हर शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक, जानिए इसका कारण और रहस्य | Future Point

हर शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक, जानिए इसका कारण और रहस्य

By: Future Point | 22-Sep-2021
Views : 5262हर शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक, जानिए इसका कारण और रहस्य

स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल और शुभता का प्रतीक माना जाता रहा है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक का चिन्ह अवश्य बनाया जाता है। स्वास्तिक शब्द सु+अस+क शब्दों से मिलकर बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा या शुभ, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस तरह से स्वास्तिक शब्द का अर्थ मंगल करने वाला माना गया है। स्वास्तिक को भगवान गणेश का प्रतीक भी माना जाता है। गणेश जी शुभता के देवता हैं और प्रथम पूजनीय हैं इसलिए भी हर कार्य से पहले स्वास्तिक का चिन्ह बनाना बहुत ही शुभ रहता है। खासतौर पर मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा में स्वास्तिक का चिन्ह अवश्य बनाया जाता है। आइए जानते हैं स्वास्तिक का चिन्ह बनाने का महत्व और इसे बनाने के लाभ।  इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना निहित है। 'स्वस्तिक' शब्द की निरुक्ति है - 'स्वस्तिक क्षेम कायति, इति स्वस्तिकः' अर्थात् 'कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है। स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है।

स्वस्तिक को ऋग्वेद की ऋचा में सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्तसार नामक ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है।

मंगलकारी प्रतीक चिह्न स्वस्तिक अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। अत्यन्त प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगलता का प्रतीक माना जाता रहा है। विघ्नहर्ता गणेश की उपासना धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ लाभ, स्वस्तिक तथा बहीखाते की पूजा की परम्परा है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। इसीलिए जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई मंगल व शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वस्तिक को ही अंकित किया जाता है।

स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोडऩे के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है। मान्यता है कि यदि स्वास्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के समान माना गया है, तो फलस्वरूप मध्य में मौजूद बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिसमें से भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं।

हिन्दू धर्म में स्वस्तिक को शक्ति, सौभाग्य, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना जाता है। घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है। स्वस्तिक के चिह्न को भाग्यवर्धक वस्तुओं में गिना जाता है। स्वस्तिक के प्रयोग से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है।

स्वस्तिक में भगवान गणेश और नारद की शक्तियां निहित हैं। स्वस्तिक को भगवान विष्णु और सूर्य का आसन माना जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान 'गं' बीज मंत्र होता है। इसमें जो 4 बिंदियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है। इस मंगल-प्रतीक का गणेश की उपासना, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ बही-खाते की पूजा की परंपरा आदि में विशेष स्थान है।

 

स्वस्तिक की खड़ी रेखा सृष्‍टि की उत्पत्ति का प्रतीक है और आड़ी रेखा सृष्‍टि के विस्तार का प्रतीक है। स्वस्तिक का मध्य बिंदु विष्णु का नाभि कमल है तो 4 बिंदु चारों दिशाओं का। ऋग्वेद में स्वस्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है।

दिशाओं का प्रतीक : स्वस्तिक सभी दिशाओं के महत्व को इंगित करता है। इसका चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं- अग्नि, इन्द्र, वरुण एवं सोम की पूजा हेतु एवं सप्तऋषियों के आशीर्वाद को प्राप्त करने में प्रयोग किया जाता है।

चार वेद, पुरुषार्थ और मार्ग का प्रतीक : हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण 4 सिद्धांत धर्म, अर्थ काम और मोक्ष का प्रतीक भी माना जाता है। चार वेद का प्रतीक- ऋग्, यजु, साम और अथर्व। चार मार्ग ज्ञान, कर्म, योग और भक्ति का भी यह प्रतीक है।

जीवन चक्र और आश्रमों का प्रतीक : यह मानव जीवन चक्र और समय का प्रतीक भी है। जीवन चक्र में जन्म, जवानी, बुढ़ापा और मृत्य यथाक्रम में बालपन, किशोरावस्था, जवानी और बुढ़ापा शामिल है। यही 4 आश्रमों का क्रम भी है- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास।

युग, समय और गति का प्रतीक : स्वस्तिक की 4 भुजाएं 4 गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं वहीं समय चक्र में मौसम और काल शामिल है। यही 4 युग का भी प्रतीक है- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग।

योग, जोड़ का प्रतीक : इसका आरंभिक आकार गणित के धन चिह्न के समान है अत: इसे जोड़ या मिलन का प्रतीक भी माना जाता है। धन के चिह्न पर एक-एक रेखा जोड़ने पर स्वस्तिक का निर्माण होता है।

स्वास्तिक हमेशा लाल रंग का ही बनाया जाता है क्योंकि हिंदू धर्म में लाल रंग खास महत्त्व है। हिंदू धर्म में पूजा पाठ के समय या किसी भी शुभ कार्य करने के समय लाल रंग का उपयोग किया जाता है।

