Mauni Amavasya 2020: जानिए, स्नान, दान और मौन रहने का महत्व
By: Future Point | 16-Jan-2020
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मौन में जो अभिव्यंजना है
शब्द में वो अभिव्यक्ति नहीं है...
अर्थात्, जो कहकर नहीं बोला जा सकता, वह मौन रहकर बोला जा सकता है।
हिंदू, बौद्ध और जैन समेत सभी धर्मों में मौन का विशेष महत्व है। विभिन्न धर्मग्रंथों के अनुसार मौन से ही आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत होती है। मौन रहकर ही हम प्रकृति के करीब पहुंचते हैं। खुद को संयमी बनाते हैं। आंतरिक शांति का आभास करते हैं।
मौन रहने के लिए साल के कुछ दिनों का विशेष महत्व है। मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya 2020) एक ऐसा ही दिन है। इस दिन मौन व्रत रखकर स्नान-दान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। इसे दुख-दूर करने और आत्म संयम की शक्ति प्रदान करने वाली अमावस्या कहा गया है।
मौनी अमावस्या 2020: तिथि और शुभ मुहूर्त
मौनी अमावस्या इस साल 24 जनवरी को है। इसका शुभ मुहूर्त ये रहा:
- अमावस्या तिथि प्रारंभ: रात के 11: 47 बजे (जनवरी 23, 2020)
- अमावस्या तिथि समाप्त: सुबह 12: 41 बजे (जनवरी 25, 2020)
क्या है मौनी अमावस्या?
माघ मास में पड़ने के कारण इसे माघ या माघी अमावस्या (Magh Amavasya 2020) कहते हैं। क्योंकि इस दिन मौन रहा जाता है इसलिए इसे मौनी अमावस्या या मौनी अमावस भी कहा जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन ऋषि मुनि का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन को मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन श्रद्धालु स्नान-दान कर मौन व्रत का संकल्प लेते हैं और अपने पितरों को तर्पण देते हैं। इसके अलावा इस दिन विष्णु और शिव की पूजा भी की जाती है।
मौनी अमावस्या का महत्व
शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार तप करने के लिए मौनी अमावस्या के दिन का विशेष महत्व है। इस दिन संगम पर पवित्र नदियों में स्नान, दानादि किया जाता है। इस दिन ऋषि-मुनियों की भांति मौन धारण कर तप किया जाता है और मन ही मन ईश्वर की आराधना की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से आप पर ईश्वर की कृपा बनी रहती है। आपके सभी कष्ट दूर होते हैं और आपकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
इस बार मौनी अमावस्या के दिन एक विशेष संयोग बन रहा है जिससे इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। 29 साल बाद शनि इस दिन अपनी स्व-राशि मकर (Capricon) में गोचर करेंगे (Saturn Transit 2020) और लगभग ढाई साल इसी राशि में रहेंगे। शनि बेहद धीमी गति से चलते हैं लेकिन ज्योतिष शास्त्र में इनकी चाल को बेहद अहम माना गया है। शनि मोक्ष प्रदान करने वाला एकमात्र ग्रह है। इसलिए जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष योग है उनके लिए इस दिन पितृदोष पूजा करवाना अत्यंत लाभदायी होगा।
मौनी अमावस्या पर स्नान-दान का महत्व
मौनी अमावस्या के दिन स्नान और दान करने का विशेष महत्व है। इसे माघ माह के सबसे पवित्र दिनों में गिना जाता है। शास्त्रों में मौनी अमावस्या के दिन को मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2020) के बाद माघ स्नान (Magh Snan 2020) के लिए दूसरा सबसे पवित्र दिन माना गया है। शास्त्रों में इसका उल्लेख करते हुए कहा गया है:
“सत युग में जो पुण्य तप से मिलता है, द्वापर में हरि भक्ति से, त्रेता में ज्ञान से, कलियुग में दान से, लेकिन माघ मास में इस दिन संगम स्नान हर युग में पुण्यदायी होगा।”
ऐसी मान्यता है कि इस दिन नदियों का जल अमृत के समान पवित्र हो जाता है। महाभारत और पुराणों में समुद्र मंथन की कथा में इसका उल्लेख मिलता है। इस कथा के अनुसार जब भगवान धनवन्तरी समुद्र मंथन से अमृत रूपी कलश लेकर लौटते हैं तो उसे पाने के लिए देवताओं और असुरों में खींचा-तानी शुरु हो जाती है जिससे अमृत की कुछ बूंदे इलाहबाद, नासिक, उज्जैन और हरिद्वार में जा गिरीं। इससे इन नदियों का जल पवित्र हो गया।
