चैत्र नवरात्रि की प्रथम देवी - शैलपुत्री देवी का रहस्य
By: Acharya Rekha Kalpdev | 16-Mar-2024
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नवरात्रि अपने नाम के अनुरूप शक्ति पूजन की नौ रात्रियाँ है। नवरात्रि वर्ष में दो बार आते है, प्रथम नवरात्र चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होते है और चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को समाप्त होते है। दूसरी बार नवरात्र आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर नवमी तिथि तक रहते है। आश्विन मास के नवरात्री को शारदीय नवरात्र के नाम से भी जाना जाता है। चैत्र नवरात्र सनातन हिन्दू धर्म के लिए विशेष महत्व रखते है। चैत्र शुक्ल पक्ष से सनातन धर्म का नववर्ष शुरू होता है। साथ ही इन नवरात्र का समापन राम नवमी तिथि के दिन होता है। राम नवमी सनातन धर्म के परम आराध्य भगवान् श्री राम जी की जयंती होने के कारण अति शुभ दिवस होता है। इस वर्ष 2024 में चैत्र नवरात्र का प्रारम्भ 9 अप्रैल मंगलवार के दिन से हो रहा है। 9 अप्रैल, मंगलवार के दिन देवी शैलपुत्री की आराधना की जायेगी। इस प्रकार 9 अप्रैल, मंगलवार का दिन देवी शैलपुत्री को समर्पित दिन रहेगा।
नवरात्र मुख्य रूप से शक्ति के नौ रूपों का दर्शन पूजन का पर्व होता है। नवरात्रि में महालक्ष्मी, सरस्वती जी और काली देवी के तीन रूपों का पूजन किया जाता है। नवरात्रि में पूजित देवियों के नाम - देवी शैलपुत्री, देवी ब्रह्मचारिणी, देवी चंद्रघंटा, देवी कूष्माण्डा, देवी स्कंदमाता, देवी कात्यायनी, देवी कालरात्रि, देवी महागौरी, देवी सिद्धिदात्री। नवरात्रि देवी पार्वती के ही नौ रूप है। शक्ति और स्त्रीत्व के नौ दिन है।
नवरात्रि में मां भगवती के नौ रूप
देवी शैलपुत्री का माहात्म्य
नवरात्रि के प्रथम दिवस की देवी, देवी शैलपुत्री है। देवी शैलपुत्री हिमालय के राजा हेमावती की पुत्री पार्वती देवी को भगवान् शिव की अर्धांगनी के रूप में पूजा जाता है। देवी पार्वती का वाहन वृषभ है, इसलिए उन्हें वृषारूढ़ा कहा जाता है। देवी शैलपुत्री महाकाली का अवतार है। देवी शैलपुत्री का रंग लाल है। लाल रंग ऊर्जा और जोश का रंग है।
शैलपुत्री देवी हिमालय राज की पुत्री और भगवान् शिव की पत्नी एक रूप में पूजी जाती है। नवरात्रि आदि शक्ति के नौ रूपों का दर्शन-पूजन किया जाता है। नवरात्री आदिशक्ति की आराधना के नौ दिन है। पहले नवरात्र में शक्ति स्वरूपणी माता आदि शक्ति के शैलपुत्री रूप में पूजा की जाती है। नवरात्र का पहला दिन माता शैलपुत्री का दिन होता है। इस पूरे दिन और पूरी रात्रि देवी शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। हिमालय राज की पुत्री होने के कारण देवी का नाम शैलपुत्री पड़ा। देवी शैलपुत्री ने ही पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की पुत्री सती के रूप में जन्म लिया था। पिता दक्ष के द्वारा अपने पति भगवान् शिव का अपमान होने पर सती ने अपने पिता के हवन यज्ञ में कूद कर जान दे दी थी।
उसी देवी सती ने अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया और पार्वती कहलाई। इस जन्म में देवी शैलपुत्री, पार्वती ने हिमालय राज के घर जन्म लिया। देवी शैलपुत्री का नाम शैलपुत्री इसलिए पड़ा क्योंकि देवी शैलपुत्री हमालय राज की बेटी है, दूसरे उन्होंने पर्वतों पर भगवान् शिव के लिए साधना की। आज भी देवी के सभी प्रमुख मंदिर पहाड़ों पर स्थित है। नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री का आशीर्वाद पाने के लिए चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को देवी के लिए व्रत, अनुष्ठान, मंत्र जाप और दर्शन पूजन किया जाता है। नवरात्रि की नौ रात्रियों को देवी कृपा प्राप्ति के लिए भजन, कीर्तन और मन्त्र सिद्धि के साथ जागरण करने का विधि विधान है।
