गंगा दशहरा विशेष – महत्व, कथा एवं पूजन विधि
By: Future Point | 06-Jun-2019
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गंगा दशहरा प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दसमी तिथि को मनाया जाता है, इस दिन यह मान्यता है कि धरती पर हस्त नक्षत्र में अवतरण हुआ था, इस दिन भगवान् शिव जी का जलाभिषेक किया जाता है और भारी संख्या में श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाते हैं, इस दिन दान व स्नान का विशेष महत्व होता है, गंगा दशहरा पर दान के साथ- साथ उपवास भी किया जाता है, इस वर्ष 2019 में गंगा दशहरा का पर्व 12 जून को मनाया जायेगा ।
गंगा दशहरा का महत्व –
गंगा दशहरा का पर्व कई मायनों में ख़ास होता है, हिन्दू धर्म शास्त्र के मुताबिक जब गंगा माता धरती पर आयीं तो भागीरथी की तपस्या खत्म हुई इस दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दसमी तिथि थी, इस दिन दसमी और गंगा माता के प्रकट होने की वजह से इस पर्व का नाम गंगा दशहरा पड़ा, इस पर्व पर श्रद्धालु माँ गंगा जी की पूजा करते हैं और इस दौरान भक्त गंगा पाठ भी करते हैं, इस दिन माँ गंगा की कृपा पाने के लिए भक्तो को किसी पवित्र नदी में खड़े होकर गंगा आरती और गंगा मन्त्र का जप करना चाहिए, गंगा दशहरे के दिन श्रद्धालु जन जिस भी वस्तु का दान करें उनकी संख्या दस होनी चाहिए और जिस वस्तु से भी पूजन करें उनकी संख्या भी दस ही होनी चाहिए.
ऎसा करने से शुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है. ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के दस प्रकार के पापों का नाश होता है. इन दस पापों में तीन पाप कायिक, चार पाप वाचिक और तीन पाप मानसिक होते हैं. इन सभी से व्यक्ति को मुक्ति मिलती है.
गंगा जी की कथा -
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा सगर के साठ हजार पुत्र थे. एक बार सगर महाराज ने अश्वमेघ यज्ञ करने की सोची और अश्वमेघ यज्ञ के घोडे. को छोड़ दिया. राजा इन्द्र यह यज्ञ असफल करना चाहते थे और उन्होंने अश्वमेघ का घोड़ा महर्षि कपिल के आश्रम में छिपा दिया. राजा सगर के साठ हजार पुत्र इस घोड़े को ढूंढते हुए आश्रम में पहुंचे और घोड़े को देखते ही चोर-चोर चिल्लाने लगे. इससे महर्षि कपिल की तपस्या भंग हो गई और जैसे ही उन्होंने अपने नेत्र खोले राजा सगर के साठ हजार पुत्रों में से एक भी जीवित नहीं बचा.
सभी जलकर भस्म हो गये. राजा सगर, उनके बाद अंशुमान और फिर महाराज दिलीप तीनों ने मृतात्माओं की मुक्ति के लिए घोर तपस्या की ताकि वह गंगा को धरती पर ला सकें किन्तु सफल नहीं हो पाए और अपने प्राण त्याग दिए. गंगा को इसलिए लाना पड़ रहा था क्योंकि पृथ्वी का सारा जल अगस्त्य ऋषि पी गये थे और पुर्वजों की शांति तथा तर्पण के लिए कोई नदी नहीं बची थी.
महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए उन्होंने गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की और एक दिन ब्रह्मा जी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और भगीरथ को वर मांगने के लिए कहा तब भगीरथ ने गंगा जी को अपने साथ धरती पर ले जाने की बात कही जिससे वह अपने साठ हजार पूर्वजों की मुक्ति कर सकें. ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं गंगा को तुम्हारे साथ भेज तो दूंगा लेकिन उसके अति तीव्र वेग को सहन करेगा? इसके लिए तुम्हें भगवान शिव की शरण लेनी चाहिए वही तुम्हारी मदद करेगें.
अब भगीरथ भगवान शिव की तपस्या एक टांग पर खड़े होकर करते हैं. भगवान शिव भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगाजी को अपनी जटाओं में रोकने को तैयार हो जाते हैं. गंगा को अपनी जटाओं में रोककर एक जटा को पृथ्वी की ओर छोड. देते हैं. इस प्रकार से गंगा के पानी से भगीरथ अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने में सफल होता है.
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गंगा दशहरा की पूजा विधि -
- गंगा दशहरा के दिन पवित्र नदी गंगा जी में स्नान किया जाता है।
- यदि कोई मनुष्य वहाँ तक जाने में असमर्थ है तब अपने घर के पास किसी नदी या तालाब में गंगा मैया का ध्यान करते हुए स्नान कर सकता है।
- गंगा जी का ध्यान करते हुए षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए. गंगा जी का पूजन करते हुए निम्न मंत्र पढ़ना चाहिए.
- “ऊँ नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:”
- इस मंत्र के बाद “ऊँ नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा” मंत्र का पाँच पुष्प अर्पित करते हुए गंगा को धरती पर लाने के लिए भगीरथी का नाम मंत्र से पूजन करना चाहिए।
- इसके साथ ही गंगा के उत्पत्ति स्थल को भी स्मरण करना चाहिए।
- गंगा जी की पूजा में सभी वस्तुएँ दस प्रकार की होनी चाहिए, जैसे कि दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल होने चाहिए.
- यदि कोई व्यक्ति पूजन के बाद दान करना चाहता है तब वह भी दस प्रकार की वस्तुओं का करता है तो अच्छा होता है लेकिन जौ और तिल का दान सोलह मुठ्ठी का होना चाहिए. दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए।
- जब गंगा नदी में स्नान करें तब दस बार डुबकी लगानी चाहिए.