मकर संक्रांति 2020: इस बार कब है मकर संक्रांति
By: Future Point | 09-Jan-2020
Views : 5702
मकर संक्रांति हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। इसे भारत समेत बांग्लादेश, नेपाल, श्री लंका आदि कई देशों में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य उत्तरायण में होता है यानि उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ा होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन को मौसम में बदलाव का संकेत भी माना जाता है।
मकर संक्रांति क्या है?
संक्रांति का अर्थ है सूर्य का एक राशि को छोड़कर दूसरी राशि में जाना। इस तरह मकर संक्रांति का अर्थ हुआ सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना। हिंदू धर्मशास्त्रों में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को बेहद शुभ दिन माना गया है। इसीलिए इस दिन को मकर संक्रांति के पर्व के तौर पर मनाया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन सूर्य के उत्तरायण में होने से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। जबकि मकर संक्रांति से पूर्व सूर्य दक्षिणायन में होता है जिसके चलते रातें लंबी और दिन छोटे होते हैं।
क्यों मनाया जाता है यह पर्व?
मकर संक्रांति मनाने को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। महाभारत, गीता, रामचरितमानस समेत शास्त्रों और वेदों में भी हमें इसका उल्लेख मिलता है। इन ग्रथों के अनुसार यह त्योहार सूर्य देव को समर्पित है। सूर्य इस दिन दक्षिणायन को छोड़ उत्तारायण में प्रवेश करता है।
हिंदू धर्मग्रंथों और खगोलशास्त्रियों के अनुसार सूर्य 6 महीने दक्षिणायन में जबकि 6 महीने उत्तरायण में रहता है। वेदों में दक्षिणायन को देवों की रात्रि जबकि उत्तरायण को देवों का दिन माना गया है। क्योंकि उत्तरायण में प्रवेश करते समय सूर्य अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ रहा होता है इसीलिए इस संक्रमण को बेहद शुभ माना गया है। इसका उल्लेख हमें विभिन्न ग्रंथों में अलग-अलग तरह से मिलता है।
सूर्य के उत्तरायण की तिथि से संबंधित महाभारत में एक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार भीष्म पितामाह अर्जुन के बाण से बुरी तरह घायल हो जाने के बावजूद भी नहीं मरते क्योंकि उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त होता है। मृत्यु की शय्या पर लेटे रहने और बेहद कष्ट झेलने के बावजूद वे मरने के लिए सूर्य के उत्तरायण में होने का इंतज़ार करते हैं।
महाभारत, वेद और गीता के अनुसार जिस व्यक्ति की मृत्यु उत्तरायण में होती है वह जन्म और मृत्यु के जीवन चक्र से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुनर्जन्म के इस जीवन चक्र से मुक्त होने के लिए ही भीष्म पितामाह ने मरने के लिए उत्तरायण का दिन चुना।
मकर संक्रांति 2020: शुभ मुहूर्त (Makar Sankranti Date and Time)
2020 के लिए मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त इस प्रकार है:
संक्रांति का समय: 2:22 एम (15 जनवरी, 2020)
मकर संक्रांति पुण्यकाल: 7:15 एएम से 5:46 पीएम (15 जनवरी, 2020)
कुल अवधि: 10 घंटे 31 मिनट
मकर संक्रांति महापुण्यकाल: 7:15 एएम से 9:00 एएम (15 जनवरी, 2020)
कुल अवधि: 1 घंटा 45 मिनट
मकर संक्रांति का महत्व
धार्मिक, सांस्कृतिक और लौकिक तौर पर मकर संक्रांति का महत्व है। यदि धार्मिक तौर पर देखा जाए तो गीता और महभारत में उत्तरायण के तौर पर इसका उल्लेख मिलता है। गीता में उत्तरायण को प्रकाश का प्रतीक माना गया है। यदि किसी की मृत्यु प्रकाश यानि उत्तरायण में होती है तो उसे बेहद शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि प्रकाश में मृत्यु होने से हमें अपने गमन की जानकारी होती है। जिस व्यक्ति की उत्तरायण में मृत्यु होती है वो जन्म-मरण के जीवन चक्र से मुक्त हो जाता है।
इस दिन को पिता पुत्र के स्नेह के तौर पर भी देखा जाता है। माना जाता है कि इस दिन भानु अपने पुत्र शनि से मिलने उसके घर गए थे। अब क्योंकि शनि मकर राशि का स्वामी है इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के पर्व के रूप में मनाया जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन मां गंगा भागीरथ के पीछे कपिल आश्रम से होते हुए सागर में जा मिली थीं। भागीरथ ने इसी दिन गंगा में अपने पूर्वजों का तर्पण किया था।
