580 साल बाद सबसे लंबा आंशिक चंद्रग्रहण, ऐसा रहेगा भारत और दुनिया पर असर
By: Future Point | 16-Nov-2021
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चंद्र ग्रहण के वैज्ञानिक महत्व होने के साथ-साथ पौराणिक, धार्मिक एवं ज्योतिषीय महत्व भी हैं। चंद्रग्रहण ज्योतिष के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। चन्द्रग्रहण के समय चाँद का जो स्वरूप होता है।
उसे 'ब्लड मून' कहा जाता है। चन्द्र ग्रहण शुरू होने के बाद ये पहले काले और फिर धीरे-धीरे सुर्ख लाल रंग में तब्दील होता है। आमतौर पर ग्रहण का नाम आते ही लोगों के मन में बहुत से नकारात्मक विचार आने लगते हैं इसलिए ही शायद हम लोक भाषा में ग्रहण लगने को हानि के साथ जोड़कर देखने लगते हैं।
वहीं वैदिक ज्योतिषीय विशेषज्ञों अनुसार भी ग्रहण काल को पृथ्वी के सभी जीव-जंतुओं के लिए नकारात्मक प्रभाव पड़ने वाली अवधि माना गया है जिससे बचने के लिए बहुत से उपाय बताए जाते हैं।
खगोल विज्ञान के अनुसार चंद्र ग्रहण तब पड़ता है जब सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं। इस घटना में पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जाती है। जिसके कारण चंद्रमा की दृश्यता कम हो जाती है।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि यह घटना पूर्णिमा की रात को होती है। चंद्र ग्रहण की इस घटना का ज्योतिष में भी बहुत बड़ा महत्व है। ऐसा माना जाता है कि चंद्र ग्रहण शुरु होने से पहले ही सूतक काल शुरु हो जाता है और इसकी वजह से वातावरण में नकारात्मकता ऊर्जा छा जाती है। चंद्र ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं, आइये जानते हैं-
पूर्ण चंद्र ग्रहण:- पूर्ण चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी पूरी तरह से सूर्य को ढक लेती है और चंद्रमा पर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच पाता।
आंशिक चंद्र ग्रहण:- जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आ जाती है और आंशिक रुप से पृथ्वी चंद्रमा को ढक लेती है तो इस घटना को आंशिक सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
उपच्छाया चंद्र ग्रहण:- उपच्छाया चंद्र ग्रहण में पृथ्वी की छाया वाले क्षेत्र में चंद्रमा आ जाता है और चंद्रमा पर पड़ने वाला सूर्य का प्रकाश कटा हुआ प्रतीत होता है।
चंद्र ग्रहण की घटना का द्वादश राशियों पर भी बहुत गहरा असर पड़ता है। इस लेख में हम चंद्र ग्रहण के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां देंगे। हम आपको बताएंगे कि साल 2021 में चंद्र ग्रहण किस दिन पड़ेगा और इसका समय क्या है। आइये जानते हैं-
साल का दूसरा चंद्र ग्रहण 19 नवंबर 2021
वर्ष का दूसरा चंद्र ग्रहण शुक्रवार, 19 नवंबर 2021 को पड़ेगा, जो एक आंशिक चंद्र ग्रहण होगा। फ्यूचर पंचांग के अनुसार, इस चंद्र ग्रहण का समय दोपहर 11:32 बजे से, रात्रि 17:33 बजे तक होगा। फ्यूचर पंचांग की मानें तो, वर्ष 2021 का ये दूसरा चंद्र ग्रहण विक्रम संवत 2078 में कार्तिक माह की पूर्णिमा को घटित होगा, जिसका प्रभाव वृषभ राशि और कृत्तिका नक्षत्र में सबसे ज़्यादा दिखाई देगा। इसकी दृश्यता भारत, अमेरिका, उत्तरी यूरोप, पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में होगी। लेकिन भारत में यह चंद्रग्रहण उपच्छाया ग्रहण के रूप में दिखाई देगा, इसलिए यहाँ इसका सूतक प्रभावी नहीं होगा।
वैदिक ज्योतिष में चंद्रग्रहण
