Future Point | 13-Feb-2024
Views : 1350शनि महादशा और शनि साढ़ेसाती के बुरे प्रभाव से बचाते हैं ये उपाय

वैदिक ज्योतिष में महादशा के फल लग्न आधारित होते हैं। जन्म नक्षत्र के स्वामी ग्रह के द्वारा जन्म समय में मिलने वाली महादशा का निर्धारण होता है। उदाहरण के अनुसार यदि किसी बालक का जन्म कर्क राशि, पुष्य नक्षत्र में हुआ है तो बालक को जन्म के समय में शनि कि महादशा प्राप्त होगी क्योंकि पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि ग्रह हैं। 

शनि महादशा कि अवधि 19 साल कि होती है। किसी व्यक्ति के लिए शनि शुभ रहेगा या अशुभ यह लग्न राशि के अनुसार तय होता है। कुछ लग्नों के लिए शनि ग्रह शुभ होते है, और कुछ के लिए अशुभ होते है। हम जानते है कि महादशा में मिलने वाले फल जन्म कुंडली / Janam Kundli में ग्रह को प्राप्त स्वामित्व का आधार तय करता है।

किस लग्न के लिए शनि शुभ और किस लग्न के लिए शनि अशुभ होते हैं - आईये जानें

मेष लग्न - अशुभ, शनि कि स्थिति से शुभता / अशुभता तय होती है। 
वृषभ लग्न - अतिशुभ
मिथुन लग्न - अशुभ - स्थिति से तय होता है। 
कर्क लग्न -  अशुभ
सिंह लग्न -  अशुभ
कन्या लग्न - सम फल देने वाले होते हैं।
तुला लग्न - शुभ ग्रह, योगकारक ग्रह हैं। 
वृश्चिक लग्न - अशुभ ग्रह
धनु लग्न -  अशुभ ग्रह
मकर लग्न -  शुभ, लग्नेश हैं। 
कुम्भ लग्न -  सम, शनि कि स्थिति शुभता / अशुभता तय करती है।
मीन लग्न -  अशुभ

जन्म राशि अनुसार शनि साढ़ेसाती कि शुभता विचार

मेष राशि - प्रथम और द्वितीय चरण कष्टकारी, तृतीय चरण शुभफलदायक
वृषभ राशि - प्रथम चरण शुभ व् द्वितीय चरण और तृतीय चरण शुभ फलदायक 
मिथुन राशि - प्रथम चरण व् द्वितीय चरण शुभ, तृतीय चरण अशुभ
कर्क राशि - प्रथम चरण शुभ व् द्वितीय चरण और तृतीय चरण अशुभ फलदायक 
सिंह राशि - प्रथम और द्वितीय चरण कष्टकारी, तृतीय चरण शुभफलदायक  
कन्या राशि -  प्रथम चरण अशुभ, द्वितीय चरण और तृतीय चरण शुभ फलदायक 
तुला राशि -  प्रथम चरण व् द्वितीय चरण शुभ, तृतीय चरण अशुभ
वृश्चिक राशि -  प्रथम चरण शुभ,  द्वितीय चरण और तृतीय चरण अशुभ फलदायक 
धनु राशि -  प्रथम और द्वितीय चरण कष्टकारी, तृतीय चरण शुभफलदायक  
मकर राशि -  प्रथम चरण अशुभ, द्वितीय चरण और तृतीय चरण शुभ फलदायक  
कुम्भ राशि -  प्रथम चरण व् द्वितीय चरण शुभ, तृतीय चरण अशुभ 
मीन राशि -  प्रथम चरण अशुभ, द्वितीय चरण और तृतीय चरण शुभ फलदायक 

 

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विंशोतरी दशा में नौ ग्रहों को दिया गया महादशाकाल का योग 120 वर्ष होता है। इसी कारण से विंशोतरी दशा में कोई भी महादशा जीवन में दोबारा नहीं आती है। आज के समय में प्रतिव्यक्ति औसत आयु वर्ष 2021 के अनुसार 69।96 है। इस औसत आयु में एक व्यक्ति को लगभग आधे ग्रहों की ही दशा जीने के अवसर मिल पाते हैं। 

इसलिए यह संभावनाएं बहुत कम बनती है कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में शनि महादशा आये, परन्तु इस बात के योग अधिक बनते है कि शनि की साढ़ेसाती दो से अधिक बार सभी के जीवन में आ ही जाती है। शनि महादशा मिलें ना मिलें, साढ़ेसाती मिलती ही है। साढ़ेसाती 27 से 30 साल बाद आती ही है। साढ़ेसाती की अवधि सामान्यता बहुत तनाव और दबाव वाली रहती है। परन्तु शनि महादशा के फल जन्मपत्री में शनि के स्वामित्व, स्थिति और युति के अनुसार तय होते हैं।

