होलाष्टक कब है? होलाष्टक में कौन से कार्य नहीं करने चाहिए? | Future Point

होलाष्टक कब है? होलाष्टक में कौन से कार्य नहीं करने चाहिए?

By: Acharya Rekha Kalpdev | 23-Feb-2024
Views : 1317होलाष्टक कब है? होलाष्टक में कौन से कार्य नहीं करने चाहिए?

होलाष्टक 2024: हिन्दू धर्म के लिए होलाष्टक के महत्वपूर्ण दिवस है। होली से ठीक आठ दिन पहले होलाष्टक का प्रारम्भ होता है। होलाष्टक की शुरुआत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होती है। इस दिन किसी सार्वजनिक स्थान को साफ़ सुथरा कर, मिटटी गोबर से लीप कर शुद्ध किया जाता है। होलाष्टक के दिन दो डंडे शुद्ध किये गए स्थान पर गाड़ दिए जाते है। जो हिरण्यकश्यप की बहन होलिका और उसके पुत्र प्रह्लाद का प्रतीक होते है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार होलाष्टक से लेकर होलिका दहन तक के दिनों में हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को ईश्वर भक्ति से हटाने के लिए तरह तरह के कष्ट दिए। इसीलिए इन दिनों में शुभ कार्य करने वर्जित है। जैसे ही होलाष्टक शुरू होता है, उसी के साथ शुभ कार्यों पर रोक लगा दी जाती है। होलाष्टक के दिनों में नए घर में प्रवेश मुहूर्त नहीं किया जाता है। वैवाहिक आयोजनों भी नहीं किये जाते है। नए व्यवसायिक प्रतिष्ठान का उद्घाटन भी इन दिनों में नहीं किया जाता है। होलाष्टक के दिनों में शुभता की कमी रहती है, इसलिए विशेष शुभ कार्य होलिका दहन तक के लिए स्थगित कर दिए जाते है। होलाष्टक की अवधि में १६ संस्कारों से सम्बंधित कार्य भी नहीं किये जाते है। इन दिनों को अशुभ माना जाता है, इसलिए शुभ कार्य करने से इन दिनों में बचना चाहिए।

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होलाष्टक के दिनों में किसी मंत्र विशेष का जाप कर मंत्र सिद्धि कार्य किये जा सकते है। मन्त्र सिद्धि के लिए इन दिनों को विशेष माना जाता है। मन्त्र सिद्धि के अलावा इन दिनों को साधना और ध्यान के लिए भी शुभ माना जाता है। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु जी का परम भक्त था। इसलिए इन दिनों में भगवान् विष्णु जी के मंत्र का जाप करना अति शुभ माना जाता है।

भगवान् विष्णु जी का मंत्र - ॐ विष्णवे नम:

इस मंत्र का जाप करने से विष्णु जी प्रसन्न होते है, और भक्त पर विष्णु जी कि कृपा बनी रहती है।
भगवान् विष्णु जी का मंत्र जाप करने के स्थान पर अपने इष्ट के मंत्रों का जाप भी किया जा सकता है। जैसे भगवान् श्रीकृष्ण के भक्त भगवान् श्रीकृष्ण के मंत्र - ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात का जाप कर अपने इष्ट को प्रसन्न कर सकते है।

भगवान् शिव के भक्त ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप कर भगवान् शिव की कृपा पा सकते है।

भगवान् हनुमान जी मन्त्र ॐ हं हनुमंते नम: का जाप कर भगवान् हनुमान जी से अपनी कामनाएं पूर्ण करा सकते है।

होलाष्टक का ज्योतिषीय महत्व | Astrological Significance of Holashtak

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अष्ठमी तिथि को चंद्र ग्रह शुभ नहीं माने जाते है। नवमी तिथि को सूर्य ग्रह को शुभ फलदायक नहीं माना जाता है। दशमी तिथि को शनि ग्रह से प्राप्त होने वाले फलों को शुभ नहीं माना जाता है। एकादशी तिथि को शुक्र ग्रह के फल अशुभ कहे गए है। द्वादशी तिथि को गुरु ग्रह शुभ फल नहीं देते है, त्रयोदशी तिथि को बुधग्रह से मिलने वाले फल शुभ नहीं होते है। चतुर्दशी तिथि को मंगल ग्रह और पूर्णिमा तिथि को राहु ग्रह का प्रभाव उग्र कहा गया है। इसलिए इन दिनों में ग्रहों के उग्र व्यवहार को देखते हुए भी शुभ नहीं माना जाता है। यही कारण है कि इन दिनों में विशेष कर युवाओं का व्यवहार उग्र रहता है।

