अचानक से भाग्योदय होने के ज्योतिषीय योग - त्रिकोणीय स्थिति भाग्योदय का महत्वपूर्ण पहलू
By: Future Point | 20-Dec-2018
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वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति ग्रह को भाग्य का कारक ग्रह माना गया है और नवम भाव भाग्य का भाव है। भाग्य को प्रबल करने में कुंडली के त्रिकोण भाव जिन्हें लग्न, पंचम और नवम के नाम से जाना जाता है। इन तीनों भावों के मध्य 120 अंश का अंतर होता है। इन तीनों त्रिकोणों का संबंध भाग्य को मजबूत करता है। तथा प्रत्येक नक्षत्र एक ग्रह द्वारा शासित होता है। हम जानते हैं कि ग्रह 9 हैं, और उनमें से प्रत्येक ग्रह 3 नक्षत्रों पर शासन करता है। एक ही ग्रह द्वारा शासित नक्षत्र एक दूसरे से 120 डिग्री या राशि चक्र में एक-दूसरे से त्रिकोण बनाते हैं। उदाहरण के लिए - अश्विनी, मघा और मूला नक्षत्र केतु द्वारा शासित हैं। ये तीनों नक्षत्र अग्नितत्व राशियों के आरम्भ में होते हैं, जो एक-दूसरे से त्रिकोणस्थ होते हैं। जब एक नक्षत्र एक गोचर के ग्रह के साथ सक्रिय होता है तो यह उसी ग्रह द्वारा शासित अन्य दो नक्षत्रों को भी सक्रिय करता है।
- ज्यादातर वैदिक ज्योतिषियों द्वारा माना जाता है कि राहु और केतु दोनों को पंचम और नवम दृष्टि दी गई है। इस प्रकार राहु/केतु दोनों अपनी दृष्टियों से तीनों त्रिकोणों को जोड़ते हैं। यही वजह है कि राहु और केतु निश्चित रूप से जीवन में बड़े बदलाव करने का सामर्थ्य रखते हैं। इनकी स्थिति कई घटनाओं के घटित होने का कारण बनती हैं और भाग्योदय में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं।
- इसलिए बृहस्पति और राहु और केतु तीनों ग्रहों की एक समाज दॄष्टि है जो 1, 5, 9 या 120 डिग्री (त्रिकोण) का निर्माण करती हैं। ये सभी बिंदु एक-दूसरे से त्रिकोण भावों को जोड़ते हुए भाग्योदय के पहलू को मजबूती देते हैं।
- जब भी तीन ग्रह एक-दूसरे से 120 डिग्री होते हैं, तो वे कुंडली के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को एक सुंदर भव्यता के साथ जोड़ते हुए भाग्योदय करते हैं। इसके अतिरिक्त यदि ये तीनों ग्रह इस स्थिति में किसी एक ग्रह के स्वामित्व में आने वाले नक्षत्रों में स्थित हों तो भाग्योदय होने के योगों को बल मिलता है।
आईये अब इन योगों को कुछ कुंडलियों पर लगा कर देखते हैं-
०४/०४/१९९७, दिल्ली, १५:२९ समय, कारोबार शेयर बाजार
इस दिन जातक को शेयर बाजार में बहुत बड़ा धन लाभ हुआ. घटना के समय बृहस्पति ग्रह मकर राशि में 21 डिग्री का था, राहु गोचर में कन्या राशि में 4 डिग्री का था. भाग्नेश मंगल लग्न में. राहु दूसरे भाव अर्थात धन भाव में तथा गुरु छ्ठे भाव में था. गोचर में राहु, गुरु और दशम भाव को देख रहे हैं. तो गुरु भी तीनों अर्थ भावों से संबंध बना रहे हैं. राहू/केतु और गुरु तीनों ग्रह धन भाव को सक्रिय कर एक दूसरे से १२० अंश पर स्थित है. ग्रहों की इस स्थिति ने शेयर बाजार में धन अर्जित करने की स्थिति बनाई.
१६/११/1991, १५:२५, मुम्बई
घट्ना - लाटरी में धन प्राप्ति
घटना के समय बृहस्पति सिंह राशि में १७ डिग्री का था और राहु धनु में 17 डिग्री का था। दशम भाव में राहू की स्थिति, गुरु छ्ठे भाव में और केतु चतुर्थ में था. चतुर्थेश बुध भाग्य भाव में स्थित था. भाग्येश मंगल अष्ट्म भाव में स्थित हो अपनी सप्तम दृष्टि से धन भाव को सक्रिय कर रहा था. गुरु और राहू भी धन भाव को सक्रिय कर रहे थे. इस प्रकार द्वितीय, षष्ठ भाव और दशम भाव तीनों ही आपसे में जुड़कर त्रिकोण भाव बनाते हुए, १२० अंश की दूरी पर थे. ग्रहों की यह स्थिति अचानक से धन लाभ प्राप्ति का कारण बनी.
१३/१२/१९९१, १०: १५ दिल्ली
अचानक से बड़ा धन योग प्राप्त हुआ
इस जातक को इस दिन एक अप्रत्याशित बड़ा धन लाभ हुआ. घटना के दिन गुरु २५ अंश का था, राहू धनु राशि १६ अंश के थे. आय भावेश आय भाव में, चंद्र धन भाव में केतु छ्ठे भाव और गुरु धन भाव को सक्रिय कर रहा था. केतु ने दृष्टि से दशम भाव को अर्थात अर्थ भाव को सक्रिय किया, गुरु ने धन भाव को और गुरु ने तीसरे अर्थ भाव अर्थात छ्ठे भाव को सक्रिय किया. इस प्रकार तीनों अर्थ भाव सक्रिय हुए और जातक को बड़ी मात्रा में धन की प्राप्ति हुई.
