जन्म कुंडली के अनुसार जानिए, क्यों होती है गर्भपात की समस्या
By: Future Point | 14-May-2020
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ज्योतिष विज्ञान आपके जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान तथा आपके अंदर उत्पन्न प्रश्नो का समाधान करता आया है और करता रहेगा। वैदिक ज्योतिषशास्त्र में रोग और उसके प्रभाव का अध्ययन मूल रूप से किया जाता है कि मनुष्य को कब और किस प्रकार की बीमारी से जूझना पड़ जाये तथा कब उसे मुक्ति मिलेगी अथवा मिल पाएगी या नहीं, रोगों की प्रकृति जातक की अवस्थाएँ जैसे – बाल अवस्था युवा अवस्था , या वृद्ध अवस्था में उसकी गंभीरता आदि ज्योतिषशास्त्र से संबन्धित प्रिय प्रश्न बने रहते हैं। इसलिए यदि कोई जातक जीवन के किसी भी पड़ाव में किसी ऐसे रोग से ग्रसित हो जाए जहां पर कोई भी उपचार व्यर्थ सिद्ध हो रहा हो तो ऐसे में उसे भटकने के बजाय अपनी जन्मकुंडली के ग्रह दशाओं तथा योगों का अध्ययन कर उससे मार्ग निर्देशन जरूर प्राप्त करना चाहिए। ज्योतिषशास्त्र की सूक्ष्मता मनुष्यों में भी दो वर्ग जो नर और नारी के श्रेणीकरण पर आधारित है। यानि स्त्री रोगों के लिए अलग से काफी काम हुआ है तथा इससे किसी स्त्री विशेष को किस तरह से कोई रोग पीड़ित करेगा इस पर प्रकाश डाला जा सकता है।
पंचम भाव संतान भाव है यही वह स्थान है जहाँ से हम गर्भ से सम्बंधित विचार करते हैं, इसी कारण इस भाव का बहुत ही महत्त्व है। इस भाव का कारक ग्रह गुरु है तथा संतान का कारक भी गुरु ग्रह है। अतः यदि पंचम भाव तथा उस भाव का स्वामी तथा इस भाव एवं संतान का कारक ग्रह गुरु अशुभ स्थिति में हो और पंचम भाव पर पाप ग्रहों की स्थिति व दृष्टि हो तो गर्वपात जैसी समस्याएं सामने आती हैं।
हिस्टिरिया (मिर्गी) , बेहोशी में पड़ जाना , शारीरिक अशक्तता, स्त्री को ही होने वाले रोग ल्यूकोरिया ( स्त्री गुप्त रोग ) आदि ज्यादातर ग्रहीय समस्याओं की उपज हैं।
अनुभव से यही देखने में आता है कि स्त्रियों के ज्यादातर रोग पीड़ित चंद्रमा, लग्न, लग्नेश और लग्न के कारक के पीड़ित होने, तथा चंद्रमा पर पाप व क्रूर ग्रहों की दृष्टि, मंगल-शनि युति-दृष्टि, छठे भाव की कमजोरी से जन्म लेते हैं। ऐसे में स्त्री विशेष की जन्म कुंडली का गहन परीक्षण करने के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है, और इस समस्या का निदान किया जा सकता है|
स्त्रियां स्वभावतः संवेदनशील होती हैं, जिसका प्रमुख कारण चंद्रमा है जो कि स्त्री का प्रतिनिधि योग कारक ग्रह है। किंतु जिस भी स्त्री का योग कारक चंद्रमा पाप प्रभाव से युक्त हो या अशुभ दृष्टि से युक्त तथा बलहीन हो, द्वादश, अष्टम, अथवा छठे भाव में मौज़ूद हो, तो ऐसे में उसकी संवेदनशीलता का स्तर नकारात्मक रूप से प्रभावित होने लगता है। यानि कमजोर या पीड़ित चंद्र की अवस्था मानसिक उन्माद पैदा करती है।
जन्मकुंडली के अनुसार यदि चंद्रमा क्रूर व पापी ग्रहों जैसे शनि, मंगल, राहु, केतु आदि से पीड़ित हो रहा हो तो स्त्री को मासिक धर्म सम्बन्धी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे ग्रहीय संयोग मानसिक उत्ताप, चिंता, अवसाद, चिड़चिड़ापन, क्रोध आदि लक्षण को खुलकर सामने लाते हैं। यदि स्त्री की कुण्डली में शनि और मंगल का सम्बंध उपस्थित होने के साथ ही उन पर क्रूर व पापी ग्रहों की दृष्टि भी पड़ रही हो, तो अवश्य ही गंभीर रक्त विकार उत्पन्न होता है।
