राजनीतिक क्षेत्र में सफलता पाने के लिए कुंडली में जरूर देख लें ये ज्योतिषीय योग
By: Future Point | 27-May-2020
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राजनीती में जाने के लिए कुंडली में राजनीतिक सफलता का योग होना अनिवार्य है। इसके लिए कुंडली में ग्रहों की अनुकूलता और योग को देखा जाता है। वैदिक ज्योतिष की दृष्टि से दशम भाव को राज्य सत्ता का स्थान कहा जाता है और इसी स्थान से राजयोग की विशिष्ट जानकारी भी ज्ञात की जा सकती है।
‘राजनीति’ दो शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ है, एक ऐसा शासक जिसकी नीतियां व राजनैतिक गतिविधियां इतनी परिपक्व व सुदृढ़ हों, जिसके आधार पर वह अपनी जनता का प्रिय शासक बन सके और अपने कार्यक्षेत्र में सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करता हुआ उन्नति की चरम सीमा पर पर पहुंचे। राजनीति का मुख्य कारक ग्रह कूटनीतिज्ञ ‘राहु’’ है, जो कालसर्प योग के लिये तो जिम्मेदार है ही, साथ ही छलकपट भी करवाता है, इसकी महादशा में कई महापुरूषों जैसे- भूतपूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह आदि को राजनीति में उच्चपद प्राप्त करते देखा गया है।
राहु ग्रह कुंडली में बली अर्थात उच्च, मित्रराशि आदि में स्थित होकर केंद्र, त्रिकोण के अलावा 2, 3, 10, 11 भाव में स्थित हो तो प्रबल योग बनता है। यदि राहु शत्रु राशिगत आदि हो तो, त्रिक भाव 6, 8, 12 में स्थित हो तो राजनीति में सफलता नहीं देता है। इसके अलावा ग्रहों का राजा सूर्य, देवगुरु बृहस्पति और मंगल का बली होना भी आवश्यक है।
चतुर्थ, पंचम व दशम भाव तथा इनके स्वामी यदि बली हों तो राजनीति में सफलता देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ लग्न-लग्नेश, राशि राशीश व चंद्र का बली होना आवश्यक है। यदि लग्न व राशि का स्वामी एक ही हो और पंचम व भाग्य भाव के स्वामी से युति करे तो ऐसा जातक विश्वविख्यात राजनीतिज्ञ होता है।
राजनीती के क्षेत्र में राहु, शनि, सूर्य व मंगल की भूमिका | Role of Rahu, Saturn, Sun and Mars in the field of politics
राहु को सभी ग्रहों में नीति कारक ग्रह माना गया है, इसका प्रभाव राजनीति के घर से होना चाहिए, सूर्य को भी राज्य कारक ग्रह की उपाधि दी गई है, सूर्य का दशम घर में स्वराशि या उच्च राशि में होकर स्थित होना व राहु का छठे घर, दसवें घर व ग्यारहवें घर से संबध बने तो यह राजनीति में सफलता दिलाने की संभावना बनाता है, इस योग में दूसरे घर के स्वामी का प्रभाव भी आने से व्यक्ति अच्छा वक्ता बनता है, शनि दशम भाव में हो या दशमेश से संबध बनाये और इसी दसवें घर में मंगल भी स्थिति हो तो व्यक्ति समाज के लोगों के हितों के लिये काम करने के लिये राजनीति में आता है, यहां शनि जनता के हितैशी है तथा मंगल व्यक्ति में नेतृत्व का गुण देता है, दोनों का संबध व्यक्ति को एक अच्छा राजनेता बनता है|
अमात्यकारक राहु व सूर्य | Unnatural Rahu and Sun
राहु या सूर्य के अमात्यकारक बनने से व्यक्ति रुचि राजनीति में होती है और इसी क्षेत्र में सफलता पाने की संभावना अधिक रहती है| राहु के प्रभाव से व्यक्ति नीतियों का निर्माण करना व उन्हें लागू करने की योग्यता रखता है, राहु के प्रभाव से ही व्यक्ति में हर परिस्थिति के अनुसार बात करने की योग्यता आती है, सूर्य अमात्यकारक होकर व्यक्ति को राजनीती में उच्च पद की प्राप्ति का संकेत देता है, नौ ग्रहों में सूर्य को राजा का स्थान दिया गया है|
नवाशं व दशमाशं कुण्डली | Navamsha and dashamsha kundali
जन्म कुण्डली (Janam Kundli) के योगों को नवाशं कुण्डली में देख निर्णय की पुष्टि की जाती है| किसी प्रकार का कोई संदेह न रहे इसके लिये जन्म कुण्डली के ग्रह प्रभाव समान या अधिक अच्छे रुप में बनने से इस क्षेत्र में दीर्घावधि की सफलता मिलती है, दशमाशं कुण्डली को सूक्ष्म अध्ययन के लिये देखा जाता है, इससे कार्यक्षेत्र का सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है| तीनों में समान या अच्छे योग व्यक्ति को राजनीति की ऊंचाइयों पर लेकर जाते हैं| नेतृ्त्व के लिये व्यक्ति का लग्न सिंह अच्छा समझा जाता है. सूर्य, चन्द्र, बुध व गुरु धन भाव में हों व छठे भाव में मंगल, ग्यारहवे घर में शनि, बारहवें घर में राहु व छठे घर में केतु हो तो एसे व्यक्ति को राजनीति विरासत में मिलती है. यह योग व्यक्ति को लम्बे समय तक शासन में रखता है. जिसके दौरान उसे लोकप्रियता व वैभव की प्राप्ति होती है|
