गोवर्धन (अन्नकूट) पूजा, शुभ मुहूर्त और इस त्योहार से जुड़ी रोचक कथा
By: Future Point | 30-Oct-2021
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गोवर्धन (अन्नकूट) पूजा, शुभ मुहूर्त और इस त्योहार से जुड़ी रोचक कथा
गोवर्धन पूजा हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। दीपावली के अगले दिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का त्योहार मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा का संबंध धन और अन्न से है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन इन्द्र, अग्नि और वरुण देवता की पूजा करना शुभ होता है। इस दिन विशेष रूप से गाय, बैल और बछड़े की पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है। इस दिन भारत के कई कृष्ण मंदिरों में भक्तों के द्वारा भंडारे किये जाते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने मथुरावासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था। इस दिन मथुरा में गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने का विधान है। इसके अलाव इस दिन लोग अपने घरों में गोबर से गोवर्धन पर्वत बना कर उसका पूजन करते हैं। इस दिन नई फसल के अनाज से भी पूजन किया जाता है, इसे ही अन्नकूट कहा जाता है।
गोवर्धन पूजा या अन्न कूट का त्यौहार समस्त भारतवर्ष में मनाया जाता है लेकिन उत्तर भारत में खासकर ब्रज भूमि (मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, गोकुल, बरसाना आदि) पर इसकी भव्यता और बढ़ जाती है, जहां स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल के लोगों को गोवर्धन पूजा के लिए प्रेरित किया था और देवराज इंद्र के अहंकार का नाश किया था। आइए जानते हैं इस साल
गोवर्धन पूजा की तिथि और पूजन मुहूर्त
गोवर्धन पूजा पर्व तिथि - 5 नवंबर 2021, शुक्रवार
गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त :06 बजकर 35 मिनट से 08 बजकर 47 मिनट तक
अवधि :2 घंटे 12 मिनट
गोवर्धन पूजा सायंकाल मुहूर्त : 15 बजकर 22 मिनट से 17 बजकर 33 मिनट तक
अवधि : 2 घंटे 11 मिनट
गोवर्धन पूजा के नियम और विधि -
गोवर्धन पूजा का हिन्दू धर्म में बड़ा महत्व है। वेदों के अनुसार इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि आदि देवताओं की पूजा का विधान है। इस दिन गोवर्धन पर्वत, गोधन यानि गाय और भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है। यह त्यौहार मानव जाति को इस बात का संदेश देता है कि हमारा जीवन प्रकृति द्वारा प्रदान किये गए संसाधनों पर निर्भर है और इसके लिए हमें उनका सम्मान और धन्यवाद करना चाहिए। गोवर्धन पूजा के जरिए हम समस्त प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं।
गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से गोवर्धन बनाकर उसे फूलों से सजाया जाता है। गोवर्धन पूजा सुबह या शाम के समय की जाती है। पूजन के दौरान गोवर्धन पर धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल आदि चढ़ाये जाने चाहिए। इसी दिन गाय-बैल और कृषि काम में आने वाले पशुओं की पूजा की जाती है।
गोवर्धन जी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं। नाभि के स्थान पर एक मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। इस दीपक में दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिए जाते हैं और बाद में प्रसाद के रूप में बांट दिए जाते हैं।
पूजा के बाद गोवर्धन जी की सात परिक्रमाएं लगाते हुए उनकी जय बोली जाती है। परिक्रमा के वक्त हाथ में लोटे से जल गिराते हुए और जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी की जाती है।
गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और इस दिन उनकी पूजा घर में करने से धन, संतान और गौ रस की वृद्धि होती है।
गोवर्धन पूजा के दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी की जाती है। इस मौके पर सभी कारखानों और उद्योगों में मशीनों की पूजा होती है।
गोवर्धन पूजा पर होने वाले उत्सव -
गोवर्धन पूजा प्रकृति और भगवान श्री कृष्ण को समर्पित त्यौहार है। गोवर्धन पूजा के मौके पर देशभर के मंदिरों में धार्मिक आयोजन और अन्नकूट यानि भंडारे होते हैं। पूजन के बाद लोगों में भोजन प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। गोवर्धन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाने का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि परिक्रमा करने से भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
गोवर्धन पूजा से जुड़ी कथा -
पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि देवराज इंद्र को जब अपनी शक्तियों पर घमंड हो गया था तो उन्हें सबक सिखाने के लिये भगवान कृष्ण ने लीला रची थी। विष्णु पुराण के अनुसार एक समय गोकुलवासी अपने घरों में तरह-तरह के पकवान बना रहे थे। भगवान कृष्ण के घर में भी इस दौरान पकवान बन रहे थे तो बाल कृष्ण ने जिज्ञासावश माता से पूछा कि हम इतने सारे पकवान क्यों बना रहे हैं तो माता ने जवाब दिया कि देवराज इंद्र की पूजा करने के लिये। माता की यह बात सुनकर बाल कृष्ण ने फिर से सवाल किया कि हम इंद्र की पूजा करते हैं तो माता यशोदा ने जवाब दिया कि इंद्र देव की कृपा से ही धरती पर बारिश होती है और उस बारिश से ही अन्न पैदा होता है, हमारे पशुओं को चारा मिलता है। माता की बात को सुनने के बाद कृष्ण भगवान ने कहा कि, फिर तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिये क्योंकि हमारी गायें वहीं चरती हैं। कृष्ण की बात सुनने के बाद गोकुल के लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इंद्र देव को यह अपना अपमान लगा और लोगों को सबक सिखाने के लिये उन्होंने मुसलाधार बारिश शुरु कर दी। यह बारिश इतनी प्रलयकारी थी कि लोगों के घर तक इससे उजड़ गये। गोकुल के लोगों की रक्षा करने के लिये भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी अंगुली पर उठा लिया जिसके तले गोकुल के सारे लोग बारिश से बचने के लिये आ गये। यह देखकर इंद्र को और क्रोध आया और उन्होंने बारिश और तेज कर दी। माना जाता है कि यह बारिश लगातार सात दिनों तक चली और फिर इंद्र देव को अहसास हुआ कि जिस से वो लड़ रहे हैं वो कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। जब इंद्र देव को पता चला कि वह भगवान कृष्ण से मुकाबला कर रहे थे तो उन्होंने कृष्ण भगवान से माफी मांगी। ऐसा माना जाता है कि तब से ही गोवर्धन पूजा शुरु हुई थी। गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश स्थित है और गोवर्धन पूजा के दिन इस पर्वत की परिक्रमा करना अति शुभ माना जाता है। आज भी लोग घर में सुख शांति के लिये गोवर्धन पूजा के दिन व्रत रखते हैं और भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं।