मासिक सत्यनारायण व्रत विशेष – महत्व, कथा एवं पूजा विधि | Future Point

मासिक सत्यनारायण व्रत विशेष – महत्व, कथा एवं पूजा विधि

By: Future Point | 08-Jun-2019
Views : 10730मासिक सत्यनारायण व्रत विशेष – महत्व, कथा एवं पूजा विधि

हिन्दू धर्म शास्त्र के अनुसार मासिक सत्यनारयण व्रत प्रत्येक महीने की पूर्णिमा को अवश्य किया जाना चाहिए, सत्यनारायण व्रत हिन्दू धर्म से सबसे श्रेष्ठ फलदायी व्रतों में से एक माना जाता है, इस व्रत की महिमा से व्यक्ति को सभी अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्ति होती है, इस दिन भगवान विष्णु की नारायण रूप में आराधना की जाती है, इस व्रत की महिमा से नरक की पीड़ा से भी मुक्ति प्राप्त हो जाती है।

सत्यनारायण व्रत का महत्व -

पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण व्रत करने का विशेष महत्व होता है, कलयुग में इस व्रत कथा को सुनना बहुत ही प्रभावशाली माना गया है, जो लोग पूर्णिमा के दिन कथा नहीं सुन पाते हैं , वे कम से कम भगवान सत्यनारायण का मन में ध्यान कर लें तो भी विशेष लाभ होगा पुराणों में ऐसा भी बताया गया है कि जिस स्थान पर भी श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा होती है, वहां गौरी-गणेश, नवग्रह और समस्त दिक्पाल आ जाते हैं, केले के पेड़ के नीचे अथवा घर के ब्रह्म स्थान पर पूजा करना उत्तम फल देता है।


सत्यनारायन की कथा –

नारद जी भगवान श्रीविष्णु के पास जाकर उनकी स्तुति करते हैं। स्तुति सुनने के अनन्तर भगवान श्रीविष्णु जी ने नारद जी से कहा- महाभाग! आप किस प्रयोजन से यहां आये हैं, आपके मन में क्या है? कहिये, वह सब कुछ मैं आपको बताउंगा, नारद जी बोले – भगवन! मृत्युलोक में अपने पापकर्मों के द्वारा विभिन्न योनियों में उत्पन्न सभी लोग बहुत प्रकार के क्लेशों से दुखी हो रहे हैं। हे नाथ! किस लघु उपाय से उनके कष्टों का निवारण हो सकेगा, यदि आपकी मेरे ऊपर कृपा हो तो वह सब मैं सुनना चाहता हूं उसे बतायें, श्री भगवान ने कहा – हे वत्स!

संसार के ऊपर अनुग्रह करने की इच्छा से आपने बहुत अच्छी बात पूछी है, जिस व्रत के करने से प्राणी मोह से मुक्त हो जाता है, उसे आपको बताता हूं, सुनें। हे वत्स! स्वर्ग और मृत्युलोक में दुर्लभ भगवान सत्यनारायण का एक महान पुण्यप्रद व्रत है, आपके स्नेह के कारण इस समय मैं उसे कह रहा हूं, अच्छी प्रकार विधि-विधान से भगवान सत्यनारायण व्रत करके मनुष्य शीघ्र ही सुख प्राप्त कर परलोक में मोक्ष प्राप्त कर सकता है. भगवान की ऐसी वाणी सनुकर नारद मुनि ने कहा -प्रभो इस व्रत को करने का फल क्या है? इसका विधान क्या है? इस व्रत को किसने किया और इसे कब करना चाहिए?

यह सब विस्तारपूर्वक बतलाइये. श्री भगवान ने कहा – यह सत्यनारायण व्रत दुख-शोक आदि का शमन करने वाला, धन-धान्य की वृद्धि करने वाला, सौभाग्य और संतान देने वाला तथा सर्वत्र विजय प्रदान करने वाला है, जिस-किसी भी दिन भक्ति और श्रद्धा से समन्वित होकर मनुष्य ब्राह्मणों और बन्धुबान्धवों के साथ धर्म में तत्पर होकर सायंकाल भगवान सत्यनारायण की पूजा करे और नैवेद्य के रूप में उत्तम कोटि के भोजनीय पदार्थ को सवाया मात्रा में भक्तिपूर्वक अर्पित करना चाहिए, केले के फल, घी, दूध, गेहूं का चूर्ण अथवा गेहूं के चूर्ण के अभाव में साठी चावल का चूर्ण, शक्कर या गुड़ – यह सब भक्ष्य सामग्री सवाया मात्रा में एकत्र कर निवेदित करनी चाहिए और बन्धु-बान्धवों के साथ श्री सत्यनारायण भगवान की कथा सुनकर ब्राह्मणों को दक्षिणा देनी चाहिए, इसके पश्चात् बन्धु-बान्धवों के साथ ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए, भक्तिपूर्वक प्रसाद ग्रहण करके नृत्य-गीत आदि का आयोजन करना चाहिए, इसके पश्चात् भगवान सत्यनारायण का स्मरण करते हुए अपने घर जाना चाहिए, इस विधि पूर्वक यह व्रत करने से मनुष्यों की अभिलाषा अवश्य पूर्ण होती है।

सत्यनारायण व्रत की पूजा विधि -

  • जो व्यक्ति सत्यनारायण की पूजा का संकल्प लेते हैं उन्हें दिन भर व्रत रखना चाहिए।
  • पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र करके वहां एक अल्पना बनाएं और उस पर पूजा की चौकी रखें।
  • इस चौकी के चारों पाये के पास केले का वृक्ष लगाएं।
  • इस चौकी पर ठाकुर जी और श्री सत्यनारायण की प्रतिमा स्थापित करें।
  • पूजा करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा करें फिर इन्द्रादि दशदिक्पाल की और क्रमश: पंच लोकपाल, सीता सहित राम, लक्ष्मण की, राधा कृष्ण की।
  • इनकी पूजा के पश्चात ठाकुर जी व सत्यनारायण की पूजा करें।
  • इसके बाद लक्ष्मी माता की और अंत में महादेव और ब्रह्मा जी की पूजा करें।
  • सत्यनारायण की पूजा में केले के पत्ते व फल के अलावा पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा की आवश्यकता होती जिनसे भगवान की पूजा होती है।
  • सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है जो भगवान को काफी पसंद है।
  • इसे प्रसाद के तौर पर फल, मिष्टान्न के अलावा आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर एक प्रसाद बनता है जिसे सत्तू कहा जाता है, उसका भी भोग लगता है।
  • पूजा के बाद सभी देवों की आरती करें और चरणामृत लेकर प्रसाद वितरण करें।
  • पुरोहित जी को दक्षिणा एवं वस्त्र दे व भोजन कराएं। पुराहित जी के भोजन के पश्चात उनसे आशीर्वाद लेकर भोजन करें।
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2019 में सत्यनारायण व्रत की विशेष तिथियाँ -

  • 20 जनवरी →दिन सोमवार
  • 19 फरवरी →दिन मंगलवार
  • 20 मार्च →दिन बुधवार
  • 18 अप्रैल →दिन गुरुवार
  • 18 मई →दिन शनिवार
  • 16 जून →दिन रविवार
  • 16 जुलाई →दिन मंगलवार
  • 14 अगस्त →दिन बुधवार
  • 13 सितम्बर →दिन शुक्रवार
  • 13 अक्टूबर →दिन रविवार
  • 12 नवम्बर →दिन मंगलवार
  • 11 दिसम्बर →दिन बुधवार