धूमावती जयंती विशेष- महत्व, कथा एवं पूजा विधि
By: Future Point | 06-Jun-2019
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हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को माँ धूमावती जयंती मनाई जाती है, इस विशेष अवसर पर दस महा विधा का पूजन किया जाता है, धूमावती जयंती पर धूमावती देवी के स्त्रोत पाठ, सामूहिक जप, अनुष्ठान आदि किया जाता है, परम्परा के अनुसार सुहागिन स्त्रियां माँ धूमावती की पूजा नही करती हैं वह केवल दूर से ही माँ धूमावती के दर्शन करती हैं, माँ धूमावती के दर्शन करने से स्त्रियों के पुत्र व पति की रक्षा होती है, इस वर्ष 2019 में धूमावती जयंती 10 जून को मनाई जायेगी ।
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धूमावती जयंती का महत्व -
धूमावती देवी का स्वरुप बड़ा मलिन और भयंकर प्रतीत होता है. धूमावती देवी का स्वरूप विधवा का है तथा कौवा इनका वाहन है, वह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए, खुले केश रुप में होती हैं. देवी का स्वरूप चाहे जितना उग्र क्यों न हो वह संतान के लिए कल्याणकारी ही होता है. मां धूमावती के दर्शन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है. पापियों को दण्डित करने के लिए इनका अवतरण हुआ. नष्ट व संहार करने की सभी क्षमताएं देवी में निहीत हैं. देवी नक्षत्र ज्येष्ठा नक्षत्र है इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है.
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मां धूमावती का स्वरूप -
- मां पार्वती का धूमावती स्वरूप अत्यंत उग्र है।
- मां धूमावती विधवा स्वरूप में पूजी जाती हैं।
- मां धूमावती का वाहन कौवा है।
- श्वेत वस्त्र धारण कर खुले केश रूप में होती हैं।
धूमावती जयंती कथा -
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवी पार्वती जी को बहुत भूख लगने लगती है और वह भगवान शिव जी से कुछ भोजन की मांग करती हैं. उनकी बात सुन कर महादेव जी देवी पार्वती जी से कुछ समय इंतजार करने को कहते हैं ताकि वह भोजन का प्रबंध कर सकें. समय बीतने लगता है परंतु भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती और देवी पार्वती भूख से व्याकुल हो उठती हैं. क्षुधा से अत्यंत आतुर हो पार्वती जी भगवान शिव को ही निगल जाती हैं. महादेव को निगलने पर देवी पार्वती के शरीर से धुआँ निकलने लगता है. तब भगवान शिव माया द्वारा देवी पार्वती से कहते हैं कि देवी , धूम्र से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा एक नाम धूमावती होगा. भगवान कहते हैं तुमने जब मुझे खाया तब विधवा हो गई अत: अब तुम इस वेश में ही पूजी जाओगी. दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है।
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धूमावती जयंती के लिए अनुष्ठान व पूजा विधि -
- इस दिन भक्त सूर्य के निकलने से पहले ही सुबह उठ जाते है और पुरे दिन पूजा के अनुष्ठान से जुड़े कार्यों के लिए तैयार रहते है.
- पूजा के लिए एक नियत स्थान का चुनाव करके उसे सजाया जाता है उसके बाद देवी की पूजा धुप, अगरबत्ती और फूलों के साथ की जाती है.
- इस दिन देवी को काले कपडे में बंधा हुआ तिल समर्पित किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि अगर काले तिल के बीज को देवी को चढाया जाये, तो भक्त की जो भी मनोकामना होती है वह पूरी हो जाती है.
- इस दिन विशेष रूप से प्रसाद को तैयार किया जाता है. पूजा को करते हुए देवी मन्त्रों का उच्चारण किया जाता है, क्योकि मंत्र उच्चारण से देवी खुश होती है और दुखों को समाप्त करके जिन्दगी में खुशियों के लिए आशीर्वाद देती है.
माँ धूमावती के मन्त्र -
- ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्।।
- धूं धूं धूमावती ठ: ठ:।
मां धूमावती का तांत्रोक्त मंत्र -
- धूम्रा मतिव सतिव पूर्णात सा सायुग्मे।
- सौभाग्यदात्री सदैव करुणामयि:।।
- रुद्राक्ष की माला से 108 बार, 21 या 51 माला का इन मंत्रों का जाप करना चाहिए, मां धूमावती की विशेष कृपा पाने के लिए उपरोक्त मंत्रों का जाप करना चाहिए।
- जब मंत्र समाप्त हो जाते है, तब आरती की जाती है और उसके बाद परिवार के सदस्यों और पूजा स्थल पर मौजूद भक्तों में प्रसाद का वितरण किया जाता है.
- धूमावती जयंती के दिन रात में धूम धाम से देवी माता के जुलुस का आयोजन किया जाता है. इस जुलुस में सिर्फ पुरुष ही शामिल हो सकते है.
- वैसे विवाहित व्यक्तियों को धूमावती की पूजा नहीं करने के लिए कहा जाता है, ऐसा इसलिए कहा जाता है कि उनकी पूजा से एकांत की इच्छा जागृत होती है. सांसारिक चीजों से मोह भंग होने लगता है.
- विवाहित महिलाएं इस जुलूस में शामिल नहीं हो सकती है. परम्परा के अनुसार इन्हें विवाहित स्त्रियों को धूमावती की पूजा करना निषेध है. ऐसी मान्यता है कि इस परम्परा को वो अपने पति और बच्चो की सुरक्षा के लिए मानती है या पालन करती है, वो इस पूजा को सिर्फ दूर से देख सकती है.
- भौतिक धन और सुख की प्राप्ति के लिए भक्तगण पूरी भक्ति और मनोयोग से देवी धूमावती की पूजा करते है.
- इस दिन भक्तगण विशेष उल्लास के साथ तैयार रहते है और जुलूस में शामिल हो कर आनंद प्राप्त करते है.