माघ पूर्णिमा 2020: जानिए, शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजन विधि और माघ पूर्णिमा की कथा
By: Future Point | 07-Feb-2020
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हिंदू धर्मग्रंथों में माघ माह को सबसे पवित्र माह माना गया है। इस महीने में पवित्र माघ स्नान (Magh Snan 2020) की शुरुआत होती है। माघी पूर्णिमा (Maghi Purnima 2020) माघ स्नान का अंतिम दिन होता है। शास्त्रों में इसे देवताओं के पवित्र स्नान का अंतिम दिन कहा गया है। सूर्य जब मकर राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में प्रवेश करता है तब माघ पूर्णिमा का योग बनता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान करने का विशेष महत्व है। माघ माह के शुरु होते ही त्रिवेणी संगम प्रयागराज में मेले का आयोजन किया जाता है जहां दूर-दूर से श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं। माघ पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु स्नान, दान और व्रत करने के साथ-साथ सत्यनारायण की पूजा भी कराते हैं। श्री सत्यनारायण पूजा की ऑनलाइन बुकिंग के लिए क्लिक करें।
माघ पूर्णिमा 2020: तिथि व शुभ मुहूर्त
इस बार माघ पूर्णिमा रविवार, 9 फरवरी को है। इसका शुभ मुहूर्त निम्न है:
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: दोपहर 1:31 बजे (फरवरी 8, 2020)
पूर्णिमा तिथि समाप्त: सुबह 10:32 बजे (फरवरी 9, 2020)
पौराणिक संदर्भ
ब्रह्मवैवर्त पुराण (Brahmavaivartpurana) के अनुसार माघ महीने में भगवान विष्णु खुद गंगा में निवास करते हैं। इसलिए इस दौरान गंगा में स्नान करने से इनसान सभी पापों और बीमारियों से मुक्त हो जाता है। एक अन्य कथा में कहा गया है कि भगवान विष्णु कृषि सागर में निवास करते हैं और गंगा कृषि सागर का ही भाग है। मान्यता है कि 2382 बीसीई (BCE) में गंगा किनारे कुंभ मेला लगा था जहां माघ पूर्णिमा के दिन विश्वामित्र ने पवित्र स्नान किया था। ज्योतिष विद्या के अनुसार इस दौरान सूर्य मकर राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में होता है। इसलिए इस दिन गंगा में स्नान करने से व्यक्ति को चंद्रमा और सूर्य के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन ब्रह्मवैवर्त पुराण (Brahma-Vaivarta Purana) दान करने से आप पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।
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माघ पूर्णिमा का महत्व
माघ पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु तीर्थराज प्रयाग में कल्पवास और स्नान के लिए आते हैं। मान्यता है कि इस दौरान सभी नदियों, तालाबों और सरोवरों का जल पवित्र हो जाता है। इसलिए इनमें स्नान करने से आपको अपने समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मकर संक्रांति और मौनी अमावस्या की तरह ही माघ पूर्णिमा को भी स्नान के लिए सबसे शुभ दिन बताया गया है। इसके लिए गागा, जमुना, कृष्णा, कावेरी, तापी आदि पवित्र नदियों के किनारे मेला लगता है। दक्षिण में कन्याकुमारी व रामेश्वरम और राजस्थान में पुष्कर को माघ स्नान स्नान के लिए पवित्र स्थल माना गया है।
माघ पूर्णिमा को भगवान बुद्ध के महत्वपूर्ण दिन के रूप में भी देखा जाता है। मान्यता है कि भगवान बुद्ध ने इसी दिन अपनी आगामी मृत्यु की घोषणा की थी। विहारों (Vihara) में इस दिन भव्य समारोह का योजन किया जाता है और भगवान बुद्ध की पूजा की जाती है। बौद्ध धर्मग्रंथ त्रिपिटक (विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्यपिटक) के काव्यों का पाठ किया जाता है। तमिलनाडु के मदुरै में माघी पूर्णिमा को बेहद धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान सुंदेश्वर और देवी मीनाक्षी की मूर्तियों और प्रतिमाओं को सजाया जाता है और उन्हें मरिअम्मन तेप्पकुलम कुंड में तैरती नावों पर ले जाया जाता है। सभी श्रद्धालु प्रार्थना करते और गीत गाते हुए जाते हैं। माघी पूर्णिमा को यहां राजा तिरुमल नायक के जन्मदिवस के रूप भी मनाया जाता है।