जिन जातकों की कुंडली में शनि, राहु और मंगल अशुभ ग्रहों से पीड़ित हो, अथवा शनि और मंगल दोनों वक्री अवस्था में हो, और दशान्तर्दशा का सम्बन्ध भी शनि-मंगल ग्रह से आ रहा हो तो उन जातकों को इन दिनों में विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए। ऐसे जातकों को हनुमान चालीसा का पाठ नियमित रूप से करने से कष्ट से मुक्ति मिलती है।

साल 2024 में होलाष्टक 17 मार्च 2024, अष्टमी तिथि, दिन रविवार से शुरू हो रहा है, यह 17 मार्च से शुरू होकर 25 मार्च, 2024, सोमवार, धुलैंडी, तक रहेगा। इस प्रकार इस वर्ष नौ दिनों का रहने वाला है। 17 मार्च से लेकर 25 मार्च के मध्य में शुभ कार्य, जिसमें 16 संस्कार के कार्य करने वर्जित रहेंगे।

होलाष्टक की अवधि में क्या नहीं करना चाहिए ?

होलाष्टक की आठ दिन की अवधि में शुभ कार्य शुरू करने की मनाई होती है। यदि कोई शुभ कार्य इस अवधि से पहले शुरू कर दिया है तो उसे नहीं रोकना चाहिए। परन्तु कोई नया शुभ कार्य शुरू नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है की इन आठ दिनों तक हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक प्रयास किये थे। प्रह्लाद को शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी, इस कारण से इन आठ दिनों में कोई भी धर्म कार्य प्रारम्भ करने की मनाही होती है। होलाष्टक को हिन्दू धर्म में अशुभ अवधि मानकर शुभ कार्य नहीं किये जाते है। इन दिनों को अभिशप्त दिनों की सज्ञा भी दी जाती है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार इस अवधि में भगवान् शिव ने कामदेव जी को भस्म किया था। लेकिन इस समय में दान, धर्म, मंत्र जप और मृत्यु के पश्चात किये जाने वाले कार्य करने की मनाही नहीं होती है। वास्तव में होलाष्टक को अधर्म पर धर्म की विजय, असत्य पर सत्य की विजय, और भक्ति की शक्ति को भी बताता है। होलाष्टक जप तप कार्य के लिए सबसे अधिक अनुकूल माना जाता है। होलाष्टक विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। दक्षिणी भारत में यह कम ही बनाया जाता है। इस दिन से पेड़ की एक डाली तोड़कर गाड़ दिया जाता है, उसे रंग बिरंगे कपड़ों से सजा दिया जाता है। जिसे भक्त प्रह्लाद का रूप माना जाता है। हिंरण्यकश्यप अहंकार में डूबा था, विष्णु जी को वह भगवान् स्वीकार नहीं करता था।

होलाष्टक से जुडी कथाएं | Stories Related to Holashtak

होलाष्टक से जुडी तीन पौराणिक कथाएं प्रचलित है -

होलाष्टक की पहली कथा - हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की पौराणिक कथा के अनुसार, राजा हिरण्यकश्यप अहंकार में डूबा एक राजा था। वह स्वयं को ही ईश्वर मानता था। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान् विष्णु का परम भक्त था। अपने पुत्र को भगवान विष्णु जी की भक्ति से हटाने के लिए अनेक प्रयास किये। घोर यातनाएं दी, पर प्रह्लाद ने भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा। इन्हीं आठ दिनों में हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने और ईश्वर भक्ति से हटाने का प्रयास किया। आठ दिनों की यातनों के बाद भी भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ तो हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को अपने पुत्र को गोद में लेकर आग में बैठने के लिए, क्योंकि होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि उसे आग जला नहीं पाएगी। होलिका ने अपने भाई का कहा माना और अपने पुत्र को गोद में लेकर आग में बैठ गई। विष्णु कृपा से होलिका आग में जल गई और भक्त प्रह्लाद को कुछ न हुआ। भक्ति में शक्ति के उपलक्ष्य में होलिका दहन पर्व मनाया जाता है।