ग्रहों की कौनसी दशा से होता है संतान उत्पति में विघ्न
जन्मकुंडली के पंचम पर पाप ग्रहों की स्थिति या पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसी परिस्थितियों में संतान उत्पति में विघ्न हो सकता है। उदाहरण के तौर पर यदि पंचम स्थान पर अशुभ मंगल की दृष्टि पड़ रही हो तो ऐसे में संतान को हानि पहुंच सकती है। यहां तक बच्चे के लिये प्राणघातक योग भी बन जाता है अन्यथा बाधा तो पहुंचती ही है। संतान उत्पति का कारक घर पंचम है यदि इस पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ती है तो इससे नकारात्मक योग बनता है। इससे संतान होने में बाधा होती है। गर्भपात होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं| कभी कभी संतान मृत पैदा होती है या फिर पैदा होने के कुछ समय बाद उसकी मौत हो जाती है तो उसका कारण भी ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यही पाप ग्रह होते हैं।
स्त्री की कुण्डली में सबसे महत्वपूर्ण बात यदि पंचम भाव पर पाप और क्रूर ग्रहों की दृष्टि या युति है या यदि पंचम भाव पर सूर्य, शनि, राहु, केतु अथवा मंगल का प्रभाव मौज़ूद हो तो ऐसी स्थिति में उस स्त्री को गर्भ धारण में समस्या उत्पन्न होती है किंतु इससे भी बड़ी बाधा तब उत्पन्न होती है जबकि गर्भ धारण के बाद गर्भपात का भय बन जाय ऐसा तब होता है जब सूर्य की युति एवं शनि, राहु, केतु की पांचवें भाव पर दृष्टि हो तो । यदि आपके जन्मकुंडली मे ऐसा योग है या आप इस परिस्थिति से गुजर रहे हों तो आप फ्यूचर पॉइंट में अपनी कुंडली का विश्लेषण करवाकर आप संतान उत्पत्ति से संबन्धित परेशानियों से बच सकते हैं |
`जन्मकुंडली में पंचम भाव का मालिक और कारक ग्रह कमजोर हो तथा एकादश भाव में मंगल स्थित हो तो गर्भपात होने का डर बहुत बढ़ जाता है|
जन्मकुंडली के पंचम भाव में सूर्य राहु या शनि राहु की युति बन रही हो तो भी गर्भपात होने की संभावनाएं होती हैं|
कुंडली के एकादश भाव में सूर्य मंगल या सूर्य राहु की युति हो तो गर्भपात होने का डर होता है|
कुंडली के पंचम भाव में शनि राहु की युति संतान बाधा करने वाली होती है।
कुंडली के पंचम भाव में राहु, एकादश भाव में सूर्य और द्वितीय भाव में भाव में मंगल हो तो गर्भपात होने की समस्याएं होती हैं|
गुरु ग्रह का नीच अस्त व कमजोर स्थिति में होना संतान बाधा करने वाला होता है।
जब पंचम भाव में सूर्य शनि की युति हो एवं राहु, केतु की पांचवें भाव पर दृष्टि हो तो गर्भपात की समस्या होती है।
पंचम भाव का स्वामी और पंचम भाव का कारक ग्रह कमजोर हो राहु मंगल की पंचम भाव पर दृष्टि हो, ऐसी स्थिति में गर्भपात की समस्याएं अधिक होती है।
जन्मकुंडली का पंचम भाव पापक्रान्त हो और पंचम भाव पाप दृष्ट और पाप युत हो तो गर्भपात की समस्याएं अधिक होती हैं।
फ्यूचर पॉइंट के माध्यम से अपनी जन्मकुंडली का विश्लेषण करवाएं, और अपनी कुंडली में स्थित योगों से जुडी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करें|