मौनी अमावस्या के दिन क्या करें दान
मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखने और दान करने का अत्यधिक महत्व है। मौनी अमावस्या के दिन आपको तेल, तिल, गुड़, सूखी लकड़ी, स्वेटर, जूते, कंबल आदि शीत निवारक वस्तुएं दान करनी चाहिए। जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा नीच हो उन्हें इस दिन दूध, चावल, बताशे, सूखे मेवे दान करना चाहिए।
मौनी अमावस्या 2020: इस दिन मौन रहने का महत्व
मौनी अमावस्या के दिन मौन रहकर व्रत किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन मौन धारण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। अमावस्या के दिन क्योंकि चंद्रमा के दर्शन नहीं होते इसलिए ज्योतिषियों ने इस दिन मन को संयम में रखने के लिए मौन रहने की सलाह दी है। लेकिन मौन धारण करने का अर्थ यहां शून्यता से नहीं है। मौन का अर्थ महज़ होठों का न चलना नहीं बल्कि आंतरिक और बाहृय दोनों तरह से मौन हो जाना है।
अधिक और अनावश्यक बोलने से गला सूख जाता है। कई दफ़ा कुछ बुरा बोलने से घर में तनाव जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे प्रियजनों के साथ आपके रिश्ते बिगड़ जाते हैं। ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक ग्रह कहा गया है। अमावस्या के दिन इसके दर्शन न होने से मन विचलित रहता है। आपके सोचने की शक्ति कमज़ोर पड़ सकती है। इसलिए इस दिन मौन रहकर आप वाणी पर संयम रख सकते हैं और कुछ बुरा बोलने से बच जाते हैं। लेकिन मौन भी कई तरह के हो सकते हैं। भय के कारण अगर आप मौन हैं तो फ़िर यह साधुता नहीं, कायरता है। मौन का उद्देश्य भौतिकता से परे आध्यात्मिकता की ओर बढ़ना है। प्रकृति के करीब पहुंचना है। मौन रहकर भी गतिशील रहना है। इस दिन उसी प्रकार मौन रहा जाता है जिस तरह पुराने समय में ऋषि मुनि मौन रहकर ईश्वर को याद करते थे।
मौनी अमावस्या पूजन विधि और मंत्र
मौनी अमावस्या के दिन इस तरह भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करें:
- मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदी गंगा में स्नान करें। यदि आप घर में हैं और स्नान करने के लिए तीर्थराज प्रयाग जाना संभव ना हो तो नहाने के पानी में गंगा जल की कुछ बूंदें मिलाकर स्नान करें। स्नान करते वक्त पवित्र नदियों को याद करें और इस मंत्र का जाप करें:
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।।
- स्नान करने के बाद पूरे दिन मौन व्रत रखने का संकल्प लें और भगवान विष्णु और भगवान शिव का ध्यान करें।
- भगवान विष्णु और भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें पीले फूल अर्पित कर धूप-दीप जलाकर घर की परंपरा के अनुसार उनकी पूजा करें।
- हल्दी माला (Haldi Mala) के साथ इस मंत्र का 108 बार जाप करें:
ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:
- इसके बाद भगवान शिव और भगवान विष्णु को तिल, गुड़, लड्डू और फल का भोग लगाएं। आरती कर मौनी अमावस्या की कथा सुनें।
- पूजा समाप्त होने के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराएं। गरीबों में अन्न, तिल, गुड़, जूते, स्वेटर कंबल आदि दान करें।
- यदि आप आर्थिक रूप से संपन्न परिवार से हैं तो इस दिन गोदान, भूदान और स्वर्णदान करें।
- इस दिन पितरों का तर्पण करें। इससे उनकी आत्मा को शांति मिलेगी।
- यदि आपकी कुंडली में पितृ दोष है तो इस दिन पितृदोष पूजा कराने से आपको विशेष लाभ होगा।
- इस बार मौनी अमावस्या के दिन (24 जनवरी को) शनि मकर राशि में गोचर कर करेंगे जिसका प्रभाव सभी राशियों पर पड़ेगा। आप पर शनि देव की कृपा बनी रहे इसके लिए आप शनि यंत्र (Shani Yantra) धारण करें। साथ ही प्रत्येक शनिवार को मंदिर में तेल दान करें।
