नव संवत्सर 2081 - हिन्दू सनातन धर्म का नववर्ष 2081
By: Acharya Rekha Kalpdev | 06-Mar-2024
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हिन्दू नव संवत्सर प्रत्येक वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता है। इसी दिन से चैत्र नवरात्रों का भी प्रारम्भ होता है। हिन्दू धर्म विक्रम सम्वत कैलेण्डर का अनुसरण करता है। राजा विक्रमादित्य के समय से ही हिन्दू धर्म विक्रम सम्वत के अनुसार चैत्र प्रतिपदा की तिथि से नववर्ष का प्रारम्भ करता है। चैत्र प्रतिपदा तिथि हिन्दू सनातन धर्म के लिए विशेष महत्त्व रखती है। वैदिक काल से ही इस तिथि का खास महत्त्व रहा है, इस तिथि के महत्त्व के अनेक कारणों में से कुछ कारण इस प्रकार है -
- इसी तिथि से ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना की शुरुआत की थी।
- माना जाता है कि इसी तिथि के दिन भगवान् राम का राज्याभिषेक हुआ था।
- देवी शक्ति पूजन का प्रारम्भ इसी तिथि से ही हुआ था।
- राजा युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी तिथि के दिन हुआ था।
- महाराजा विक्रमादित्य ने भी इसी दिन से अपने राज्य की स्थापना की थी। राजा विक्रमादित्य के नाम पर ही विक्रम सम्वत का नाम रखा गया है।
- महर्षि संत गौतम ऋषि का जन्म भी इसी तिथि के दिन हुआ था।
- सिख पंथ के गुरु अंगद देव जी का जन्म भी चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि के दिन ही हुआ था।
- दयानन्द सरस्वती जी ने चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि के दिन ही आर्य समाज की स्थापना की थी।
- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना करने वाले संस्थापक प.पू.डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि के दिन हुआ था। इसलिए भी चैत्र प्रतिपदा तिथि अपना विशेष महत्त्व रखती है।
- चैत्र प्रतिपदा तिथि के दिन भगवान् श्री विष्णु जी ने प्रथम अवतार लिया था।
उपरोक्त शुभ कार्यों के कारण चैत्र प्रतिपदा तिथि आज एक उत्सव के रूप में मनाई जाती है। यही भारतीय नववर्ष है, जो भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रथम बिंदु है। भारतीय कैलेंडर को सनातन धर्म की रीढ़ की हड्डी भी कहा जा सकता है। सम्पूर्ण सनातन धर्म इसी पर टिका है। भारतीय नववर्ष का स्वागत सारी सृष्टि करती है। अत: यह दिन हम सब के लिए पूजनीय है।
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भारतीय नववर्ष की प्राकृतिक विशेषता
भारतीय नववर्ष के आगमन के समय प्रकृति का सौंदर्य अपने चरम पर होता है। चारों और फूल खिले होते है, रंग बिरंगे फूलों की खुशबू से उपवन महक रहे होते है। ख़ुशी, हर्षोउल्लास और उमंग का समय होता है। किसान को उसकी मेहनत का फल पकी हुई फसल के रूप में मिलता है, उसका मन भी आनंदित होता है। नक्षत्र और मुहूर्त की शुभता होने के कारण इस दिन से शक्ति पूजन नवरात्रि शुरू होते है। देवी शक्ति पूजन हेतु घट स्थापना करने के लिए इस दिन में शुभता का अंश होता है। प्रत्येक भारतीय को नववर्ष की शुभ कामनाएं देनी चाहिए। अंग्रेजी नववर्ष मनाने से लोगों को रोकना चाहिए और भारतीय नववर्ष मनाने के लिए जागरूक करना चाहिए।
नवसंवत्सर, भारतीय नववर्ष, चैत्र नवरात्र आगमन पर सभी भारतीयों को अपने घर के मुख्य द्वार पर अशोक के पत्तों का वंदनवार बांधना चाहिए। देवी घट स्थापना करनी चाहिए, घर की छत पर धर्म ध्वजा लगानी चाहिए। मंगलगीत, भजन, कीर्तन और देवी पाठ करना चाहिए। घर और मंदिरों में रोशनी करनी चाहिए। घरों में प्रकाश के लिए पांच दीपक जलाने चाहिए।
भारतीय नववर्ष की ज्योतिषीय विशेषता
इसी माह में सूर्य जो नवग्रहों में राजा है वह 14 अप्रैल के दिन मेष राशि,जो उसकी उच्च राशि है, में गोचर करता है। सूर्य के मेष राशि में गोचर की अवधि में ऋतू चक्र की प्रथम राशि में होते है। नववर्ष आगमन पर हर्षोउल्लास के साथ स्वागत किया जाता है। इस समय में मौसम मनमोहक होता है। पेड़ों पर नए पत्ते सुंदरता बढ़ा रहे होते है। प्रकृति का नवश्रृंगार सुशोभित हो रहा होता है।
