नवरात्रि चौथा दिन: इस प्रकार कीजिये माँ कुष्मांडा की पूजा आराधना
By: Future Point | 21-Sep-2022
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नवरात्र-पूजन के चैथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। त्रिविध ताप युक्त संसार इनके उदर में स्थित हैं, इसलिए ये भवगती ‘कूष्माण्डा’ कहलाती हैं। ईषत् हंसने से अण्ड को अर्थात् ब्रह्माण्ड को जो पैदा करती हैं, वही शक्ति कूष्माण्डा हैं। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। आश्विन नवरात्रि के चौथे दिन की सही पूजन विधि, इस दिन पूजा में शामिल किया जाने वाला मंत्र क्या होता है, साथ ही जानते हैं माँ कुष्मांडा की व्रत कथा,
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।
कूष्माण्डा देवी का स्वरुप :-
दुर्गासप्तशती के अनुसार देवी भगवती के कूष्मांडा स्वरूप ने अपनी मंद मुस्कुराहट से ही सृष्टि की रचना की थी इसलिए देवी कुष्मांडा को सृष्टि की आदि स्वरूपा और आदि शक्ति माना गया है। माँ कुष्मांडा को समर्पित इस दिन का संबंध हरे रंग से जाना जाता है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा देनवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।
आराधना महत्व :-
माँ कूष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते हैं। देवी आयु, यश, बल और आरोग्य देती हैं। शरणागत को परम पद की प्राप्ति होती है। इनकी कृपा से व्यापार व्यवसाय में वृद्धि व कार्यक्षेत्र में उन्नति, आय के नये मार्ग प्राप्त होते है।
माँ कुष्मांडा की पूजा से मिलने वाला फल
हमेशा माँ कुष्मांडा विशेष कृपा अपने भक्तों पर बनाए रखती हैं। जो भक्त माँ कुष्मांडा की पूजा-आराधना भक्ति-भाव से करता है। उनके जीवन में शान्ति बनी रहती है और सुख समृद्धि तथा लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इसके अलावा यदि सही पूजन विधि के साथ माँ कुष्मांडा की पूजा की जाए तो इससे जातक को हर कार्य में सफलता मिलती है, उनके जीवन से भय, दुख, दूर होता है। साथ ही बीमारियों और रोग से भी निजात मिलती है। माँ कुष्मांडा की भक्ति से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है।
इस विधि से करें माँ की पूजा -
नवरात्र के चौथे दिन सुबहः जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले पूजा स्थान पर गंगाजल का छिड़काव करें।
उसके पश्चात् देवी कुष्मांडा का ध्यान करें।
फिर कलश और उसमें उपस्थित सभी देवी देवताओं की पूजा करें।
उसके पश्चात् देवी कुष्मांडा की प्रतिमा के दोनों तरफ विराजत देवी देवताओं की पूजा करें।
इसके बाद माँ कुष्मांडा की पूजा-आराधना प्रारंभ करें।
पूजा शुरू करने से पहले अपने हाथ में फूल लेकर देवी को प्रणाम करें और देवी का ध्यान करें। इस दौरान आप इस मंत्र का स्पष्ट उच्चारण पूर्वक जप अवश्य करें, ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
इसके बाद सप्तशती मंत्र, उपासना मंत्र, कवच, दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
पूजा के अंत में आरती अवश्य करें। इस दौरान अनजाने में भी हुई खुद से किसी भी भूल की देवी से क्षमा मांग लें।
देवी कुष्मांडा प्रार्थना मंत्र -
''सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥''
देवी कुष्मांडा स्तुति -
''या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥''
माँ कुष्मांडा की महिमा -
देवी भागवत पुराण के अनुसार नवरात्र के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा-आराधना करना उत्तम होता है। देवी कुष्मांडा का यह स्वरूप माँ पार्वती के विवाह के बाद से लेकर उनकी संतान कार्तिकेय की प्राप्ति के बीच का बताया गया है। कहते हैं देवी ने अपने इस रूप में ही संपूर्ण सृष्टि की रचना की और उनका पालन किया था। ऐसे में जिन लोगों को संतान को संतान होने में बाधा आती है उन्हें कुष्मांडा के स्वरूप की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
देवी कुष्मांडा का प्रिय भोग -
नवरात्रि पूजा में सही पूजन विधि के साथ-साथ भोग का अधिक महत्व बताया गया है। कहते हैं इस 9 दिनों की अवधि में यदि देवी के विभिन्न स्वरूपों के अनुरूप उन्हें भोग अर्पित किया जाए तो इससे भी व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है। ऐसे में जान लेते हैं देवी कुष्मांडा का प्रिय भोग क्या है।
माँ कुष्मांडा को कद्दू या जिसे पेठा भी कहते हैं वह बहुत प्रिय है। ऐसे में आप नवरात्र के चौथे दिन माँ कुष्मांडा को कद्दू या फिर पेठा अर्पित करें।
इसके पश्चात् नवरात्र के चौथे दिन की पूजा में देवी कूष्मांडा को मालपुए का प्रसाद, कद्दू का हलवा, कद्दू से बनी मिठाइयां, या हरे रंग के फल भी भोग रूप में अर्पित कर सकते हैं।
माँ कुष्मांडा की पूजा से ये गृह देने लगता है शुभ प्रभाव -
नवरात्रि में 9 दिनों की पूजा से नौ ग्रहों को मजबूत भी किया जा सकता है। ऐसे में इस कड़ी में नवरात्रि के चौथे दिन की विधिवत पूजा करने से कुंडली में बुध ग्रह को मजबूत किया जा सकता है। इसके प्रभाव से व्यक्ति की बुद्धि प्रखर होती है और बुध ग्रह के शुभ परिणाम भी प्राप्त होते हैं।
माँ कुष्मांडा से संबंधित पौराणिक कथा -
देवी कुष्मांडा से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक समय में जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब देवी ने अपनी मंद मुस्कुराहट से ब्रह्मांड की रचना की थी। देवी का निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में माना गया है। कहते हैं सूर्यमंडल के भीतर निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल माँ कुष्मांडा में ही होती है। माँ का शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के ही समान मानी गई है। देवी कूष्मांडा को कुष्मांड यानी कुम्हड़े की बली दिए जाने का भी विशेष महत्व होता है। इसकी बली से व्यक्ति के जीवन की हर तरह की परेशानियां दूर हो जाती हैं। सही विधि से पूजा की जाये तो कूष्मांडा देवी की पूजा से समृद्धि और तेज भी प्राप्त होता है।