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हमारा मानना यह है कि-
मनुष्य की इच्छा से अधिक कुछ भी मजबूत नहीं
प्रारंभ में जब हम ज्योतिष का अध्ययन करना सीखते है तो हम कई बार ऐसा मान लेते है कि सभी घटनाओं की भविष्यवाणी जन्मकुंडली से की जा सकती है। जन्मकुंडली को एक आत्मा के कर्मों का नक्शा कहा जा सकता है। प्रत्येक कुंडली स्वयं में वादे के रुप में कुछ योगों के फलित होने की संभावनाएं लिए होती है। इन संभावनाओं को हम अपने इच्छाशक्ति और पुरुषार्थ से कुछ हद तक बदलने का सामर्थ्य रखते हैं। फिर भी यह निश्चित है कि सभी घटनाएं पूर्वनिर्धारित होती हैं। कुंडली में दिए गए विकल्प हमारे जीवन की नियत घटनाओं का मार्गदर्शन करते है। यही हमारी इस जन्म की आत्मा के विकास और उसके स्थानांतरण में सहयोगी साबित होते हैं।
अधिकांशत: हमारी इच्छा हमारी सोच प्रक्रिया के माध्यम से ही विकसित होती है, हम स्वतंत्र रुप से सोच सकते हैं कि जीवन में हमें कौन से मार्ग चुनने चाहिए, हम क्या सोचते है और अपने लिए जो चुनाव हमने कुंडली में नियत घटनाओं के तहत किए है। वही हमारे जीवन को आगे बढ़ाने का कार्य करते हैं। जीवन की अधिकतर सभी घटनाएं पूर्वनिर्धारित हैं और जिनमें दिए गए विकल्पों के सही चयन द्वारा हम हमारे जीवन को आकार देकर बदल सकते हैं।
एक पौराणिक कथा के संदर्भ के अंतर्गत भी इसका उल्लेख मिलता है कि ज्योतिषी फलादेश में किसी भी तरह से स्वतंत्र इच्छा से हस्तक्षेप न कर पायें, यही सोच भगवान शिव ने समस्त ज्योतिषी वर्ग को श्राप दे दिया था। इसी वजह से एक योग्य ज्योतिषी भी केवल उतना ही फलादेश कर सकता है, जितने की सहमति स्वयं ज्योतिषी और जातक दोनों के ग्रह योग देते हैं। दोनों की स्वयंत्र दशा और ग्रह योग होने के कारण ऐसा होता है। भगवान शिव के फलादेश के फलस्वरुप ही दो ज्योतिषी कभी एक दूसरे के फलादेश से पूर्ण रुप से सहमत नहीं होते हैं। यहां हम इस कहानी को प्रतीकात्मक रुप से समझ सकते हैं और इस कहानी के माध्यम से हम यह समझने का प्रयास कर सकते हैं कि हम सभी के पास स्वतंत्र इच्छा है और ग्रह योग मात्र संकेत देते है, जिन्हें पूरी तरह से पूर्वानुमानित नहीं किया जा सकता हैं।
हमारे पास निश्चित रूप से स्वतंत्र इच्छा है जिसके द्वारा हम ग्रहों की शक्तियों में बदलाव कर सकते हैं। कुछ अन्य विद्वानों ने भी यह भी माना है कि ज्योतिष विद्या उत्तम और सत्य दिखाने वाली विद्या है लेकिन मनुष्य की इच्छा शक्ति से अधिक शक्तिशाली नहीं है। इसका दावा सभी ज्योतिष शास्त्र करते हैं कि हम अपनी इच्छाओं और विचारों के माध्यम से अपने जीवन को बदल सकते हैं। हम में से ज्यादातर लोग इस बात से सहमत होंगे कि अगर सभी कुछ पूर्वनिर्धारित किया गया हैं तो ऐसे में जीवन उद्देश्यहीन हो जाएगा उसका कोई अर्थ ही नहीं रहेगा। इस स्थिति में हम सभी मात्र किसी स्क्रिप्ट की कठपुतली की तरह बिना किसी बदलाव या पसंद के अभिनय किए जा रहे होंगे। हम जीवन में अपने विकल्पों को इन पूर्वनिर्धारित घटनाओं के मानकों के भीतर तय कर सकते हैं, जो हमारे आध्यात्मिक विकास को निर्धारित करते हैं और हमेशा हमारे जीवन के पाठ्यक्रम को बदल सकते हैं।
हम भाग्य और भाग्य के अवसरों के माध्यम से अचानक खुशी या दुर्भाग्य प्राप्त करते हैं। सही विकल्पों का चयन हमें भविष्य में खुशी, आनंद और प्रसन्नता देता हैं तो गलत विकल्पों का चयन जीवन में कठिनाईयां और कष्ट का कारण बनता है। हम विद्यमान अवसरों में से जो भी चुनाव करते हैं, उसी के अनुरुप हमारे भविष्य की परिस्थितियां और कर्म निर्धारित करने का अवसर प्राप्त होते हैं।
जब भाग्यवश हमारे जीवन में अचानक से कुछ घटित होता है जो उसके परिणामस्वरूप खुशी या दुर्भाग्य का जन्म होता है। हमारे कर्म और हमारे स्वतंत्र इच्छा शक्ति के द्वारा भी हमारे भविष्य के कर्मों का निर्धारण होता है।