माघ पूर्णिमा 2020: व्रत एवं पूजा विधि
- माघ पूर्णिमा के दिन गंगा, जमुना, सरस्वती आदि किसी पवित्र जल में स्नान करें। अगर स्नान के लिए किसी तीर्थ स्थल पर जाना संभव न हो तो आस-पास किसी सरोवर या तालाब में इन नदियों का जल छिड़क कर स्नान करें।
- स्नान करते समय निम्न मंत्र का जाप करें:
ऊँ नम: भगवते वासुदेवाय नम:
- स्नान करने के बाद इस दिन व्रत करने का संकल्प लें।
- इस दिन पितरों का तर्पण करने से विशेष लाभ होता है।
- मध्याह्न काल में गरीबों और ब्राह्मणों को तिल गुड़, वस्त्रादि दान करें।
- इस दिन प्रयाग में गाय दान करने और हवन कराने का विशेष महत्व है।
- किसी योग्य पंडित से श्री सत्यनारायण पूजा (Satyanarayan Puja) करवाएं और सत्यनारायण कथा सुनें। इससे आप पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहेगी और घर में सुख-समृद्धि का वास होगा।
- भगवान विष्णु को कुमकुम, तिल, फल, सुपारी, केले के पत्ते, और पान अर्पित करें।
- भगवान विष्णु को गंगा जल, शहद, दूध, तुलसी और मिठाई से निर्मित पंचामृत चढ़ाएं।
- गेहूं और चीनी की लुगदी का भोग लगाएं।
- भगवान विष्णु व श्री सत्यनारायण के अलावा इस दिन इस दिन भगवान शिव और ब्रह्मा जी की भी पूजा की जाती है।
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माघ पूर्णिमा की कथा (Magh Purnima Vrat Katha)
पौराणिक ग्रंथों में माघ पूर्णिमा से संबंधित कई कथाएं मिलती हैं। यहां पढ़ें माघ पूर्णिमा की सबसे प्रचलित कथा! इस कथा के अनुसार कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का ब्राह्मण निवास करता था जो दान पर अपना जीवन निर्वाह करता था। ब्राह्मण और उसकी पत्नी के कोई संतान न थी। एक दिन उसकी पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई। लेकिन सबने उसे भिक्षा देने से इनकार कर दिया। कई लोगों ने बांझ कहकर उसका अपमान किया। तब एक व्यक्ति ने उसे 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा। ब्राह्मण दंपत्ति ने ऐसा ही किया और 16 दिन बाद मां काली स्वयं प्रकट हुईं।
मां काली ने ब्रह्मण की पत्नी को गर्भवती होने का वरदान दिया और कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम दीपक जलाओ। हर पूर्णिमा को तुम 1 दीपक बढ़ा देना। इस तरह कर्क पूर्णिमा के दिन तक कम से कम 22 दीपक जलाना। उसके बाद ब्रह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए पेड़ से आम का कच्चा फल तोड़कर दिया। उसकी पत्नी ने पूजा की और गर्भवती हुई। प्रत्येक पूर्णिमा को वह मां काली के कहे अनुसार दीपक जलाती रही। मां काली की कृपा से उनके घर एक पुत्र ने जन्म लिया जिसका नाम देवदास रखा गया।
बड़ा होने पर उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा गया। काशी में उन दोनों के साथ एक दुर्घटना घटी जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया। देवदास ने कहा कि वह अल्पायु है लेकिन उसके बावजूद भी जबरन उसका विवाह करवा दिया गया। कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था इसलिए काल उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाया। इस कथा के अनुसार सच्चे मन से पूर्णिमा के दिन व्रत करने से संकट से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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