छठ पूजा का महापर्व, इस विधि से करें सूर्यदेव की पूजा, जानें सम्पूर्ण विधि और शुभ मुहूर्त
By: Future Point | 09-Nov-2021
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सनातन धर्म में कई त्यौहार प्रमुख तौर पर मनाए जाते हैं जैसे होली, नवरात्रि, दुर्गा पूजा, दिवाली इत्यादि। इन्हीं में से एक त्यौहार है छठ पूजा। विशेष तौर पर छठ पूजा बिहार में बेहद ही धूमधाम से मनाई जाती है। छठ पर्व, छठ या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। कहा जाता है यह पर्व बिहारीयों का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है। छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं। यहा पर्व बिहार कि वैदिक आर्य संस्कृति की एक छोटी सी झलक दिखाता हैं। ये पर्व मुख्यः रुप से ॠषियो द्वारा लिखी गई ऋग्वेद मे सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार बिहार में यह पर्व मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ को सूर्य देव की बहन का दर्जा दिया गया गया है। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो कोई भी भगवान सूर्य की पूजा करता है, उनका विधि-विधान से व्रत करता है उससे छठ मैया अवश्य प्रसन्न होती हैं और उनके घर परिवार में सुख शांति और धन धान्य का आशीर्वाद देती हैं।
छठ पूजा मुहूर्त -
10 नवंबर (संध्या अर्घ्य) सूर्यास्त का समय : 17 बजकर 30: मिनट
11 नवंबर (उषा अर्घ्य) सूर्योदय का समय : 06 बजकर 40 मिनट
लोक आस्था का पर्व छठ -
भारत में छठ सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है। मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं। छठ व्रत के सम्बन्ध में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं; उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये, तब श्री कृष्ण द्वारा बताये जाने पर द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उनकी मनोकामनाएँ पूरी हुईं तथा पांडवों को उनका राजपाट वापस मिला। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का सम्बन्ध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से छठ पर्व को देखा जाए तो षष्ठी तिथि (छठ) को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है, इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं इस कारण इसके सम्भावित कुप्रभावों से मानव की यथासम्भव रक्षा करने का सामर्थ्य प्राप्त होता है। पर्व पालन से सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा सम्भव है। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिलता है।
सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुँचता है, तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुँच पाता है। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक मास की अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आती है। ज्योतिषीय गणना पर आधारित होने के कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है।
जानिए कैसे हुई देवी छट्ठी की उत्पत्ति -
छठ माता को सूर्यदेव की बहन बताया गया है। हालांकि छठ व्रत कथा के अनुसार छठ देवी ईश्वर की पुत्री देवसेना बताई गई हैं। देव-सेना अपना परिचय देते हुए बताती हैं कि वह प्रकृति की मूल प्रवृत्ति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई है इसी वजह से उन्हें षष्ठी कहा जाता है।
इसके अलावा देवी कहती हैं कि अगर किसी दंपत्ति को संतान प्राप्ति की कामना करनी है तो वह मेरी विधिवत पूजा करें। ऐसा करने से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है। इसलिए यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को किए जाने का विधान बताया गया है। पौराणिक कथाओं में छठ व्रत के बारे में कहा जाता है कि रामायण काल में भगवान श्री राम के अयोध्या आने के बाद माता सीता और भगवान राम ने मिलकर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव की पूजा की थी।
इसके अलावा महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पहले सूर्य की पूजा से पुत्र की प्राप्ति को भी जोड़ कर देखा और बताया गया है। सूर्य देव के अनुष्ठान से उत्पन्न कर्ण जिन्हें अविवाहित कुंती ने जन्म देने के बाद नदी में प्रवाहित कर दिया था। माना जाता है कि वह भी सूर्यदेव के उपासक थे। जल में रहकर कर्ण सूर्यदेव की पूजा करते थे। इसी वजह से सूर्य की असीम कृपा उन पर हमेशा बनी रही। सूर्य देव की कृपा पाने के लिए आज भी लोग कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य पूजा करते हैं।
छठ के त्यौहार की पूजा विधि -
छठ का यह पर्व कुल 4 दिनों तक मनाया जाता है। छठ का पहला दिन नहाए खाए के साथ शुरू होता है। छठ पूजा का त्यौहार बेशक कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाए खाए के साथ की कर दी जाती है। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रती लोग स्नान आदि करके नए कपड़े पहनते हैं और शाकाहारी शुद्ध भोजन करते हैं। एक बार जब व्रती लोग खाना खा लेते हैं उसके बाद ही घर के अन्य सदस्य खाना खा सकते हैं।
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना, कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है और शाम के समय व्रती लोग भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन अन्न और जल ग्रहण किए बिना लोग पूजन उपवास रखते हैं। इसके बाद शाम को चावल और गुड़ से खीर बनाई जाती है। इस दिन नमक और चीनी का इस्तेमाल बिल्कुल वर्जित होता है। इसके अलावा चावल का पिठ्ठा और घी लगी रोटी भी बनाई जाती है और इसे प्रसाद के रूप में अन्य लोगों में वितरित किया जाता है।
षष्ठी के दिन मनाते हैं छठ पूजा। इस दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। छठ पूजा का मुख्य प्रसाद होता है ठेकुआ। कुछ स्थानों पर इसे टिकरी भी कहते हैं। इस दिन कई जगह पर चावल के लड्डू भी बनाए जाते हैं। इसके बाद सभी बनाए गए प्रसाद और फल को एक बांस की टोकरी में सजाए जाते हैं। टोकरी की पूजा की जाती है और सभी व्रती सूर्य को अर्घ देने के लिए किसी तालाब, नदियां, घाट, पर जाते हैं। वहां स्नान करके डूबते हुए सूर्य को आराधना की जाती है और अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही दीपक जलाएँ। फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
इसके बाद छठ पूजा का चौथा दिन यानी सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी अर्घ्य देने की स्नान करने की और सूर्य की पूजा करने की प्रक्रिया को दोबारा दोहराया जाता है। इसके बाद इस दिन विधिवत पूजा करके प्रसाद बांटा जाता है। जिससे छठ पूजा का समापन होता है।