- इस दिन शनि शांति पूजा (Shani Shanti Puja) पूजा कराने से आपको विशेष लाभ होगा।
मौनी अमावस्या को पूरे दिन मौन व्रत रखा जाता है। अगर आपके लिए पूरे दिन मौन रहना संभव न हो तो जितना संभव हो सके वाणी पर संयम रखने का प्रयास करें। किसी के बारे में कुछ बुरा या कटु शब्द न बोलें। शाम को कुछ मीठा बनाकर खाएं।
मौनी अमावस्या व्रत कथा
शास्त्रों एवं पुराणों में मौनी अमावस्या से जुड़ी कई कथाएं मिलती हैं। यहां हम आपको मोनी अमावस्या की सबसे प्रचलित कथा सुना रहे हैं:
कांचीपुरम में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम धनवती था। इस ब्राह्मण के 7 पुत्र और 1 पुत्री थी। उसकी पुत्री का नाम गुणवती था।
अपने सभी पुत्रों का विवाह करने के पश्चात उसे अपनी पुत्री के विवाह की चिंता सताने लगी। इसलिए उसने अपने सबसे बड़े पुत्र को पुत्री के लिए वर खोजने के लिए बाहर भेजा।
तभी एक पंडित ने पुत्री की कुंडली देखकर कहा कि सप्तपदी के पश्चात उसके विधवा होने का डर है। तब ब्राह्मण ने पूछा, “पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण बताएं।”
पंडित ने कहा, “सोमवती की पूजा करने से ही यह वैधव्य दोष दूर होगा।” सोमवती का परिचय देते हुए उसने कहा कि वह एक धोबिन है। इसके बाद गुणवती का छोटा भाई ,बहन को सिंहल द्वीप ले गया। लेकिन समुद्र पार करने में खुद को असमर्थ पाकर दोनों एक वृक्ष के नीचे बैठ गएं। इस वृक्ष पर घोंसला बनाकर गिद्धों का एक परिवार रह रहा था। गिद्ध के बच्चों की मां उस वक्त घोंसले में मौजूद नहीं थी और गिद्ध के बच्चे पेड़ के नीचे दोनों भाई-बहनों के क्रिया-कलाप को देख रहे थे। शाम को जब उनकी मां लौटती है तो उसके बच्चे भूखे-प्यासे होते हैं। मगर फिर भी वे कहते हैं कि पेड़ के नीचे बैठे दोनों भाई बहन सुबह से भूखे हैं। जब तक वे कुछ खा नहीं लेते हम भी कुछ नहीं खाएंगे।
इस पर गिद्धों की मां को दया आ गई। करुणा भरी आवाज़ में उसने कहा कि मैं तुम्हारे मन की बात जान गई हूं। कल सुबह मैं तुम्हे सागर पार सिंहल द्वीप पहुंचा दूंगी। लेकिन पहले कुछ खा लो। जंगल में कंद, मूल, फल जो कुछ भी मिलेगा मैं ले आऊंगी। भाई-बहन ने भोजन किया और अगले दिन गिद्धों की मां की मदद से वे सागर पार सिंहल द्वीप पहुंच गएं। वहां जाकर उन्होंने धोबिन सोमवती का खूब आदर सत्कार किया। उसकी खूब सेवा की। हर रोज़ सुबह वे सोमवती के झोपड़े में झाड़ू बुहारते और मिट्टी लीपते। लेकिन सोमवती को इसके बारे कुछ भी पता नहीं था।
एक दिन सोमवती ने अपनी बहुओं से पूछा, “यह सब कौन करता है?”
उसकी बहुओं ने कहा, “हम ही करते हैं।” मगर सोमा (सोमवती) को विश्वास नहीं हुआ। इसका रहस्य जानने के लिए वह सारी रात जागी और भाई-बहन को अपने सामने झाड़ू बुहारते और मिट्टी लीपते देखा।
सोमवसी ने उनसे बात की तब भाई ने बहन के वैधव्य दोष की बात सोमवती को बताई और अपने साथ कांचीपुरम जाने को कहा। पहले तो सोमवती ने मना किया लेकिन उनकी सेवा से प्रसन्न होकर और उनके अधिक आग्रह करने पर वह मान गई। अपनी बहुओं से उसने कहा कि यदि मेरी अनुस्थिति में किसी की मृत्यु हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना।
उसके बाद बहन गुणवती भाई और सोमवती के साथ कांचीपुरम पहुंच गई। गुणवती का विवाह तय हुआ। खूब धूम-धाम से उसका विवाह हुआ लेकिन सप्तपदी (सातों फेरे लेने) के बाद उसके पति की मृत्यु हो गई। पर सोमवती के पुण्य फलों की कृपा से गुणवती का पति जीवित हो गया।
इसके बाद सोमवती वापिस सिंहल द्वीप को निकल गई। पर इसी दिन सोमवती के पुत्र की मृत्यु हो गई। सोमवती ने पुन: पुण्य फल संचित करने के लिए रास्ते में पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा की और विष्णु के मंत्र का जाप किया। विष्णु की कृपा से सोमवती का पुत्र भी जीवित हो गया।
इस कथा के अनुसार सच्चे मन से सेवा-सत्कार और विष्णु की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।