मेष लग्न
मेष लग्न के लिए शुक्र द्वितीयेश और सप्तमेश है। इस लग्न के दोनों मारक भावों के स्वामी शुक्र हैं अत: मेष लग्न के जातकों के लिए शुक्र की महादशा/अंतर्द्शा धन के पक्ष से अधिक कष्टकारी न होकर स्वास्थ्य के पक्ष से बहुत अधिक चिंताकारक हो सकती है। द्वितीय भाव में यदि कोई ग्रह न हो और सप्तम भाव में स्थित ग्रह त्रिक भावेश होंने की स्थिति में यह द्शा आर्थिक कष्ट ना देकर स्वास्थ्य कष्ट देती है।
आईये अब एक उदाहरण देखते हैं-
मेष लग्न की कुंडली में चंद्र दूसरे भाव, केतु और मंगल छ्ठे भाव, सूर्य व बुध सप्तम भाव, शनि और शुक्र आठवें भाव, राहु व गुरु मीन राशि में द्वादश भाव में स्थित है। मारकेश शुक्र इनके अष्टम भव में हैं और छ्ठे भाव के स्वामी बुध सप्तम भाव में स्थित है। इस व्यक्ति की शुक्र में बुध की दशा में दो शल्य चिकित्सा हुई और यह व्यक्ति लम्बे समय तक इन्हें अस्पताल में रहना पड़ा।
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इसी तरह से ए आर रहमान की कुंडली मेष लग्न और मकर राशि की कुंडली है। 1999 का समय इनके जीवन का सबसे खराब समय था। उस समय अपनी असफलता से परेशान होकर इनके मन में आत्महत्या के ख्याल भी आने लगे थे। सूत्रों की माने तो उस समय इन्होंने आत्महत्या का प्रयास भी किया। उस समय इनकी कुंडली में गुरु महादशा में शुक्र की अंतर्द्शा था। गुरु नवमेश एवं द्वादशेश होकर वक्री अवस्था में लग्न भाव में स्थित है और शुक्र प्रबल मारकेश है। शुक्र महादशा अभी इनके जीवन में नहीं आई है। समय समय पर शुक्र की अंतर्द्शाओं में इनके जीवन में उतार-चढ़ाव की स्थिति बनी रही।
वृषभ लग्न
वृषभ लग्न की कुंडली के द्वितीय भाव के स्वामी बुध हैं और 7 वें भाव का स्वामी मंगल है। बुध पंचमेश भी हैं इसलिए बुध अधिक मारक नहीं है। यहां मंगल अष्ट्मेश भी हैं। इसलिए मंगल अधिक मारक है। एक कुंड्ली के माध्यम से समझते हैं। वृषभ लग्न की कुंडली में केतु लग्न भाव में, मंगल तीसरे भाव में, गुरु पंचम भाव में, चंद्र और राहु सप्तम भाव में, शनि दशम भाव में, शुक्र एकादश भाव में और सूर्य-बुध द्वादश भाव में एक साथ है। इस जातक का वैवाहिक जीवन सुखी नहीं है। सप्तमेश और पराक्रमेश में राशि परिवर्तन योग, सप्तम में नीचस्थ चंद्र की राहु के साथ युति ने इन्हें बहुत पीड़ा दी। प्रथम विवाह के असफल होने के बाद इनका दूसरा वैवाहिक जीवन सुखी है।
मिथुन लग्न
मिथुन लग्न की कुंडली में चंद्र दूसरे भाव के स्वामी होते है। द्वितीयेश होने के कारण चंद्र मारकेश है और सप्तम भाव का स्वामित्व गुरु के पास है। कुंडली में यदि चंद्र या गुरु दोनों में से जो ग्रह सबसे अधिक पाप ग्रहों के प्रभाव में होगा, वह सबसे अधिक मारक हो जाएगा।
कर्क लग्न
दूसरे भाव के स्वामी सूर्य है और शनि सप्तमेश है। ये दोनों ही ग्रह पीड़ित होने पर मारक होने की क्षमता रखते है। गुरु छ्ठे भाव के स्वामी है और दोनों मारक ग्रहों के मध्य में परेशानियां उत्पन्न नहीं कर सकते, क्योंकि इस लग्न में गुरु नवमेश भी है। जन्मपत्री में गुरु पीड़ित अवस्था में नहीं होना चाहिए।
सिंह लग्न
इस लग्न के लिए बुध और शनि मारकेश होते है। दोनों की मारक शक्ति का निर्धारण इन दोनों पर अशुभ ग्रहों के प्रभाव से जाना जा सकता है।
कन्या लग्न
कन्या लग्न के लिए शुक्र द्वितीय भाव का स्वामी है जबकि 7वें भाव के स्वामी गुरु है। दोनों ग्रह मारक है परन्तु जो अधिक पीड़ित होगा वह अधिक अशुभ होकर मारक होगा, इसमें भी जिस ग्रह पर मंगल का प्रभाव अधिक होगा वह अधिक मारक का कार्य करेगा।
तुला लग्न
तुला लग्न के लिए मंगल ही द्वितीय और सप्तम दोनों भावों के स्वामी होने के कारण एकमात्र मारकेश होते है। यहां भी मंगल यदि गुरु से पीडित हो तो मारक शक्ति बढ़ जाती है।
वृश्चिक लग्न
वृश्चिक लग्न के जातकों के लिए द्वितीय भाव के स्वामी गुरु होने के कारण मारकेश हैं, और शुक्र सप्तमेश एवं द्वादशेश होने के कारण अधिक मारकेश है। इन दोनों में से जो ग्रह बुध से भी पीडित हो तो मारक ग्रह की अशुभता बढ़ जाती है।
धनु लग्न
शनि और बुध दोनों ग्रह यहा क्रमश द्वितीय और सप्तम भाव के स्वामी हैं। और दोनों के लग्न के लिए मारकेश होते है। यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि शुक्र से ये ग्रह पीडित नहीं होने चाहिए।
मकर लग्न
यहां शनि दूसरे भाव पर और चंद्रमा 7वें भाव का स्वामित्व रखता है। शनि के पास दो भावों का स्वामित्व है। इसलिए यहां शनि अधिक मारकेश है। कुंडली में शनि पीडित न हो, यह आवश्यक है। शनि के कष्ट में होने पर जातक के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है। तथा चंद ग्रह विशेष रुप से गुरु एवं शनि से पीड़ित नहीं होना चाहिए। चंद्रमा तीव्रगति ग्रह होने के कारण, जल्द पीड़ित होता है।
कुम्भ लग्न
इस लग्न के लिए गुरु दूसरे भाव के और सूर्य सातवें भाव के स्वामी होते है। ये दोनों ग्रह मंगल और केतु से मुक्त हो तो इसमें सूर्य अधिक मारकेश होते है।
मीन लग्न
यहां मंगल 2 वें और बुध 7 वें भाव का स्वामित्व रखते है। मंगल नवमेश भी है इसलिए अधिक मारक नहीं है, अत: बुध को मारकेश कहा जा सकता है।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार उपरोक्त मारकेशों के अतिरिक्त ग्रह पीड़ित होने पर अपनी दशा में हानिकारक होने के कारण मारक के समान कार्य करते है। कोई भी ग्रह अष्टमेश, अष्टम भाव को देखने वाले ग्रह, अष्टम भाव में स्थित ग्रह, दवादशेश और 22वें द्रेष्कोण का स्वामी।