शनि की महादशा जातक से मेहनत कराती है। यह व्यक्ति के धैर्य और निष्ठा की परीक्षा लेती है।  जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार रहता है, उसके लिए शनि महादशा के फल सकारात्मक रहते हैं। ऐसा माना जाता है की शनि पूर्व जन्मों के कर्मों को काटने का कार्य करता है। शनि से मिलने वाले फल धीमी गति से मिलते है, पर अंतत: अनुकूल रहते है। शनि महादशा हो या शनि साढ़ेसाती, दोनों में ही कड़ी मेहनत और  चुनौतियों का समय होता  हैं।

दोनों के ही फलों को शुभ रूप में प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति बाधाओं से न घबराएं, अनुशासनशील और जिम्मेदार रहें, आध्यात्मिक विकास और चिंतन पर ध्यान दें। यह दोनों ही अवधियां व्यक्ति को संघर्ष की भट्टी में तपाकर सोना बना देती हैं। शनि की साढ़ेसाती हो या शनि महादशा हो दोनों में ही व्यक्ति अनुभवशील और परिपक्व बनाती है। हाँ दोनों के तरीके अलग-अलग हो सकते है। परन्तु दोनों का उद्देश्य व्यक्ति को कर्मपथ मार्ग पर आगे बढ़ाना हैं।

शनि की महादशा - हर किसी के जीवन में शनि की महादशा जरुरी नहीं की आये, यह 19 वर्ष की होती है। कुंडली में शनि अशुभ भाव में स्थित हो या नीचस्थ हो या सूर्य के साथ स्थिति हो तो शनि महादशा में मिलने वाले फल नकारात्मक रूप में प्राप्त हो सकते हैं। ऐसे में व्यक्ति को आर्थिक कष्ट और मानसिक कष्ट मिलने के योग बनते हैं।

साढ़ेसाती से अभिप्राय - जन्म चंद्र से शनि का गोचर बारहवें, जन्म राशि और द्वितीय भाव पर होने से है। शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष रहता है, तीन राशियों में शनि गोचर की अवधि साढ़ेसात वर्ष की होती हैं, यही साढ़ेसाती के नाम से जानी जाती है।  साढ़ेसाती का प्रभाव हमेशा अशुभ नहीं होता है, ऐसे ही शनि महादशा का प्रभाव सदैव ही अशुभ नहीं होता है, साढ़ेसाती जन्म चंद्र के आसपास के भावों पर शनि गोचर से सम्बंधित है तो शनि महादशा लग्न से किस भाव का स्वामित्व शनि को प्राप्त है, और शनि के साथ अन्य ग्रहों की युति, स्थिति और योग के आधार पर तय होता है।

यहां यह समझ लेना चाहिए की दोनों ही स्थितियों में शनि हमेशा अशुभ और हमेशा शुभ नहीं होता है। चंद्र की स्थिति और शनि की स्थिति से दोनों के परिणाम बदल सकते हैं।

अब शनि ढैय्या को समझते है - शनि ढैय्या से तात्पर्य जन्म चंद्र से शनि जब गोचर में चतुर्थ और अष्टम भाव में होते हैं, तो इस अवधि को शनि की ढैय्या के नाम से जाना जाता है। शनि ढैय्या का फल भी शुभ और अशुभ हो सकता है। 

शनि महादशा और शनि की साढ़ेसाती दोनों को ही कष्टकारी नहीं कहा जा सकता है। दोनों का ही कार्य मूल रूप से व्यक्ति को निखारने और तरासने का है। कर्म अच्छे होंगे तो शनि साढ़ेसाती और शनि महादशा सफलता की उचाइयां देने में देर नहीं करती हैं। इसलिए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की शनि महादशा और शनि की साढ़ेसाती दोनों ही व्यक्ति को आमजन से ख़ास बनाने का कार्य कराती हैं। 

शनि के  प्रभाव से व्यक्ति अपने सामर्थ्य से उन्नति पाता हैं, शनि देव व्यक्ति की सामर्थ्य शक्ति बढ़ाते है, और और व्यक्ति को जिम्मेदार बना देते है। शनि की महादशा और साढ़ेसाती को कष्टकारी समझना एक अवधारणा है, जो सही नहीं हैं। शनि मालामाल भी करता है और कंगाल भी कर देता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। 

 

शनि साढ़ेसाती के बुरे प्रभाव से बचने के लिए कराएं शनि शांति पूजा

शनि की महादशा हो या शनि की साढ़ेसाती दोनों ही अवधियों में निम्न उपाय कर लाभ प्राप्त किया जा सकता है-

  • शनि स्तोत्र का रविवार को छोड़कर नित्य पाठ करें।
  • शनि मन्त्र ॐ शं शनैश्चराय नमः का 1, 5,11 माला रोजाना जाप करें।  हनुमान चालीसा का 5 माला रोजाना जाप करें।  
  • बजरंग बाण का नित्य पाठ करें।
  • पीपल के पेड़ को जल दें।
  • सात मुखी रुद्राक्ष धारण करें।