पुत्र की दीर्घायु के लिए इस मुहूर्त में करें अहोई अष्टमी पूजा / Ahoi Ashtami 2023 Puja | Future Point

पुत्र की दीर्घायु के लिए इस मुहूर्त में करें अहोई अष्टमी पूजा / Ahoi Ashtami 2023 Puja

By: Future Point | 23-Oct-2021
Views : 3894पुत्र की दीर्घायु के लिए इस मुहूर्त में करें अहोई अष्टमी पूजा / Ahoi Ashtami 2023 Puja

करवाचौथ के बाद कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन अहोई अष्टमी / Ahoi Ashtami का व्रत किया जाता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर अपनी संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।

इस दिन विधि-विधान के साथ माता अहोई की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। अहोई अष्टमी व्रत के साथ ही इस दिन भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा भी की जाती है।

अहोई अष्टमी का व्रत संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है। इतना ही नहीं, संतान प्राप्ति के लिए इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं। कहते हैं कि जिन महिलाओं की संतान दीर्घायु न हो रही हो या फिर गर्भ में ही मृत्यु हो रही हो उन महिलाओं के लिए भी अहोई अष्टमी का व्रत काफी शुभ माना जाता है।

इस साल अहोई अष्टमी का व्रत 28 अक्तूबर को रखा जाएगा। करवा चौथ के चार दिन बाद अष्टमी के दिन अहोई का व्रत रखा जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह से व्रत रखती हैं और भूखी रहती हैं।

रात को तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। वहीं, कई जगह महिलाएं इस दिन भी चांद देखकर व्रत खोलती हैं।

कौन है अहोई माता / Who is Ahoi Mata-

वास्तव में अहोई का तात्पर्य है कि अनहोनी को भी बदल डालना। उत्तर भारत के विभिन्न अंचलों में अहोईमाता का स्वरूप वहां की स्थानीय परंपरा के अनुसार बनता है। सम्पन्न घर की महिलाएं चांदी की होई बनवाती हैं। जमीन पर गोबर से लीपकर कलश की स्थापना होती है।

अहोई के चित्रांकन में ज्यादातर आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है। उसी के पास साही तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। करवा चौथ के ठीक चार दिन बाद अष्टमी तिथि को देवी अहोई माता का व्रत किया जाता है। यह व्रत पुत्र की लम्बी आयु और सुखमय जीवन की कामना से पुत्रवती महिलाएं करती हैं। कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में यह व्रत रखा जाता है इसलिए इसे अहोई अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।

अहोई अष्टमी का व्रत एक माँ के लिए अपने पुत्र के प्रति प्यार-स्नेह और समर्पण को दर्शाता है। अहोई अष्टमी व्रत हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत को माँ अपने पुत्र की दीर्घायु की कामना के लिए रखती हैं। एक माँ सदैव अपने पुत्र के सुखी और स्वस्थ्य जीवन के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं।

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अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त 2023 / Ahoi Ashtami Puja Muhurta 2023

पूजा समय - सांय 05:42 से 07:00 तक (5 नवंबर 2023)

तारों के दिखने का समय - सांय 05:57 बजे

चंद्रोदय - 12:02 AM (6 नवंबर 2023)

अष्टमी तिथि प्रारम्भ - दोपहर 12 बजकर 59 मिनट (5 नवंबर 2023) से

अष्टमी तिथि समाप्त - सुबह 03 बजकर 18 मिनट (6 नवंबर 2023) तक

पूजा विधि / Puja Vidhi

अहोई अष्टमी के व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान करें और पूजा के समय पुत्र की लंबी आयु और उसके सुखमय जीवन की कामना करें। इसके पश्चात् अहोई माता की पूजा करते हुए ये संकल्प करें कि मैं अपने पुत्र की लम्बी आयु एवं सुखमय जीवन के लिए अहोई माता का व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरे सभी पुत्रों को दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य एवं सुखी रखें।

अहोई माता की पूजा के लिए लाल गेरू से दीवाल पर अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों का चित्र अंकित करें। फिर उनके सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़े रखें और सुबह दीपक जलाकर कथा पढ़ें। कथा पढ़ते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी के पल्लू में बांध लेते हैं। 

अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है।

पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुने और सुनाएं। पूजा के पश्चात अपनी सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करती है।

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अहोई अष्टमी व्रत कथा / Ahoi Ashtami fasting story -

प्राचीन काल में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहुकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी।

दीपावली / Deepavali  पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ चली गई। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याही (साही) अपने बेटों से साथ रहती थी।

मिट्टी काटते हुए ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याही का एक बच्चा मर गया। स्याही इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।

स्याही के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक एक कर विनती करती रही कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें।

सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे हुए वे सात दिन बाद मर जाते थे। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा।

पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। पंडित के कहेनुसार वह सुरही गाय की सेवा करने लगी। सुरही सेवा से प्रसन्न हुई और उसे स्याही के पास ले गई।

रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगी, तभी अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र एक ओर गई, उसने देखा कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है, यह देखकर उसने सांप को मार डाला।

उसी वक्त गरुण पंखनी प्रकट हुई और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगा कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।

छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याही के पास पहुंचा देती है।

वहां स्याही छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याही के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है "अनहोनी से बचाना " जैसे साहुकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।

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अहोई माँ की आरती / Ahoi Maa Aarti -

जय अहोई माता, जय अहोई माता!

तुमको निसदिन ध्यावत हर विष्णु विधाता। टेक।।

ब्रह्माणी रुद्राणी, कमला तू ही है जगमाता।

सूर्य-चंद्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।। जय।।

माता रूप निरंजन सुख-सम्पत्ति दाता।।

जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।। जय।।

तू ही पाताल बसंती, तू ही है शुभदाता।

कर्म-प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता।। जय।।

जिस घर थारो वासा वाहि में गुण आता।।

कर न सके सोई कर ले मन नहीं धड़काता।। जय।।

तुम बिन सुख न होवे न कोई पुत्र पाता।

खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता।। जय।।

शुभ गुण सुंदर युक्ता क्षीर निधि जाता।

रतन चतुर्दश तोकू कोई नहीं पाता।। जय।।

श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता।

उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।। जय।।

''श्री''

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