ग्रहों की युति (संयोजन)
By: Future Point | 04-Jan-2022
Views : 4313
जब दो ग्रह एक ही राशि में हों तो इसे ग्रहों की युति कहा जाता है। जब दो ग्रह एक-दूसरे से सातवें स्थान पर हों अर्थात् 180 डिग्री पर हों, तो यह अशुभ ग्रह या अशुभ स्थानों के स्वामि यों की युति -प्रति युति अशुभ फलदायक होती है, जबकि शुभ ग्रहों की युति शुभ फल देती है।
ग्रहों की युति (संयोजन) का प्रभाव -
युति को अंग्रेजी में कंजंक्शन (conjunction) कहा जाता है। युति का मतलब है दो ग्रहों एक साथ बैठना। अगर दो ग्रह एक ही राशि में स्थित हों तो उन्हें ग्रह युति कहा जाता है। जब दो या दो से अधिक ग्रह एक ही भाव में आ जाते हैं तो ग्रहों की युति बनती है। किसी राशि पर ग्रहों का प्रभाव उसके घर में उपस्थित एक ग्रह और अन्य ग्रहों की युति पर निर्भर करता है। युति का असर लोगों की ज़िंदगी पर शुभ और अशुभ दोनों प्रकार से पड़ता है। अगर जातक की लाइफ पर इसका असर शुभ पड़ता है तो उसकी लाइफ की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं और वो खुशहाल ज़िंदगी जीते हैं, वहीं जिन लोगों के ऊपर इसका अशुभ प्रभाव पड़ता है वो लोग बहुत परेशान रहते हैं। ग्रह की बल को जानने के लिए यह भी देखा जाता है कि ग्रह उच्च-नीच, वक्री, अस्त, अथवा मार्गी है।
विभिन्न भावों में ग्रहों की युति -
ज्योतिष शास्त्र के फलित में अनेक ग्रहयोग व युति है। कुछ योग सुप्रसिद्ध योगों की श्रेणी में आते हैं। लेकिन जन्म पत्रिका में कुछ ग्रहयोग
ग्रहों के संयोग से बनते हैं। ग्रहों के संयोजन के संबंध में एक ही भाव में पांच या छह ग्रह स्थित हो सकते हैं। परन्तु ऐसी स्थिति कम ही होती है। इस प्रकार के ग्रह संयोजन वाली कुंडली को समझना बहुत कठिन होता है। इसलिए, यह निर्धारित करने के लिए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए कि ग्रह एक दूसरे को किस प्रकार प्रभावित करते हैं। साथ ही इस संयोजन के कारण ग्रह युति अथवा योग बन सकता है। यदि एक ही भाव में पाप ग्रह हो तो इस योग से व्यक्ति को कोई लाभ नहीं होता है। इसके विपरीत, जब किसी भाव में अशुभ या कमजोर ग्रहों का संयोजन होता हैं, तो एक लाभकारी ग्रह की उपस्थिति ऐसी स्थिति को संतुलित कर सकती है। हालांकि, किसी अन्य ग्रह के अशुभ प्रभाव के कारण इसकी प्रबलता कम होगी। इस प्रकार की कुंडली औसत मानी जाती है।
व्यक्ति का जीवन ग्रह संयोजन द्वारा कैसे चित्रित किया जाता है?
किसी के जीवन का वैचारिक क्षेत्र एक भाव में कई ग्रहों के संयोजन की विशेषता है। इसका अर्थ है, जिस भाव में कई ग्रह स्थित हों। हालांकि, किसी एक भाव की प्रबलता के कारण व्यक्ति के व्यक्तित्व में असंतुलन आ सकता है। जिस भाव में ग्रहों का संयोजन होता है उस भाव के स्वामी पर भी नज़र रहती है। यदि इसकी किसी कुंडली में स्थिति बेहतर हो तो यह एक व्यक्ति पर लाभकारी प्रभाव डालता है। यह अन्य ग्रहों को भी प्रबल करता है।और, यदि यह अशुभ स्थिति में है या कमज़ोर में है, तो यह केवल नकारात्मक परिणाम देता है, और स्थिति खराब हो सकती है।
आइए विभिन्न ग्रहों की युति के प्रभाव पर चर्चा की जाए -
दो ग्रहों युति का फल
सूर्य की अन्य ग्रहों से युति का प्रभाव -
सूर्य-चंद्र : चंद्र यदि शुभ योग में हो तो यह युति मान-सम्मान व प्रतिष्ठा की दृष्टि से श्रेष्ठ होती है, मगर अशुभ योग होने पर मानसिक रोगी बना देती है।
सूर्य-मंगल : अत्यंत महत्वाकांक्षी बनाने वाला यह योग व्यक्ति को उत्कट इच्छाशक्ति व साहस देता है। ये व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने की योग्यता रखते हैं।
सूर्य-बुध : यह योग व्यक्ति को व्यवहार कुशल बनाता है। व्यापार-व्यवसाय में यश दिलाता है। कर्ज आसानी से मिल जाते हैं।
सूर्य-गुरु : उत्कृष्ट योग, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, यश दिलाता है। उच्च शिक्षा हेतु दूरस्थ प्रवास योग तथा बौद्धिक क्षेत्र में असाधारण यश देता है।
सूर्य-शुक्र : कला क्षेत्र में विशेष यश दिलाने वाला योग होता है। विवाह व प्रेम संबंधों में भी नाटकीय स्थितियाँ निर्मित करता है।
