गंगा दशहरा 2024: तिथि, कथा, पूजन विधि और धार्मिक महत्व | Future Point

गंगा दशहरा 2024: तिथि, कथा, पूजन विधि और धार्मिक महत्व

By: Acharya Rekha Kalpdev | 24-May-2024
Views : 3007गंगा दशहरा 2024: तिथि, कथा, पूजन विधि और धार्मिक महत्व

गंगा दशहरा 2024: भारत की सनातन संस्कृति में नदियों को माता का स्थान दिया गया है. सभी नदियों में गंगा नदी में स्नान और दान धर्म के कार्य करने सबसे अधिक शुभ और पुण्यकारी माने गए है. गंगा नदी केवल नदी नहीं है, भारत की संस्कृति की आत्मा है, उसका मूल है. उनका जन्म भगवान् श्री विष्णु जी के श्री चरणों से हुआ है और धरती पर अवतरित करने के लिए भगवान् शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में स्थान दिया. भगवान् श्री शिव के जटाओं से होते हुए देवी गंगा इस धरा पर अवतरित हुई, और इस संसार को जल और भोजन से तृप्त किया. जिस दिन देवी गंगा इस धरती पर अवतरित हुई वह दिन गंगा दशहरा का दिन था. वह दिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि का दिन था. इस दिन देवी गंगा का अवतरण इस धरती पर हुआ था. गंगा नदी की एक एक बूँद पवित्र और जीवनदायिनी है. गंगा नदी हमारे पवित्र ग्रंथों, शास्त्रों और देवी देवताओं के समान ही पूजनीय और दर्शनीय है.

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गंगा नदी हमारे लिए मां का स्थान रखती है. इसलिए देवी गंगा को वही मां और वही स्थान दिया जाता है जो अपनी माता को दिया जाता है. गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्नान करने से बड़े से बड़े पापों का क्षय होता है. गंगा मां शारीरिक, मानसिक और आत्मिक पापों का शमन करती है. हिमालय से निकल कर गंगा बंगाल की खाड़ी सागर में गिरती है. इस मध्य वो जिस-जिस जगह से गुजरती है, वहां-वहाँ के लोगों का उद्धार करती है. गंगा को धरती पर लाने का कार्य राजा दशरथ ने किया था.

राजा दशरथ ने अपने पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए अनेक वर्षों तक कठोर तपस्या की थी. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा नदी को धरती पर आना पड़ा था. गंगा दशहरा के पुण्य पावन पर्व पर गंगा में डूबकी लगना और स्नान, पितृ कार्य करना अति शुभ माना जाता है. जो व्यक्ति गंगा दशहरा के पुण्य अवसर पर गंगा जी में स्नान करता है उसके अतृप्त पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है. गंगा नदी में स्नान कर साधक अपना कल्याण तो करता ही है साथ ही वह अपने पूर्वजों को भी तृप्त करता है.

साल 2024 में गंगा दशहरा 16 जून, रविवार के दिन का रहेगा. इस दिन दशमी तिथि 15 तारीख को 26:33 पर शुरू हो रही हैं और 16 तारीख 28:44 समय पर इसका समापन हो रहा है. दशमी तिथि उदय व्यापिनी तिथि होने के कारण गंगा दशहरा का पवित्र स्नान 16 तारीख को ब्रह्म काल में 04:03 बजे से लेकर 04:43 के मध्य का रहेगा. इसके पश्चात प्रात: काल सूर्योदय के समय भी स्नान करना अति शुभ रहेगा. दोपहर के समय अभिजीत मुहूर्त में स्नान आदि कार्य किये जा सकते है. इस दिन अभिजीत मुहूर्त 11:48 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 36 मिनट के मध्य का रहेगा. इस अवधि में गंगा स्नान कर पुण्य प्राप्ति की जा सकती है.

माता गंगा न केवल पाप का शमन करती है अपितु यह साधक की आध्यात्मिक उन्नति भी करती है. इस दिन सारा दिन दान धर्म के कार्य श्रद्धा पूर्वक किये जाते है. भजन कीर्तन और भंडारे का आयोजन किया जाता है. गंगा जी के सभी प्रमुख तटों पर इस दिन विशेष आरती और गंगा पूजन का आयोजन किया जाता है. जरूरतमंदों को इस दिन वस्त्र, छाता, और भोजन का दान किया जाता है. गंगा दशहरा के दिव्य पर्व पर गंगा जी को धूप, दीप और फूल अर्पित किये जाते है. माता गंगा को भोग लगाया जाता है. गंगा जी के तट पर श्री मद भागवत कथा और गीता के पाठ का आयोजन भी किया जाता है.