अभी विक्रम संवत 2080 चल रहा है। वर्ष 2024 में हिन्दू नववर्ष 9 अप्रैल, 2024 से शुरू होगा। विक्रम संवत्सर 2081 का प्रारम्भ वर्ष 2024 में 9 अप्रैल, 2024, चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से हो रहा है। इस प्रकार हिन्दुओं का नववर्ष 9 अप्रैल, 2024 का रहेगा। विक्रम सम्वत 2081 का राजा मंगल ग्रह रहेगा और मंत्री शनि रहेगा। मंगल और शनि दोनों पापी ग्रह होने के कारण यह वर्ष क्रोध, आवेश और उत्पात का रहेगा। विक्रमी संवत 2081 का नाम क्रोधी है, और संवत्सर के राजा और मंत्री भी मंगल और शनि होने के कारण इस वर्ष को बहुत शुभ फलदायक नहीं कहा जा सकता है। संवत्सर का राजा मंगल ग्रह और शनि मंत्री इस वर्ष में बड़े पैमाने पर उथल पुथल ला सकते है। मंगल के कारण अग्नि की प्रधानता रहेगी और विवाद, झगड़े और तनाव बना रहेगा।
चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि नववर्ष के रूप में सम्पूर्ण भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इस तिथि को भारत के राज्यों में अलग-अलग नामों से सम्बोधित किया जाता है। विक्रम संवत, नववर्ष को गुड़ी पड़वा, युगादी, उगादि, वरह, विशु, वैशाखी, चित्रैय आदि नामों से जाना जाता है। हिन्दू कैलेंडर का प्रथम माह चैत्र माह है, इसके बाद आने वाले माह के नाम इस प्रकार है- बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, चैत्र , कार्तिक, अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन है। हिन्दू वर्ष 12 माह का होता है। कुल 60 संवत्सर हैं।
हिन्दू कैलेंडर में माह के नाम
भारतीय कैलेंडर जिसे हिन्दू कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता है। यह पूर्ण रूप से राशि, नक्षत्र और चंद्र आधारित है। इसे प्रकृति आधारित भी कहा जा सकता है। प्रत्येक माह के पूर्णिमा तिथि के दिन चंद्र जिस नक्षत्र में गोचर कर रहा होता है, उसी नक्षत्र के आधार पर माह का नाम रखा गया है। जैसे - चैत्र माह का नाम चित्रा नक्षत्र पर आधारित है, विशाखा नक्षत्र के आधार पर वैशाख माह का नाम। ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ माह का नाम, श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण माह का नाम रखा गया है। इसी प्रकार अन्य माह के नाम भी रखे गए है। भारतीय हिन्दू चंद्र वर्ष 354 दिन का होता है, और विक्रम संवत वर्ष 365 दिन 6 घंटे 9 मिनट 11 सेकंड का होता है। दोनों के अंतर को संतुलित करने के लिए प्रत्येक 3 वर्ष 8 मास 16 दिन के बाद एक अधिक मास या पुरुषोत्तम मास/मल मास की व्यवस्था की गई है। इस प्रकार भारतीय समय गणना पूर्णता: वैज्ञानिक और शुद्ध है। इसमें एक सेकेण्ड के बराबर भी अशुद्धि होने की संभावना नहीं हैं।
नव संवत्सर का महत्त्व
नववर्ष से हिन्दुओं का नववर्ष शुरू होता है और इस दिन फसल पककर घर आती है, फसल के घर आने की ख़ुशी में हर्षोउल्लास के साथ किसान प्रसन्न होकर ईश्वर को धन्यवाद देता है। इस दिन प्रकृति को आभार व्यक्त किया जाता है।
आंग्ल वर्ष के हिसाब से इस समय वर्ष 2024 चल रहा है। और हिन्दू धर्म के कैलेंडर के अनुसार अप्रैल 9, 2024 से संवत्सर 2081 वर्ष शुरू होगा। इस प्रकार भारतीय सनातन धर्म का कैलेंडर आंग्ल वर्ष से 57 वर्ष आगे चल रहा है। सनातन धर्म इस धरा का सबसे प्राचीन और सबसे प्रथम धर्म है, इस सृष्टि का प्रथम धर्म भी इसे कहा जा सकता है। समय, वर्ष, माह और घडी की गणना भारतीय वैदिक गणित पद्वति पर ही आधारित है। संसार को समय की गणना की पद्वति देने वाला देश भारत है। विश्व भर में घडी शब्द का प्रयोग आज हो रहा है, यह घडी शब्द घटी शब्द का ही बदला हुआ रूप है। समय समय पर भारत में आने वाले आक्रांताओं ने यहाँ के ज्ञान और संस्कृति को नष्ट करने का पूरा प्रयास किया। वैदिक उपलब्धियों और ज्ञान को चुराकर अपने साथ ले गए और उस ज्ञान को अपना नाम दे दिया।
विक्रम संवत हिन्दू कैलेंडर को ही मान्यता क्यों ?
