कब है महानवमी और कैसे करें नवमी पूजा
By: Future Point | 18-Oct-2018
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नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। प्रतिपदा तिथि से नवरात्र की शुरुआत होती है तो वहीं नवमी तिथि को नवरात्र का समापन हो जाता है। नवमी तिथि की शुरुआत महास्नान और षोडशोपचार पूजा से होती है। महानवमी पर देवी दुर्गा की पूजा महिषासुर मर्दिनी के रूप में की जाती है। मान्यता है कि इन दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था।
महानवमी पूजा 2018
17 अक्टूबर को 12 बजकर 51 मिनट से नवमी तिथि आरंभ होगी और 18 अक्टूबर को 15 बजकर 30 मिनट पर नवमी तिथि समापत होगी।
कब मनाई जाती है महानवमी
अगर नवमी तिथि की शुरुआत अष्टमी पर ही हो जाती है तो नवमी पूजा और उपवास अष्टमी पर ही किया जाता है।
यदि अष्टमी तिथि के दिन शाम से पहले अष्टमी और नवमी तिथि का विलय हो जाता है तो ऐसे में अष्टमी पूजा, नवमी पूजा और संधि पूजा उसी दिन की जाती है।
दुर्गा बलिदान
शास्त्रों में नवरात्र की नवमी तिथि पर दुर्गा बलिदान का भी उल्लेख मिलता है। इसमें देवी शक्ति को बलि दी जाती है। जो लोग बलि देने की प्रथा को उचित नही मानते हैं वो प्रतीकात्मक तौर पर फल या सब्जी जैसे कि केला, कददू या ककड़ी आदि की बलि चढ़ाते हैं।
भारत के ज्यादातर इलाकों में हिंदू धर्म के अनुयायी पशु बलि करते हैं लेकिन अब ज्यादातर जगहों पर इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
दुर्गा बलिदान के लिए सफेद कद्दू का उपयोग करना कूष्मांड के तौर पर जाना जाता है। हमेशा उदय व्यापिनी तिथि को ही दुर्गा बलिदान किया जाता है। निर्णय सिंधु के अनुसार नवमी के दिन अपराह्न काल में दुर्गा बलिदान किया जाना चाहिए।
महानवमी हवन
महानवमी तिथि पर हवन का भी बहुत महत्व है। नवमी पूजा के दिन हवन किया जाता है। नवमी हवन को चंडी होम भी कहा जाता है। नवमी तिथि पर मां दुर्गा के भक्त नवमी हवन का आयोजन कर मां दुर्गा से उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करते हैं।
नवमी के दिन हवन हमेशा दोपहर के समय होता है और हवन के दौरान प्रत्येक आहुति पर दुर्गा सप्तशती के 700 मंत्रों का पाठ करना चाहिए।
नवमी तिथि पर कन्या पूजन
कुछ लोग अष्टमी तिथि पर कन्या पूजन करते हैं तो कुछ नवमी तिथि पर। नवमी तिथि को कन्या पूजन का विधान है। इस तिथि पर छोटी कन्याओं को अपने घर बुलाकर भोजन करवाया जाता है और उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा भी दी जाती है। कन्या पूजन करने से मां दुर्गा अपने भक्त के सभी दुखों को दूर करती हैं।
अष्टमी तिथि को 5,7,9 या 11 कन्याओं को घर पर बुलाकर हलवा पूरी खिलाएं। कन्याओं की उम्र 2 से 10 साल के बीच ही होनी चाहिए। कन्याओं को घर बुलाकर उनके पैर धोएं और फिर उन्हें उचित स्थान पर आसन देकर बैठाएं।
हिंदू पंरपरा के अनुसार कन्या पूजन के दौरान सभी कन्याओं के माथे पर कुमकुम से तिलक करें और इनकी कलाई पर कलावा बांधें। पूजन के बाद कन्याओं को हलवा, पूरी और चना या अपनी इच्छा अनुसार कोई भी सब्जी या मिष्ठान आदि भोजन में दें।
भोजन के बाद सभी कन्याओं को अपने सामर्थ्यानुसार भेंट या दक्षिणा देकर विदा करें। विदा करते समय परिवार के सभी बड़े सदस्य कन्याओं के पैर जरूर छुएं। अष्टमी के दिन कन्या पूजन करने से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है और मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं।
नवरात्र के अंतिम दिन यानि नवमी तिथि को मां दुर्गा के नौवे स्वरूप मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। नवमी तिथि के अगले दिन यानि 19 अक्टूबर को विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर माता सीता को मुक्त करवाया था। इस पर्व को अधर्म पर धर्म की जीत के रूप में मनाया जाता है।
दशहरा 2018
नवमी तिथि के अगले दिन 19 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा।
विजय मुहूर्त : 13.58 से 14.43 तक
अपराह्न पूजा का समय : 13.13 से 15.28 तक
दशमी तिथि की शुरुआत : 18 अक्टूबर को 15.28 से
दशमी तिथि का समापन : 19 अक्टूबर को 17.57 तक
अगर आप मां दुर्गा को प्रसन्न कर अपनी मनोकामना की पूर्ति चाहते हैं तो नवमी तिथि पर हवन जरूर करवाएं। मां दुर्गा की कृपा पाने का ये सबसे सरल तरीका है। नवमी तिथि पर मां दुर्गा के नवरात्र का समापन भी हो जाता है। इस दिन विधिपूर्वक माता रानी की उपासना करें और कन्या पूजन करें। मान्यता है कि मां दुर्गा की कन्या के रूप में इस दिन पूजा की जाती है इसलिए नवमी तिथि पर कन्या पूजन करने का बहुत महत्व है।
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