कैसे करें दुर्गा सप्तशती पाठ इस नवरात्री और जानें उससे होने वाले लाभ ।
By: Future Point | 06-Apr-2019
Views : 10288
श्री दुर्गा सप्तशती संपूर्ण पाठ विधि -
साधक स्नान करके पवित्र हो कर शुद्ध आसन पर बैठ जाएं। सारी सामग्री एकत्रित कर लें । माथे पर अपनी पसंद के अनुसार भस्म, चंदन अथवा रोली लगा लें, शिखा बांध लें।
पवित्रीकरण-
हाथ में जल लेकर मंत्र पढ़ते हुए स्वयं पर तथा सभी पूजन सामग्री पर जल छिड़क दें
ॐ पवित्रः अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्यभ्यन्निम
आसन शुद्धि -
इसके बाद आसन को भी जल छिड़क कर मंत्र से शुद्ध कर लें:-
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग षिः सुतलं छन्दः
कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
पृथ्वी पूजन-
अब मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
पृथिव्यै नमः आधारशक्तये नमः
आचमन-
फिर पूर्वाभिमुख होकर तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें। इस समय मंत्रों को बोलें-
ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
पवित्री धारण -
तत्पश्चात प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, कुश की पवित्री धारण करें-
पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वः प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः ।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।
संकल्प -
हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर संकल्प करें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम् उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम् अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक नाम अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्व-विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टिधनधान्यसमृद्ध्यर्थं श्री नवदुर्गाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थ- काममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली-महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्परं कवचार्गलाकीलकपाठ- वेदतन्त्रोक्त रात्रिसूक्त पाठ देव्यथर्वशीर्ष पाठन्यास विधि सहित नवार्णजप सप्तशतीन्यास- धन्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च ‘मार्कण्डेय उवाच॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः।‘ इत्याद्यारभ्य ‘सावर्णिर्भविता मनुः’ इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च किरष्ये/करिष्यामि।
इस प्रकार प्रतिज्ञा (संकल्प) करके देवी का ध्यान करें ।
पुस्तक पूजा-
अब पंचोपचार की विधि से पुस्तक की पूजा करें-
दुर्गा-सप्तशती पुस्तक को काष्ठ के शुद्ध आसन पर रख लें। अब गंध,फूल,धूप तथा दीप से पुस्तक पूजा करे और कुछ नैवैद्य अर्पित करें।
ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम्॥
योनिमुद्रा का प्रदर्शन करके भगवती को प्रणाम करें, फिर मूल नवार्ण मन्त्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें।
ध्यात्वा देवीं पञ्चपूजां कृत्वा योन्या प्रणम्य च ।
आधारं स्थाप्य मूलेन स्थापयेत्तत्र पुस्तकम्॥
इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए। इसके अनेक प्रकार हैं।
‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशानुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा’
इस मंत्र का आदि और अन्त में सात बार जप करें। यह शापोद्धार मंत्र कहलाता है। इसके अनन्तर उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है।
इसका जप आदि और अन्त में इक्कीस-इक्कीस बार होता है। यह मन्त्र इस प्रकार है- ‘ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।‘ इसके जप के पश्चात् आदि और अन्त में सात-सात बार मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए, जो इस प्रकार है-
‘ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।‘
इसके बाद देवी कवच का पाठ करना चाहिए।
दुर्गा सप्तशती पाठ से होने वाले लाभ -
दुर्गा सप्तशती के अलग-अलग अध्यायों का अपना-अपना महत्व है जिनका यदि भक्तिभाव से पाठ किया जाए तो फल बड़ी जल्दी मिलता है, लेकिन लालच से किया पाठ फल नहीं देता।
प्रथम अध्याय :
हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए। मानसिक विकारों की वजह से आ रही अड़चनों को दूर करता है, मन को सही दिशा की ओर ले जाता है तथा जो चेतना खो गई है उसको एकत्र करता है।
द्वितीय अध्याय :
मुकदमे, झगड़े आदि में विजय पाने के लिए यह पाठ काम करता है। लेकिन झूठा और आपने गलत किसी पर किया हो तो फल नहीं मिलता बल्कि आप खुद बुरा परिणाम भोगेंगे।
तृतीय अध्याय :
शत्रु से छुटकारा पाने के लिए । शत्रु यदि बिना कारण बन रहे हैं और नुकसान का पता न चल रहा हो कि कौन कर रहा है तो यह पाठ उपयुक्त हैं।
चतुर्थ अध्याय :
भक्ति, शक्ति तथा दर्शन के लिए। जो साधना से जुड़े होते व समाज हित में साधना को चेतना देना चाहते हैं तो यह पाठ फल देता है।
पंचम अध्याय :
भक्ति, शक्ति तथा दर्शन के लिए। हर तरह से परेशान हो चुके लोग जो यह सोचते हैं कि हर मंदिर-दरगाह जाकर भी कुछ नहीं मिला, वे यह पाठ नियमित करें।
षष्ठम अध्याय :
डर, शक, बाधा हटाने के लिए। राहु का अधिक खराब होना, केतु का पीड़ित होना, तंत्र, जादू, भूत इस तरह के डर पैदा करता है तो आप इस अध्याय का पाठ करें।
सप्तम अध्याय :
हर कामना पूर्ण करने के लिए। सच्चे दिल से जो कामना आप करते हैं जिसमें किसी का अहित न हो तो यह अध्याय कारगर है।
अष्टम अध्याय :
मिलाप व वशीकरण के लिए। वशीकरण गलत तरीके नहीं अपितु भलाई के लिए हो और कोई बिछड़ गया है तो यह असरकारी है।
नवम अध्याय :
गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिए। बहुत से लोग जो घर छोड़ जाते हैं या खो जाते हैं, यह पाठ उसके लौटने का साधन बनता है।
दशम अध्याय :
गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिए। अच्छे पुत्र की कामना रखने वाले या बच्चे गलत रास्ते पर चल रहे हों तो यह पाठ पूर्ण फलदायी है।
एकादश अध्याय :
व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिए। कारोबार में हानि हो रही है, पैसा नहीं रुकता या बेकार के कामों में नष्ट हो जाता है तो यह करें।
द्वादश अध्याय :
मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिए। इज्जत जिंदगी का एक हिस्सा है। यदि इस पर कोई आरोप-प्रत्यारोप करता हो तो यह पाठ करें।
त्रयोदश अध्याय :
भक्ति प्राप्ति के लिए। साधना के बाद पूर्ण भक्ति के लिए यह पाठ करें।