माघ स्नान 2020: जानिए, माघ स्नान की विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व
By: Future Point | 09-Jan-2020
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माघ स्नान एक पवित्र स्नान है। हिंदू पंचाग के अनुसार इसकी शुरुआत पौष माह (दिसंबर-जनवरी) की अमावस्या को होती है। पौष माह की अमावस्या से शुरु होकर यह पवित्र स्नान माघ मास (जनवरी-फरवरी) की आखिरी तारीख को समाप्त होता है। हिंदू श्रद्धालु इस दिन गंगा, यमुना, कृष्णा, ब्रह्मपुत्र, कावेरी, नर्मदा आदि पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। इसके लिए नदी घाट पर माघ मेले का आयोजन किया जाता है। इनमें तीर्थराज प्रयाग (गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम स्थल) में लगने वाला माघ मेला बहुत प्रसिद्ध है। यहां पर दूर-दूर से हज़ारों श्रद्धालु पवित्र स्नान के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
माघ स्नान का महत्व
माघ स्नान का ज़िक्र हमें कई हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। ब्रह्म पुराण और विजय पुराण में हमें पुण्य स्नान के रूप में इसका उल्लेख मिलता है। इसमें इस स्नान से जुड़ी जगह, समय और अनुष्ठान के बारे में बताया गया है। हालांकि यह पवित्र स्नान पूरे माघ मास में चलता रहता है लेकिन माघ स्नान के लिए कुछ दिन विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं। अमावस्या, एकादशी, पंचमी, सप्तमी, संक्रांति और पूर्णिमा को माघ स्नान के लिए बेहद महत्वपूर्ण दिन माना गया है। माघ स्नान के इन विशिष्ट दिनों को क्रमश: माघ अमावस्या, भीष्म एकादशी स्नान, बसंत पंचमी, रथ सप्तमी स्नान, मकर संक्रांति और माघ पूर्णिमा कहा जाता है।
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार माघ स्नान के लिए मकर संक्रांति का दिन सबसे शुभ है। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं जिसे धर्मग्रंथों में अंधकार से प्रकाश की ओर संक्रमण के रूप में वर्णित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य वर्ष के 6 महीने दक्षिणायन में और 6 महीने उत्तरायण में होता है। हिंदू धर्मग्रंथों में दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि माना गया है जबकि उत्तरायण को देवताओं का दिन माना गया है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण में होता है। इस दौरान सूर्य की किरणें पवित्र मानी जाती हैं। इसलिए इस दौरान गंगा में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और निर्वाण की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि माघ मास में इस तरह का एक पवित्र स्नान 10000 अश्वमेध यज्ञों के बराबर है।
माघ स्नान 2020: शुभ मुहूर्त और महत्वपूर्ण तिथियां
साल 2020 के लिए माघ स्नान का शुभ मुहूर्त और इससे जुड़ी अन्य तिथियां इस प्रकार है:
सूर्योदय: सुबह 7 बजकर 14 मिनट पर (जनवरी 10, 2020)
सूर्यास्त: शाम को 5 बजकर 54 मिनट पर (जनवरी 10, 2020)
पूर्णिमा तिथि (शुरुआत): दोपहर 4 बजकर 1 मिनट पर (फरवरी 8, 2020)
पूर्णिमा तिथि (समाप्त): दोपहर 1 बजकर 2 मिनट पर (फरवरी 9, 2020)
माघ स्नान से जुड़ी परंपराएं
हिंदू धर्मग्रंथों में माघ स्नान से जुड़ी कई परंपराओं का उल्लेख मिलता है:
- माघ स्नान के लिए श्रद्धालु सुबह जल्दी उठ जाते हैं। स्नान करने के लिए सूर्योदय से पहले का समय सबसे शुभ माना जाता है। इस दिन देश के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालु गंगा में स्नान करने तीर्थ राज प्रयाग आते हैं। गोस्वामी तुलसीदास रामचरितमानस में इसका ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि मकर संक्रांति का दिन माघ स्नान के लिए बेहद शुभ है। इस दिन देवता, दानव यहां तक कि किन्नर भी गंगा के पवित्र जल में स्नान करने आते हैं। आज भी यह परंपरा इसी तरह बरकरार है। जाति, धर्म और मज़हब के भेद को भूलकर हज़ारों श्रद्धालु हर वर्ष यहां पवित्र स्नान के लिए आते हैं।