गंगा दशहरा पौराणिक कथा

गंगा दशहरा से जुडी कथा के अनुसार राजा दशरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए कई वर्षों की तपस्या की थी. उनकी साधना से प्रसन्न होकर देवी गंगा ने धरती पर आना स्वीकार कर लिया था. देवी गंगा धरती पर आने के लिए मान तो गई, परन्तु उनका वेग बहुत अधिक था. उनके वेग को संभालना धरती के लिए संभव नहीं था. इसके लिए भगवान् शिव की सहायता ली गई. भगवान् शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया और जटाओं के मार्ग से धरती पर उतारा. इस प्रकार माता गंगा आसानी से धरती पर आ गई. 10 जन्मों के पापों का शमन गंगा जी करती है. ऐसा माना जाता है की जो व्यक्ति गंगा दशहरा के दिन गंगा जी में स्नान करता है, उसके पूर्व के सात पूर्वजों की आत्मा तृप्त होती है और मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होती है. माता गंगा मोक्ष प्रदान करने वाली है. गंगा जी की बहती लहरों का दर्शन करने से अद्भुत आत्मिक शांति का अनुभव होता है.

गंगा दशहरा से जुडी अन्य पौराणिक कथा

कथा के अनुसार के बार राजा सगर ने अपने राज्य में अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया. इंद्र देव को यह अच्छा नहीं लगा और उन्होंने यज्ञ के अश्व को पकड़ कर छुपा दिया. यज्ञ का घोडा लापता होने की खबर मिलने पर राजा के 60 हजार पुत्र यज्ञ के घोड़े की तलाश में निकले. सभी लोकों में घोडा तलाशने पर कपिल मुनि के आश्रम में घोडा बंधा हुआ मिला. देव राज इंद्र ने घोडा चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया था. राजा सगर के पुत्रों को लगा की मुनि कपिल ने उनके पिता के यज्ञ का घोडा चुराया है. आश्रम में घोड़े को बंधा पाकर उन्होंने चोर चोर बोलना शुरू किया, मुनि कपिल समाधी में थे, आपसास शोर सुनकर उनकी समाधी भंग हुई. अपनी साधना के मध्य में ही भंग होने से मुनि कपिल रुष्ट हुए, और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोलकर राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को भष्म कर दिया. ऐसे में राजा सगर के सभी पुत्र भष्म हो गए और उनका अश्वमेघ यज्ञ भी अधूरा रह गया.

इसी से जुडी एक अन्य कथा के अनुसार ऋषि अगस्त ने सारा जल शोख लिया. धरती पर जल के लिए त्राहिमाम होने लगा. जीव जंतु सब मरने लगे.ऐसे में राजा सगर ने अपने पुत्रों को फिर से जीवित करने और पृथ्वी पर जल लाने के लिए साधना की. उसके बाद उन्हीं के वंश के राजा भागीरथ ने भी ब्रह्मा जी की साधना की. उनकी साधना से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा नदी को पृथ्वी पर भेज दिया.

गंगा दशहरा पर्व और गंगा जी का धार्मिक महत्त्व

गंगा नदी के जल की शुद्धता को वैज्ञानिक रूप से स्वीकार किया गया है. गंगा जल से नियमित रूप से स्नान करने पर त्वचा रोगों का निवारण होता है. गंगा जल का सेवन स्वास्थ्य प्रदान करता है. गंगा जल को कितने भी वर्षों तक रखा जाए, वह कभी अशुभ नहीं होता है. जिन लोगों के लिए गंगा घाट पर जाकर स्नान करना संभव नहीं है. वो सभी प्रात: काल में स्नान के जल में गंगा जल डालकर स्नान कर गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त कर सकते है. गंगा दशहरा पर व्रत, उपवास कर दान पुण्य कार्य किये जाते है. देवी गंगा को भगवान् शिव की अर्धांग्नी का स्थान प्राप्त है. गंगा जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन भगवान् शिव की आराधना पूजा भी की जाती है. विशेष रूप से शिवलिंग पर जलाभिषेक भी किया जाता है.

गंगा दशहरा पर गंगा जी पूजन विधि

गंगा दशहरा एक दिन ब्रह्म मुहूर्त समय में उठे. नित्य क्रियाओं से निवृत होने के बाद गंगा घाट पर जाकर गंगा स्नान करें. स्नान करते हुए भगवान् सूर्य को जल अर्पित करें. अपने सभी पितरों को याद करते हुए, 10 डूबकी लगाएं. गंगा जी का श्रद्धा-विश्वास से पूजन करें. इस दिन गंगा जी के पूजन में दस-दस वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है. 10 दीपक जलाकर, 10 फूल, 10 जगह धूप रखी जाती है. साथ में पान के दस पत्ते रखे जाते है. पूजा में फल भी दस रखे जाते है और 10 प्रकार के भोग देवी गंगा को अर्पित किये जाते है.

इस दिन गंगा जी में खड़े होकर, देवी गंगा के मंत्र और स्तोत्र का पाठ किया जाता है. अपने सामर्थ्य के अनुसार दान देने का विधि विधान है. दान में वस्तुएं भी दस के अंक में ही दी जाती है. गंगा दशहरा पर्व पर पान के पत्तों पर अक्षत रखकर गंगा में प्रवाहित किया जाता है. इस प्रकार इस दिन गंगा जी की पूजा करने से दस जन्मों के पापों का शमन होता है.