राजनीति क्षेत्र के योग
सूर्य एवं राहु बली होना चाहिए। दशमेश स्वगृही हो अथवा लग्न या चतुर्थ भाव में बली होकर स्थित हो।
दशम भाव में पंचमहापुरूष योग हो एवं लग्नेश भाग्य स्थान में बली हो तथा सूर्य का भी दशम भाव पर प्रभाव हो।
यदि चतुर्थेश, नवमेश और दशमेश केंद्र या त्रिकोण में हो तथा उनका परस्पर दृष्टि या युति संबंध हो तो ऐसे जातक के पास बलिष्ठ राजनीतिक शक्ति होती है।
कुंडली में नीचत्व भंग योग इसमें सफल बनाता है। दूसरे एवं पांचवें भाव में क्रमशः बली गुरु, शनि, राहु व मंगल हों।
यदि सौम्य ग्रह अस्त न हो और नवम भाव में स्थित होकर मित्र ग्रहों से युक्त या दृष्ट हों तथा चंद्र पूर्ण बली होकर मीन राशि में स्थित हो एवं इसे मित्र ग्रह देखते हों।
शनि दशम भाव में हो या दशमेश से संबंध बनाये तथा साथ में दशम भाव में मंगल भी हो।
सूर्य, चंद्र, गुरु व बुध दूसरे भाव में हो, मंगल छठे भाव में हो, शनि 11वें व 12 वें में राहु हो तो राजनीति विरासत में ही मिलती है।
दशम भाव में बली मंगल व सूर्य हो या इनका प्रभाव हो तो व्यक्ति राजनीती में जाता है|
राहु का संबंध 3, 6, 7, 10, 11वें भाव से हो तो राजनीति में सफलता देता है।
दशम में सूर्य व शनि हो, इन पर चंद्र, गुरु का प्रभाव हो, तथा राहु षष्ठ भाव में हो तो व्यक्ति राजनीतिज्ञ होता है।
कुंडली में भाव परिवर्तित हो तथा इनका संबंध केंद्र या त्रिकोण से हो।
यदि दशम सत्ता भाव में लग्नेश और दशमेश का स्थान परिवर्तन योग बन रहा हो तो व्यक्ति राजनीती के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है।
यदि 1, 5, 9 एवं 10 भाव में क्रमशः बलवान सूर्य, बृहस्पति, शनि एवं मंगल स्थित हो।
जब लग्नेश अथवा सूर्य, दशम भाव (सत्ता) में हो, मंगल बली होकर केंद्र, त्रिकोण या शुभ भावों में स्थित हो ऐसा व्यक्ति राजनीती में सफल होता है|
दशम आजीविका भाव बलवान होना चाहिये। अर्थात् यह भाव किसी भी प्रकार से कमजोर नहीं होना चाहिये। दशम भाव में कोई भी ग्रह नीच का नहीं होना चाहिये चाहे वह नीचत्व भंग ही क्यों न हो जाये तथा त्रिकेश दशम भाव में नहीं होने चाहिये।
जिस जातक की जन्मपत्री में 3 या 4 ग्रह बली हों अर्थात् उच्च, स्वगृही या मूल त्रिकोण में हों तो जातक मंत्री या राज्यपाल पद को प्राप्त कर इसमें सफल होता है।
जिस जातक के 5 या 6 ग्रह बलवान हों अर्थात उच्च, स्वगृही या मूल त्रिकोण में हो तो ऐसा जातक गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद भी राज्य शासन कर सफल रहता है।
जब लग्न भाव में गजकेसरी योग के साथ मंगल हो या इन तीनों में से दो ग्रह मेष राशि/लग्न में हो।
दशमेश बली हो तथा दशमस्थ ग्रह बली हो अर्थात उच्च, स्वगृही, मूल त्रिकोण व मित्रराशिगत हों।
जब कर्क या सिंह राशि जन्म लग्न में हो या जन्म राशि से दशम भाव का नवांश इन दोनों राशियों से संबंधित हो तो राजनीति में सफल होकर मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री आदि उच्च पद प्राप्त करता है।
यदि त्रिक भाव - 6, 8, 12 के स्वामी स्वगृही हों तो राजनीति में सफलता देते हैं।
कर्क लग्न की कुंडली में यदि नवमेश गुरु लग्न में हो अर्थात उच्च का हो, दशमेश मंगल द्वितीय भाव में सिंह राशि में स्थित हो, लग्नेश चन्द्रमा चतुर्थ भाव में तुला राशि में हो, नवमस्थ राहु से दृष्ट हो, शुक्र एकादश भाव में स्वगृही हो, बुधादित्य योग पर शनि का प्रभाव हो।
कन्या लग्न की कुंडली में लग्नेश बुध द्वितीय भाव में सूर्य के साथ बुधादित्य योग में हो, राहु नवम भाव में नवमेश शुक्र, गुरु व केतु से दृष्ट हो, एकादशेश चंद्र लाभ भाव में स्वगृही हो तथा साथ ही मंगल शनि भी स्थित हों और इन पर गुरु की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक राजीनति में श्रेष्ठ पदों पर होता है।