नवरात्रि के प्रथम दिवस - माँ शैलपुत्री की कथा एवं पूजा विधि ।
By: Future Point | 04-Apr-2019
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नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती है, पुराणों में ये कथा प्रसिद्ध है कि हिमालय के तप से प्रसन्न होकर आदिशक्ति उनके यहाँ पुत्री के रूप में अवतरित हुईं इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा, माँ शैलपुत्री नंदी के वृषभ पर सवार होती हैं और इनके दाहिने हाथ मे त्रिशूल और बाएं हाथ मे कमल का पुष्प है।
मां शैलपुत्री की व्रत कथा :
एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है।
कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।‘ शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं।
केवल उनकी माता ने ही स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत कष्ट पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहां चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से भर उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को उसी समय वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दु:खद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।
माँ शैलपुत्री की पूजा विधि –
- माँ शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें
- और उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं
- इसके ऊपर केशर से शं लिखें
- और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति एक सुपारी रखें
- इसके बाद हाथ मे लाल पुष्प लेकर माँ शैलपुत्री का ध्यान इस मंत्र के साथ के करें ॐ ऐं हीं क्लीं चामुंडाय विच्चे ओम शैलपुत्री देव्यै नमः
- मन्त्र के साथ ही हाथ मे लिए पुष्प, मनोकामना सुपारी माँ की तस्वीर के ऊपर छोड़ दें
- इसके बाद भोग प्रसाद अर्पित करें
- इसके बाद माँ शैलपुत्री के मंत्र का एक सौ आठ बार जाप करें ॐ शं शैलपुत्री देव्यै नमः
- ये मन्त्र संख्या पूर्ण होने के बाद माँ के चरणों मे अपनी मनोकामना को व्यक्त करके माँ से प्रार्थना करें और श्रद्धा से आरती कीर्तन करें।
माँ शैलपुत्री को ये भोग लगाएं –
माँ शैलपुत्री के चरणों मे गाय का घी अर्पित करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और उनका मन एवं शरीर दोनो निरोगी रहता है।
माँ शैलपुत्री की उपासना के लिए मन्त्र –
वन्दे वाञ्छित लाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम ।
वृषारूढ़ा शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम ।।
नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ कराना बहुत लाभदायक होगा –
ऐसा माना जाता है कि दुर्गा सप्तशती पाठ विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान करने से मूल निवासी सभी प्रकार की परेशानियोंऔर बुरी किस्मत से बाहर निकलता है।
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