वैदिक काल में भारत सम्पूर्ण विश्व में विश्व गुरु था। ज्ञान की गंगा यहाँ बहा करती थी। जिसमें देश विदेश के सभी छात्र आकर ज्ञान अर्जित करते थे। सनातन धर्म से अभिप्राय: अनंत है, सास्वत है, जिसका न कोई आदि है न अंत है।वैदिक काल से ही भारत का इतिहास गौरवशाली रहा है। भारत के ज्ञान को सारे संसार ने अपनाया और उसे अपने रंग में रंग दिया। यहाँ का धर्म, संस्कृति और ज्ञान सदैव से वैज्ञानिक रहा है। सारे संसार की बात करें, तो आज विश्व में लगभग 70 से अधिक प्रकार के कैलेण्डर और वर्ष गणनाएं प्रचलन में है। इन नववर्ष गणनाओं को सभी पंथ, समुदाय अपने अपने रीति रिवाज के अनुसार से मनाते है। काल गणना और वर्ष गणना के लिए ईसवी शब्द का प्रयोग किया जाता है। ईसा मसीह की मृत्यु के वर्ष से इसकी गणना शुरू होती है। उससे पूर्व के वर्षों की गणना ईसा पूर्व के नाम से की जाती है।
भारतीय नववर्ष पर पाश्चात्य नववर्ष थोपा गया है। कई सौ सालों तक अंग्रेजों ने भारत को अपना गुलाम बना कर रखा, इस अवधि में अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति को मिटाकर अपनी संस्कृति का प्रचार प्रसार किया। भारत को आजाद हुए आज 77 वर्ष हो गए, परन्तु फिर भी कई भारतीय 1 जनवरी, आंग्ल नववर्ष को अपना नववर्ष कहते है, सही जानकारी न होने के कारण वो ऐसा करते है। एक लम्बे समय तक भारतीयों को उनके धर्म और संस्कृति की सही जानकारी से दूर रखा गया। यह बहुत शर्म का विषय है कि हम उनकी संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं जिन्होंने हमें अपना गुलाम बना कर रखा। समय के साथ भारतीय अपना नववर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाने लगे है, जो हर्ष का विषय है। अंग्रेजी दासता के समय पर जो कालगणना हम पर थोपी गई थी, उसका रंग समय के साथ उतरने लगा है और अपनी संस्कृति का रंग भारतीयों पर चढ़ने लगा है। भारतीय नववर्ष हो या भारतीय पर्व सभी के मूल में ईश्वरीय ऊर्जा और पूजन समाहित है। भारतीय नववर्ष का शुभारम्भ देवी शक्ति पूजन नवरात्रों के साथ होता है। हम अपने नववर्ष के स्वागत के दिन शराब के नशे में आधे वस्त्रों के साथ नाचते गाते नहीं है, अपितु व्रत रख कर पूजन करते है। इस वर्ष भारतीय नववर्ष 9 अप्रैल, 2024, मंगलवार से शुरू होगा। इसी दिन से चैत्र नवरात्र भी शुरू हो रहे है, जो 17 अप्रैल नवमी तिथि तक रहेंगे।
भारत में ही इस समय अनेकोनेक संवत और कैलेंडर चल रहे है। इन सभी में विक्रम संवत सर्वोपरि है। राजा विक्रमादित्य ने शकों के अत्याचारों से देश को अपने शासन काल में मुक्त कराया था। तभी से इस दिन को नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। नववर्ष के दिन वैश्य अपने नए बही खाते शुरू करते है। और विक्रमादित्य के समय में इस दिन से प्रजा के पुराने सारे कर्ज माफ कर शून्य किया जाता था। साथ ही नए बही खातों से नया खाता शुरू किया जाता था। प्रजा के पुराने कर्जों को राजकोष के खाते से राजा के द्वारा चुकाया जाता था, इस परंपरा को राजा विक्रमादित्य ने स्वयं भी निभाया और शुरू भी किया। चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नया संवत शुरू किया। राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संवत का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से किया, तभी से इस तिथि को नववर्ष का प्रारम्भ माना जाता है। राजा विक्रमादित्य न केवल नववर्ष शुरू करने एक लिए जाने जाते है, अपितु राजा विक्रमादित्य अपने शौर्य, पराक्रम, साहस और प्रजा हितेषी के रूप में भी जाने जाते है। उन्होंने अपने समय में 95 शक राजाओं को अपने शौर्य से पराजित किया और सुशासन की व्यवस्था की।
आज विक्रमादित्य ने अपने शासनकाल में ज्ञान-विज्ञानं, कला, साहित्य और संस्कृति का संवर्धन किया। इनके शासन काल में धन्वन्तरि, वराहमिहिर और कालीदास जैसे महान वैद्य, गणितज्ञ और साहित्यकार हुए। साहूकार गरीबों का शोषण न कर सकें। राजा विक्रमादित्य के इन्हीं गुणों के कारण आज विक्रम संवत को हिन्दू कैलेंडर का आधार बनाया गया है।
आप सभी को विक्रम संवत 2081 हिन्दू नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं