मोहिनी एकादशी विशेष- महत्व, व्रत एवं कथा । | Future Point

मोहिनी एकादशी विशेष- महत्व, व्रत एवं कथा ।

By: Future Point | 14-May-2019
Views : 8102मोहिनी एकादशी विशेष- महत्व, व्रत एवं कथा ।

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है और यह एकादशी का व्रत अन्य एकादशियों की तुलना में अधिक पुण्य दायी माना जाता है, मोहिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापों तथा दुखों से छूट कर मोहजाल से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है।

मोहिनी एकादशी का महत्व-

मोहिनी एकादशी के विषय में मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद अमृत पान के लिए दानव व देवताओं में विवाद की स्थिति बनी, दानवों की अमृत पान करने की प्रबल स्थिति को देख कर के भगवान् विष्णु जी ने मोहिनी स्वरूप् धारण किया और दानवों को मोहित कर लिया, मोहित करने के पश्चात् उन्होंने दानवों से वह अमृत कलश ले लिया और देवताओं को सौंप दिया, यानि देवताओं को अमृत पान करा दिया, देवता गण अमृत पान करके अमर हो गए, जिस दिन भगवान् विष्णु जी ने यह मोहिनी स्वरूप् धारण किया था उसी दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी थी, भगवान् विष्णु जी के इस मोहिनी स्वरूप् का पूजन मोहिनी एकादशी के दिन किया जाता है।

2019 में मोहिनी एकादशी तिथि व मुहूर्त-

इस वर्ष 2019 में मोहिनी एकादशी 15 मई बुधवार के दिन होगी.

एकादशी तिथि आरंभ- 14 मई 2019 को दोपहर 12 बजकर 59 मिनट पर ।

एकादशी तिथि समाप्त- 15 मई 2019 को सुबह 10 बजकर 36 मिनट पर ।

एकादशी पारण का समय – 16 मई 2019 को प्रातः 5 बजकर 28 मिनट से 8 बजकर 2 मिनट तक ।

मोहिनी एकादशी व्रत विधि –

  • एकादशी का व्रत पुराणों के अनुसार दशमी तिथि को ही आरम्भ हो जाता है, अतः दशमी के दिन शाम को यानि सूर्यास्त के बाद से भोजन बिल्कुल नही करना चाहिए,रात्रि में भगवान् का स्मरण करते हुए सोना चाहिए,
  • एकादशी तिथि के दिन आपको कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए जैसे कि जो भी व्रती है उसका मन पूर्ण रूप से शांत और स्थिर रहना चाहिए किसी भी प्रकार की राग द्वेष की भावना मन में नही रखनी चाहिए और क्रोध व निंदा से भी बचना चाहिए और साथ में इस बात का ध्यान भी अवश्य रखना चाहिए कि आहार में कुछ चीजें नही लेनी चाहिए अगर आप व्रत नही भी कर रहे हैं तो भी आपको एकादशी के दिन मसूर, उड़द, चना व चावल और मास मदिरा का सेवन बिल्कुल भी नही करना चाहिए,
  • एकादशी के दिन प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर के भगवान् विष्णु जी का पूजन करना चाहिए।
  • पूजा में तुलसी, ऋतुफल और तिल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
  • इसके पश्चात् जो भी व्रती हैं उन्हें दिन भर निराहार रहना चाहिए और शाम को पूजा करने के पश्चात् फल ग्रहण करना चाहिए।
  • एकादशी पर रात्रि में जागरण का बहुत महत्व होता है तो अगर सम्भव हो तो रात्रि में भगवान का भजन, कीर्तन करना चाहिए।
  • एकादशी के दिन विष्णु जी का सहस्त्र पाठ करने से भगवान् विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त होती हैं।
  • इसके पश्चात् अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात् ही स्वयं भोजन करना चाहिए।

मोहिनी एकादशी कथा -

पौराणिक कथाओं के अनुसार सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करते थे। उस राज्य में धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता था। वह धर्म का पालन करनेवाला और भगवान विष्णु का भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएं, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए। उसके पांच पुत्र थे- ‘सुमना’, ‘सद्‍बुद्धि’, ‘मेधावी’, ‘सुकृति’ और ‘धृष्टबुद्धि’। इनमें से पांचवां पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह भगवान और पितर आदि को नहीं मानता था। वह वेश्याओं के साथ रहता था, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता था। उसे मांस-मंदिरा की लत थी।

इस प्रकार के अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था। एक दिन उसे चौराहे पर एक वेश्या के साथ घूमते देखा गया, इस पर पिता ने उसे घर से निकाल दिया. घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सब कुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया। एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगर से निकल जाने का आदेश दिया।

वह नगरी से निकल वन में चला गया। वहां वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा, एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा में स्नान से लौट रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्‍बुद्धि प्राप्त हुई। वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि- ऋषिवर, मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण और सरल उपाय बताएं। उसके वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी एकादशी का व्रत करो। इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएंगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक गया। इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता है।