- माघ स्नान के दौरान सूर्य भगवान, भगवान विष्णु, भगवान शिव और मां सरस्वती की आराधना की जाती है। कुछ श्रद्धालु पूरे माघ मास के दौरान पवित्र स्नान करते हैं जबकि कुछ श्रद्धालु माघ मास के कुछ विशेष दिन ही यह पवित्र स्नान करते हैं। पवित्र स्नान के दौरान श्रद्धालु वेदों के मंत्र का जाप करते हैं।
- कुछ श्रद्धालु माघ मास में व्रत भी रखते हैं। स्नान करने के बाद श्रद्धालु हवन, दान और अन्य अनुष्ठान करते हैं। वे लोग जो व्रत नहीं रखते हैं वे इस दिन सात्विक भोजन ही करते हैं। इस दौरान मांस-मदिरा आदि का परहेज़ किया जाता है।
- माघ मास में कल्पवास को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। माघ महीने में त्रीवेणी संगम तट पर रहने को कल्पवास कहते हैं। कल्पवास पौष महीने के 11वें दिन से माघ महीने के 12वें दिन तक रहता है। इसका उल्लेख हमें वेदों और पुराणों में मिलता है। मत्स्यपुराण के अनुसार कल्पवास में रहने वाले व्यक्ति को कल्पवासी कहते हैं। कल्पवासी के तीन मुख्य कार्य होते हैं: तप, होम और दान। पद्मपुराण में बताया गया है कि कल्पवासी कैसा होना चाहिए? इसके अनुसार संगम तट पर स्नान करने वाला व्यक्ति या संगम तट पर रहने वाला कल्पवासी शांत, तपी और सदाचारी होना चाहिए।
- माघ स्नान के दौरान आदित्यहृद्यम् (Adityahridayam) और विष्णु सहस्रनामम् (Vishnu Sahasranaam) जैसी धार्मिक किताबों का पाठ किया जाता है। आदित्यहृद्यम् महर्षि वालमीकि के रामायण के युद्धकाण्ड का भाग है जो कि आदित्य यानि सूर्यदेव को समर्पित है। काव्य शैली में लिखा गया यह ग्रंथ रावण के विरुद्ध युद्ध से पूर्व गुरु अगत्स्य और राम के बीच संवाद है। विष्णु सहस्रनामम् भगवान विष्णु के 1000 नामों की सूची है। यह महाभारत के अनुशासनपर्व का हिस्सा है। इसके अलावा इसका उल्लेख पद्म पुराण, स्कंद पुराण और गुरुड़ पुराण में भी मिलता है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए श्रद्धालु आदित्यहृद्यम् और विष्णु सहस्रनामम् का पाठ करते हैं।
- >माघ स्नान के लिए हर वर्ष देश के अलग-अलग हिस्सों में माघ मेले का आयोजन किया जाता है। इनमें सबसे प्रसिद्ध माघ मेला तीर्थराज प्रयाग का है। हर वर्ष इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार पुख़्ता इंतज़ामात करती है। इस बार यह मेला 10 जनवरी को पौष पूर्णिमा से शुरु होने जा रहा है जो कि 21 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा।
माघ स्नान के नियम
माघ स्नान के लिए इन नियमों का पालन अवश्य करें:
- श्रद्धालु को माघ मास के पहले दिन ही पवित्र स्नान का संक्लप लेना चाहिए। आप चाहें तो पूरे महीने या कुछ विशिष्ट दिन यह पवित्र स्नान कर सकते हैं मगर पहले स्नान से ही माघ स्नान के नियमों का पालन अवश्य करें।
- तीर्थ स्थल पर माघ स्नान करते समय वेदों के मंत्रों का जाप करें। माथे पर तीर्थ स्थल की माटी लगाएं और झुककर सूर्यदेव को नमस्कार करें। इस दौरान आप अपने इष्टदेव का भी ध्यान कर सकते हैं।
- जल से बाहर निकलकर शंख-चक्र-गदा धारण करने वाले पुरुषोत्तम भगवान की आराधना करें।
- यदि संभव हो तो माघ स्नान के दौरान रोज़ान हवन, दान और एक समय का भोजन करें और ज़मीन पर सोएं।
- इस दौरान सर्दी का मौसम होता है इसलिए आप गरीबों में कंबल, रजाई और स्वेटर आदि दान कर सकते हैं।
- प्रसाद में आप तिल और गुड़ से बने लड्डू और मीठे पकवान बांट सकते हैं।
- असमर्थ होने पर जितना संभव हो सके उतने ही नियमों का पालन करें लेकिन श्रद्धापूर्वक स्नान अवश्य करें।
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