पंच धातु का स्वस्तिक बनवा के प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद चौखट पर लगवाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। चांदी में नवरत्न लगवाकर पूर्व दिशा में लगाने पर वास्तु दोष दूर होकर लक्ष्मी प्रप्ति होती है।

वास्तुदोष दूर करने के लिए 9 अंगुल लंबा और चौड़ा स्वस्तिक सिंदूर से बनाने से नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मकता में बदल जाती है।

धार्मिक कार्यों में रोली, हल्दी या सिंदूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्‍टी देता है। त्योहारों पर द्वार के बाहर रंगोली के साथ कुमकुम, सिंदूर या रंगोली से बनाया गया स्वस्तिक मंगलकारी होता है। इसे बनाने से देवी और देवता घर में प्रवेश करते हैं। गुरु पुष्य या रवि पुष्य में बनाया गया स्वस्तिक शांति प्रदान करता है।

स्वास्तिक चिन्ह घर में सुख समृद्धि एवं धन में वृद्धि करता है। लोग पूजा स्थान में अथवा किसी शुभ अवसर पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाते हैं।

स्वास्तिक चिन्ह शुभ और लाभ में वृद्घि करने वाला होता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार स्वास्तिक का संबंध असल में वास्तु से है।

इसकी बनावट ऐसी होती है कि यह हर दिशा में एक जैसा दिखता है। अपनी बनावट की इसी खूबी के कारण यह घर में मौजूद हर प्रकार के वास्तुदोष को कम करने में सहायक होता है।

शास्त्रों में स्वास्तिक को विष्णु का आसन एवं लक्ष्मी का स्वरुप माना गया है। चंदन, कुमकुम अथवा सिंदूर से बना स्वास्तिक ग्रह दोषों को दूर करने वाला होता है और यह धन कारक योग बनाता है।

वास्तुशास्त्र के अनुसार अष्टधातु का स्वास्तिक मुख्य द्वार के पूर्व दिशा में रखने से सुख समृद्घि में वृद्घि होती है।

स्वस्तिक बनाने के कारण माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर घर के अंदर प्रवेश करती है। इसलिये हर दिन स्वस्तिक बनाना चाहिये। यह ऐसा उपाय है जो सरल तो है ही वहीं इसका परिणाम भी सार्थक रूप से प्राप्त होता है।

कुंकुम का स्वस्तिक बनाना उचित होता है। इसलिये कुंकुंम का ही स्वस्तिक हर दिन बनाये। इसे बनाने के बाद चावल और हल्दी भी थोड़ी-थोड़ी डालें।

मान्यता है कि वास्तु दोष से छुटकारा पाने के लिए स्वास्तिक बनाया जाता है। क्योंकि इसकी चारों रेखाएं चारों दिशाओं की प्रतीक होती है।  आप किसी भी प्रकार के वास्तु दोष को दूर करने के लिए घर के मुख्यद्वार पर स्वास्तिक बनाएं। इससे आपकी सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं और चारों दिशाएं शुद्ध हो जाती है। इसके अलावा स्वास्तिक बनाने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

ज्योतिष विद्या के अनुसार, कारोबार में हो रहे घाटे को कम करने के लिए ईशान कोण में लगातार 7 गुरुवार तक सूखी हल्दी से स्वास्तिक चिह्न बनाने से लाभ मिलता है. अगर आप किसी कार्य में सफलता चाहते हैं तो घर के उत्तरी दिशा में सूखी हल्दी स स्वास्तिक का निशान बनाने से बहुत लाभ प्राप्त होता है।

सफलता के लिए: यदि आप किसी कार्य में सफलता चाहते हैं तो घर के उत्तरी दिशा में सूखी हल्दी से स्वास्तिक का निशान बनाएं.

घर को बुरी नजर से बचाने के लिए काले रंग का सातिया लगाया जाता है. मान्यता है कि काल रंग के कोयले से बने स्वास्तिक से नकारात्मक शक्तियां दूर होती है.

स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर जिस भी देवता की मूर्ति रखी जाती है वह तुरंत प्रसन्न होता है। यदि आप अपने घर में अपने ईष्‍टदेव की पूजा करते हैं तो उस स्थान पर उनके आसन के उपर स्वस्तिक जरूर बनाएं।

 प्रतिदिन सुबह उठकर विश्वासपूर्वक यह विचार करें कि लक्ष्मी आने वाली हैं। इसके लिए घर को साफ-सुथरा करने और स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद सुगंधित वातावरण कर दें। फिर भगवान का पूजन करने के बाद अंत में देहली की पूजा करें। देहली (डेली) के दोनों ओर स्वस्तिक बनाकर उसकी पूजा करें। स्वस्तिक के ऊपर चावल की एक ढेरी बनाएं और एक-एक सुपारी पर कलवा बांधकर उसको ढेरी के ऊपर रख दें। इस उपाय से विशेष धनलाभ होगा।