देवी शैलपुत्री के इस स्वरूप में देवी के सीधे हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है। नौ देवियों में देवी शैलपुत्री पहली देवी है। नवरात्री का प्रारम्भ देवी शैलपुत्री की पूजा से ही होता है। देवी शैलपुत्री का देवी पार्वती के रूप में भी दर्शन पूजन किया जाता है। देवी शैलपुत्री का वाहन वृषभ है। इसलिए इनका एक नाम वृषभारूढ भी है। देवी को चमेली का फूल अर्पित किया जाता है।
देवी शैलपुत्री
देवी शैलपुत्री माता दुर्गा का पहला रूप है। पहले के जन्म में देवी का जन्म ब्रह्मा जी के पुत्र राजा दक्ष और देवी मैना देवी के यहाँ हुआ था। शैल शब्द पर्वत का ही एक रूप है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन इनका नाम पार्वती पड़ा। नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना और कलश स्थापना करने के साथ ही नवरात्र देवी पूजन कर्म विधि विधान से शुरू होते है।
देवी शैलपुत्री का मंत्र - नवरात्रि के पहले दिन निम्न मंत्र का एक माला जाप करें, और देवी का स्मरण करें, इस प्रकार मंत्र जाप करने से देवी शैलपुत्री प्रसन्न होती है और भक्त के कार्य पूर्ण करती है।
देवी शैलपुत्री मन्त्र - ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
देवी शैलपुत्री स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
देवी शैलपुत्री की प्रार्थना
वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
अर्थ - हे मां मैं मनोवांछित लाभ के लिए अर्धचंद्र को मस्तक पर धारण वाली, वृष की सवारी करने वाली, शूलधारणिनी और यश देने वाली मां शैलपुत्री का वंदन करती हूँ।
देवी शैलपुत्री को नवरात्र के दिन क्या क्या अर्पित करें?
देवी शैलपुत्री प्रथम दिवस नवरात्र की देवी है, देवी शैलपुत्री को घी अर्पित किया जाता है। प्रतिपदा तिथि के दिन देवी के श्री चरणों में घी अर्पित करने से मां प्रसन्न होती है और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस दिन देवी को घी अर्पित करने से साधक के रोग, शोक दूर होते है।
देवी शैलपुत्री स्त्रोत
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिनीं।
मुक्ति भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
देवी शैलपुत्री ध्यान मन्त्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
पूणेन्दु निभाम् गौरी मूलाधार स्थिताम् प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता॥
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्॥
देवी शैलपुत्री स्त्रोत
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागरः तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिनीं।
मुक्ति भुक्ति दायिनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
देवी शैलपुत्री कवच
ॐकारः में शिरः पातु मूलाधार निवासिनी।
हींकारः पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥
श्रींकार पातु वदने लावण्या महेश्वरी।
हुंकार पातु हृदयम् तारिणी शक्ति स्वघृत।
फट्कार पातु सर्वाङ्गे सर्व सिद्धि फलप्रदा॥
देवी शैलपुत्री माँ की आरती
शैलपुत्री माँ बैल असवार। करें देवता जय जय कार॥
शिव-शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने न जानी॥
पार्वती तू उमा कहलावें। जो तुझे सुमिरे सो सुख पावें॥
रिद्धि सिद्धि परवान करें तू। दया करें धनवान करें तू॥
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती जिसने तेरी उतारी॥
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो॥
घी का सुन्दर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के॥
श्रद्धा भाव से मन्त्र जपायें। प्रेम सहित फिर शीश झुकायें॥
जय गिरराज किशोरी अम्बे। शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे॥
मनोकामना पूर्ण कर दो। चमन सदा सुख सम्पत्ति भर दो॥