नवरात्री का नौंवा दिवस - माँ सिद्धिदात्री के स्वरूप् की कथा, महत्व एवं पूजा विधि ।
By: Future Point | 04-Apr-2019
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नवरात्री के नौंवे दिन माँ दुर्गा जी के सिद्धिदात्री स्वरूप् की पूजा की जाती है. माँ सिद्धिदात्री की उपासना से आपको जीवन में अद्भुत सिद्धि,क्षमता की प्राप्ति होती है और तमाम सिद्धियों की भी प्राप्ति होती है. माँ सिद्धिदात्री उन सभी भक्तो को महा विद्धाओं की अष्ट सिद्धियों को प्रदान करती हैं जो सच्चे मन से उनके लिए आराधना करते हैं, मान्यता है कि सभी देवी देवताओ को भी माँ सिद्धिदात्री से ही सिद्धियों की प्राप्ति हुयी है।
माँ सिद्धिदात्री के स्वरूप् का महत्व एवं कथा –
शास्त्रो के अनुसार ऐसी मान्यता है कि माँ पार्वती ने महिषासुर नामक राक्षस को मारने के लिए दुर्गा जी का स्वरूप् लिया था. महिषासुर एक राक्षस था जिससे मुकाबला करना सभी देवताओ के लिए मुश्किल हो गया था इसलिए आदि शक्ति ने दुर्गा जी का रूप धारण किया और महिषासुर से आठ दिनों तक वध किया और नौंवे दिन महिषासुर का वध कर दिया उसके बाद से नवरात्री का पूजन किया जाने लगा और नौंवे दिन को महा नवमी के दिन से पूजा जाने लगा.
माँ सिद्धिदात्री हमारे शुद्ध तत्वों की वृद्धि करते हुए हमारी अंतरात्मा को दिव्य पवित्रता से परिपूर्ण करती हैं और हमे सत्कर्म करने की प्रेरणा देती हैं. माँ सिद्धिदात्री की शक्ति से हमारे भीतर ऐसी शक्ति का संचार होता है जिससे हम तृष्णा व वासनाओ को नियंत्रित करने में सफल रहते हैं और जीवन में संतुष्टि की अनुभूति करते हैं. माँ का दैदीप्यमान स्वरूप् हमारी सुषुप्त मानसिक शक्तियो को जाग्रत करते हुए हमे नियंत्रण करने की शक्ति व सामर्थ्य प्रदान करता है इससे हम अपने जीवन में निरन्तर उन्नति करते जाते हैं।
माँ सिद्धिदात्री और नवमी की पूजा विधि –
- सर्वप्रथम कलश व उसमे उपस्थित सभी देवी देवताओ की पूजा करें
- इसके बाद माँ सिद्धिदात्री को प्रणाम करते हुए इस मन्त्र का जप करें सिद्ध गन्धर्व यक्षा धैर सुरैर मरैरपि, सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी
- माँ सिद्धिदात्री को नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के फल चढ़ाये जाते हैं, नवरस युक्त भोजन और नवान्ह प्रसाद होता है
- माँ सिद्धिदात्री की आरती करें
- माँ सिद्धिदात्री की पूजा विधि करते समय इस मन्त्र का जप करें ॐ सिद्धिदात्री देव्यै नमः
- कन्याओ का पूजन करें और उन्हें भोजन कराएं
- हवन करें, माँ सिद्धिदात्री की पूजा में हवन करने के लिए दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोको का प्रयोग किया जा सकता है।
माँ सिद्धिदात्री का ध्यान मन्त्र -
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
माँ सिद्धिदात्री का स्तोत्र पाठ -
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
माँ सिद्धिदात्री का कवच -
ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