होलाष्टक से जुडी दूसरी कथा -

भगवान् शिव और कामदेव कथा - होलाष्टक से जुडी एक अन्य कथा के अनुसार भगवान् शिव लम्बी समाधि में थे। हिमालय की पुत्री पार्वती देवी की कामना थी कि उसका विवाह भगवान् शिव से हो। देवता भी यह चाहते थे कि भवान शिव का शीघ्र विवाह हो जाए, क्योंकि ब्रह्मा जी के अनुसार तारकासुर को भगवान् शिव का पुत्र ही मार सकता है। लेकिन भगवान शिव साधना समाधी में थे। ऐसे में देवताओं ने भगवान् शिव की समाधि भंग करने का कार्य कामदेव भगवान को दिया। देवताओं की आज्ञा का पालनकर कामदेव ने काम का बाण भगवान् शिव कि और चलाया। जिससे भगवान शिव की समाधि भंग हुई। समाधि भंग होने से भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए। भगवान् शिव ने क्रोध में कामदेव को भस्म कर दिया। आठ दिनों तक कामदेव ने भगवान शिव की समाधि भंग करने के लिए प्रयास किये, यही वो आठ दिन थे, होलिका दहन के दिन भगवान शिव की समाधी भंग हुई थे। इसलिए होलाष्टक के आठ दिन अशुभ माने जाते है। देवताओं ने भगवान शिव को कामदेव के दवारा बाण चलाने का कारण बताया। उद्देश्य जानकर भगवान शिव ने पार्वती जी से विवाह किया। और देवी पार्वती जी को सदैव के लिए अपनी अर्धांग्नी स्वीकार किया। देवी रति ने जब अपने पति को भस्म होते देखा तो उन्होंने भगवान शिव से अपने पति के प्राण बचाने के लिए प्रार्थना की, भगवान शिव रति की साधना से प्रसन्न हुए और कामदेव को फिर से जीवन दिया।

होलाष्टक से जुडी एक अन्य कथा के अनुसार -

भगवान श्रीकृष्ण और गोपियों से जुडी एक कथा के अनुसार होलाष्टक के आठ दिनों तक भगवान श्री कृष्ण गोपियों और राधा रानी के साथ होली खेले थे। उस समय होली एक दिन की न होकर आठ दिन की थी। होली की इन आठ दिनों में भगवान् श्री कृष्ण रंगों से सरोबोर हो गए थे, उनके वस्त्र रंग बिरंगे हो गए थे। इस उपलक्ष्य में होली रंगोत्सव मनाया जाता है।

होलाष्टक होली रंग उत्सव तक मनाया जाता है। होलाष्टक पर लगने वाले प्रतिबन्ध होली रंग उत्सव तक होते है।

होली मुख्य रूप से दो दिन का पर्व होता है। होलाष्टक के नियम जिन्हें मान्यताएं भी कहा जा सकता है, ये उत्तर भारत में ही मान्य है। उत्तर भारत के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में इन मान्यताओं का पालन नहीं किया जाता है। होलाष्टक के शुरू होने से लेकर होलिका दहन तक प्रत्येक दिन गाढ़े गए लकड़ी के डांडे पर थोड़ी थोड़ी लकड़ियां रोज डाली जाती है। प्रयास किया जाता है कि जो लकड़ियां खुद से सूखकर पेड़ से गिर गई हों, उन्हें ही होलिका दहन में जलाने के लिए प्रयोग किया जाए। किसी हरे भरे पेड़ को नुकसान पहुंचा कर होलिका दहन के लिए लकड़ियां एकत्रित नहीं की जाती है। आठ दिनों में लकड़ियों का एक बड़ा ढेर बन जाता है। मधुर और राजस्थान में होली रंग उत्सव होलाष्टक से ही शुरू हो जाता है।

होलिका दहन में गाय के गोबर के छोटे-छोटे गोल आकार के उपले बनाये जाते है। इन उपलों के बीच में छेद रखा जाता है, जिन्हें पिरोकर छोटी छोटी माला बनायीं जाती है। होलिका दहन के समय में इन मालाओं को होली में जलाने के लिए डाला जाता है। होलिका दहन पर्व के दिन गोबर के उपलों की माला और लकड़ियों के ढेर की विधिवत मुहूर्त अनुसार पूजा की जाती है। उसके बाद इसमें अग्नि दी जाती है और सब के घरों से आये पकवान का भोग लगाया जाता है। होलिका दहन में खेतों से लाये गेंहूं की बालियों और हरे चने की बालियों को अग्नि में भूना जाता है और उसका कुछ भाग भून कर घर भी लाया जाता है। जिसे प्रसाद स्वरूप सभी थोड़ा थोड़ा ग्रहण करते है। इसी के साथ होलाष्टक पूर्ण होता है। और रंग उत्सव शुरू होता है।