सूर्य-शनि : अत्यंत अशुभ योग, जीवन के हर क्षेत्र में देर से सफलता मिलती है। पिता-पुत्र में वैमनस्य, भाग्य का साथ न देना इस युति के परिणाम हैं।
चन्द्र की अन्य ग्रहों से युति का प्रभाव -
चंद्र+मंगल : शत्रुओं पर एवं ईर्ष्या करने वालों पर, सफलता प्राप्त करने के लिए एवं उच्च वर्ग (सरकारी अधिकारी) विशेषकर सैनिक व शासकीय अधिकारी से मुलाकात करने के लिए उत्तम रहता है।
चंद्र+बुध : धनवान व्यक्ति, उद्योगपति एवं लेखक, सम्पादक व पत्रकार से मिलने या सम्बन्ध बनाने के लिए।
चंद्र+गुरु : अध्ययन कार्य, किसी नई विद्या को सीखने एवं धन और व्यापार उन्नति के लिए।
चंद्र+शुक्र : प्रेम-प्रसंगों में सफलता प्राप्त करने एवं प्रेमिका को प्राप्त करने तथा शादी- ब्याह के समस्त कार्यों के लिए, विपरीत लिंगी से कार्य कराने के लिए।
चंद्र+शनि : शत्रुओं का नाश करने एवं उन्हें हानि पहुंचाने या उन्हें कष्ट पहुंचाने के लिए।
मंगल की अन्य ग्रहों से युति का प्रभाव -
मंगल+बुध : शत्रुता, भौतिक सामग्री को हानि पहुंचाने, तबाह-बर्बाद, हर प्रकार सम्पत्ति, संस्था व घर को तबाह-बर्बाद करने के लिए।
मंगल+गुरु : युद्घ और झगड़े में या कोर्ट केस में, सफलता प्राप्त करने के लिए, शत्रु-पथ पर भी जनमत को अनुकूल बनाने के लिए।
मंगल+शुक्र : हर प्रकार के कलाकारों (फिल्मी सितारों) में डांस, ड्रामा एवं स्त्री जाति पर प्रभुत्व और सफलता प्राप्त करने के लिए।
मंगल+शनि : शत्रु नाश एवं शत्रु मृत्यु के लिए एवं किसी स्थान को वीरान करने (उजाड़ने ) के लिए।
बुध की अन्य ग्रहों से युति का प्रभाव -
बुध+गुरु : पुरुष का पुरुष के साथ प्रेम और मित्रता सम्बन्धों में पूर्ण रूप से सहयोग के लिए एवं हर प्रकार की ज्ञानवृद्घि के लिए नया है।
बुध+शुक्र : प्रेम-सम्बन्धी सफलता, विद्या प्राप्ति एवं विशेष रूप से संगीत में सफलता के लिए।
बुध+शनि : जातक के काम जमीनी होते है या तो वह जमीन को नापने जोखने का काम करने लगता है या भूमि आदि को नाप कर प्लाट आदि बनाकर बेचने का काम करता है इसके साथ ही बोलने चालने मे एक प्रकार की संजीदगी को देखा जा सक्ता है,
गुरु के साथ अन्य ग्रहों का सम्बन्ध
गुरु+शुक्र आध्यात्मिकता से भौतिकता की ओर ले जाने का काम करता है, वह कानून तो जानता है लेकिन कानून को भौतिकता में देखना चाहता है वह धर्म को तो मानता है लेकिन भौतिक रूप में सजावट आदि के द्वारा अपने इष्ट को देखना चाहता है।
गुरु+शनि के मिलने से जातक के अन्दर एक प्रकार से ठंडी वायु का संचरण शुरु हो जाता है जातक धर्मी हो जाता है कार्य करता है लेकिन कार्य फ़ल के लिये अपनी तरफ़ से जिज्ञासा को जाहिर नही कर पाता है जिसे जो भी कुछ दे देता है वापस नही ले पाता है कारण उसे दुख और दर्द की अधिक मीमांसा करने की आदत होती है।
गुरु+राहु का साथ होने से जातक धर्म और इसी प्रकार के कारणो मे न्याय आदि के लिये अपनी शेखी बघारने के अलावा और उसे कुछ नही आता है कानून तो जानता है लेकिन कानून के अन्दर झूठ और फ़रेब का सहारा लेने की उसकी आदत होती है वह धर्म को मानता है लेकिन अन्दर से पाखंड बिखेरने का काम भी उसका होता है।
गुरु+केतु के साथ मिलकर वह धर्माधिकारी के रूप मे काम करता है कानून को जानने के बाद वह कानूनी अधिकारी बन जाता है अन्य ग्रह की युति मे जैसे मंगल अगर युति दे रहा है तो जातक कानून के साथ मे दंड देने का अधिकारी भी बन जाता है।
शुक्र के साथ अन्य ग्रहों का सम्बन्ध
शुक्र+शनि के साथ मिलने पर यह दुनिया की सभी वस्तुओ को देता है लेकिन मन के अन्दर शान्ति नही देता है।
शुक्र+राहु के साथ मिलकर प्रेम का पुजारी बन जाता है।
शुक्र+केतु के साथ मिलकर भौतिक सुखो से दूरिया देता है।
शनि के साथ ग्रहों का आपसी सम्बन्ध
शनि+राहु की युति मे जो भी काम होते है वह दो नम्बर के कामों के रूप मे जाने जाते है अगर शनि राहु की युति त्रिक भाव मे है तो जातक को जेल जाने से कारण जरूर पैदा होते है।
शनि+केतु की युति मे जातक व्यापार और दुकान आदि के फ़ैलाने के काम करता है वह एक वकील की हैसियत से अपने कामो करता है।