मकर संक्रांति को नए ऋतु के आगमन का प्रतीक भी माना जाता है। सूर्य के उत्तरायण में होने पर दिन बड़े होने लगते हैं यानि सर्दियां जाने लगती हैं और ग्रीष्म ऋतु का आगमन होने लगता है। हिंदू धर्मग्रंथों में सूर्य की उत्तरायण की किरणों को बेहद पवित्र माना गया है। इन्हें सेहत के लिए बेहद फायदेमंद बताया गया है। इसके अलावा इसे फसल कटाई के त्योहार के तौर पर भी मनाया जाता है। पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु आदि भारत के कई क्षेत्रों में इस दिन से फसल की कटाई शुरु होती है।
मकर संक्रांति से जुड़ी परंपराएं
मकर संक्रांति से जुड़ी कई परंपराएं हैं। इस दिन मीठे पकवान बनाने, दान करने और गंगा स्नान करने की परंपरा है। इसके अलावा इस दिन देश के अलग-अलग हिस्सों में मेले लगते हैं और पतंगबाजी महोत्सव आयोजित किए जाते हैं।
मकर संक्रांति के पकवान
मकर संक्रांति शरद ऋतु में पड़ती है इसलिए इस दिन तिल और गुड़ से बने मीठे पकवान बनाए और खिलाए जाते हैं। तिल और गुड़ से बनने वाले इन पकवानों में शरीर में गर्मी पैदा करने वाले कई पोषक तत्व होते हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और बिहार समेत देश के कई हिस्सों में इस दिन खिचड़ी भी बनाई जाती है। तिल और गुड़ से बने लड्डू, गज्जक, रेवड़ी आदि को प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार भानु जब अपने पुत्र शनि के घर उनसे मिलने गए थे तो उन्होंने तिल और गुड़ से बने लड्डू खाए थे। ऐसा माना जाता है कि मीठा खाने से रिश्तों में आई कड़वाहट ख़त्म हो जाती है।
मकर संक्रांति पर दान का महत्व
महाभारत के अनुशासन पर्व (दान-धर्म-पर्व) में मकर संक्रांति पर दान के महत्व के बारे में बताया गया है। इस संदर्भ में महाभारत का यह श्लोक देखें:
माघे मासि महादेव यो दद्यात् घृतकम्बलम्।
स भुक्त्वा सकलान भोगान् अन्ते मोक्षं च विन्दति।।
माघ मासे तिलान यस्तु ब्राहमणेभ्य: प्रयच्छति।
सर्व सत्त्व समाकीर्णं नरकं स न पश्यति।।
इस श्लोक का अर्थ है कि माघ मास में घी और कंबल का दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो ब्राह्मणों को तिल का दान करता है उसे नर्क का मुंह नहीं देखना पड़ता। इस तरह इस श्लोक मे दान करने की सलाह दी गई है। अगर आप इस दिन घी-गुड़-तिल का दान करेंगे तो मृत्यु के पश्चात आपको नर्क में नहीं जाना पड़ेगा और आपको मोक्ष की प्राप्ति होगी। इसीलिए इस दिन गुड़ और तिल के लड्डू बनाने और खाने की परंपरा है।
मकर संक्रांति और गंगा स्नान
मकर संक्रांति पर गंगा स्नान करने की परंपरा है। इसके लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग तीर्थराज प्रयाग आते हैं। इसके बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है…
माघ मकर गत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोइ।।
देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।
इसका अर्थ है माघ मास में जब रवि यानि सूर्य मकर (राशि) में प्रवेश करते हैं तो लोग तीर्थराज प्रयाग आते हैं। इस दिन देवता, दानव (दनुज), किंन्नर और सभी मनुष्य स्नान करने त्रिवेणी (गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम स्थल यानि तीर्थराज प्रयाग) आते हैं। ऐसा माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं।
मकर संक्रांति 2020 पूजन विधि और मंत्र (Makar Sankranti 2020 Puja Vidhi, mantra)
मकर संक्रांति के दिन सूर्य की आराधना की जाती है। इसके लिए प्रात: काल सूर्योदय
से पहले उठकर नहाने के पानी में तिल मिलाकर स्नान कर लें। इस दिन लाल वस्त्र पहनें
और बिना नमक खाए व्रत रखें। सूर्यदेव की पूजा कर उन्हें तांबे के लोटे में शुद्ध
जल अर्पित करें। इस जल में लाल फूल, चंदन और तिल ज़रूर मिला लें। सूर्यदेव को जल
अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का जाप करें:
ऊं घृणि सूर्यआदित्याय नम:
उसके बाद राशि के अनुसार निम्न मंत्रों का जाप कर सूर्यदेव का ध्यान करें:
- मेष: ॐ अचिंत्याय नम:
- वृषभ : ॐ अरुणाय नम:
- मिथुन : ॐ आदि-भुताय नम:
- कर्क : ॐ वसुप्रदाय नम:
- सिंह : ॐ भानवे नम:
- कन्या : ॐ शांताय नम:
- तुला : ॐ इन्द्राय नम:
- वृश्चिक : ॐ आदित्याय नम:
- धनु : ॐ शर्वाय नम:
- मकर : ॐ सहस्र किरणाय नम:
- कुंभ : ॐ ब्रह्मणे दिवाकर नम:
- मीन : ॐ जयिने नम:।
मीठे गुड़ में मिल गया तिल
उड़ी पतंग और खिल गया दिल
जीवन में बनी रहे सुख-शांति
मुबारक़ हो आपको मकर संक्रांति
फ्यूचर पोइंट (Future Point) के समस्त परिवार की ओर से आपको मकर संक्रांति की शुभकामनाएं....