खगोल विज्ञान में चंद्रमा को ग्रह नहीं माना गया, लेकिन वैदिक ज्योतिष में इसे ग्रह का दर्जा दिया गया है और नवग्रहों में यह एक महत्वपूर्ण ग्रह है। चंद्रमा कर्क राशि का स्वामी है और वृषभ राशि में यह उच्च का तथा वृश्चिक राशि में नीच का होता है। जन्मकुंडली में यह माता का कारक ग्रह माना गया है, क्योंकि इसका स्वभाव में ग्रहणशील है और निशाचर है। पारिवारिक खुशहाली, तेज दिमाग और अच्छे व्यक्तित्व के लिये कुंडली में चंद्रमा का मजबूत होना बहुत आवश्यक है। वहीं अगर कुंडली में चंद्रमा कमजोर है तो इसकी वजह से शारीरिक विकास में कमी आती है और ऐसे इंसान का मन चंचल रहता है। जिन जातकों की कुंडली में चंद्रमा कमजोर है उन्हें मोती रत्न धारण करना चाहिए। यदि आप अपने चंद्रमा को मजबूत कर लें तो आपको लाभकारी परिणामों की प्राप्ति होती है।
चंद्रग्रहण के दौरान बरतें सावधानियां -
ग्रहण के दौरान कोई भी नया काम शुरु न करें।
चंद्रग्रहण के शुरु होने से पहले खाने की सामग्री में तुलसी के पत्ते डालें। और तुलसी के पेड़ को ग्रहण के दौरान न छुएं।
चंद्रग्रहण के दौरान आपको धार्मिक और प्रेरणादायक पुस्तकों को पढ़ना चाहिए, इनको पढ़ने से आपके अंदर से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाएगी। इसके साथ ही मंत्रों के जाप करने से भी ग्रहण के नकारात्मक प्रभावों से बचा जा सकता है।
ग्रहण के दौरान खाना न बनाएं और खाना खाने से भी बचें। खाना बनाना और खाना दोनों को ही ग्रहण के दौरान शुभ नहीं माना जाता है।
ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को तेज धारदार औजारों जैसे चाकू, कैंची और छुरी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, इससे शीशु के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है।
इस समया देवी देवताओं की मूर्ति और तस्वीरों को भी नहीं छूना चाहिए।
ग्रहण के दौरान दांतून करने, बालों पर कंघी लगाने और मलमूत्र का त्याग करने से भी बचना चाहिए।
ग्रहण की समाप्ति के बाद पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए।
ग्रहण समाप्ति के बाद यदि आप जरुरतमंदों को जरुरी चीजें दान करते हैं तो इससे आपको अच्छे फलों की प्राप्ति होती है।
ग्रहण के दौरान “ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्’’ मंत्र का जाप करें।
चंद्रदेव की पूजा करें और ध्यान लगाने की कोशिश करें।
चंद्रग्रहण में करें विशेष उपाय -
सूतक काल की समाप्ति तक ध्यान, भजन, भगवान की आराधना, आदि कार्यों से मन को सकारात्मक बनाएँ रखें।
इस दौरान चंद्र ग्रह से संबंधित मंत्रों और राहु-केतु की शांति हेतु उनके बीज मंत्र का उच्चारण करें।
चंद्रग्रहण के खत्म होने के तुरंत बाद स्नान कर घर में गंगाजल का छिड़काव कर उसका शुद्धिकरण करें।
भगवान की मूर्तियों को भी स्नान कर शुद्ध करें।
ग्रहण के सूतक काल से उसकी समाप्ति तक ब्रह्मचर्य का पालन करें।
यदि आपकी कुंडली में शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या का प्रभाव ग्रहण के दौरान चल रहा हो तो, आपके लिए सूतक काल की समाप्ति तक शनि मंत्र का जाप करना चाहिए।
ग्रहण के दौरान श्री हनुमान चालीसा का पाठ करना शुभ रहेगा।
मांगलिक दोष से पीड़ित जातकों को ग्रहण के दिन सुंदरकांड का पाठ करना उचित रहता है।
चंद्रग्रहण की समाप्ति के बाद आटा, चावल, चीनी, श्वेत वस्त्र, साबुत उड़द की दाल, काला तिल, तेल, काले वस्त्र आदि, किसी ज़रूरतमंद को ज़रूर दान करने चाहिए।
अपने ऊपर से चंद्र ग्रहण का अशुभ फल शून्य करने के लिए सूतक काल के दौरान नवग्रह, गायत्री एवं महामृत्युंजय आदि जैसे शुभ मंत्रों का जाप करें।
सूतक काल के दौरान दुर्गा चालीसा, विष्णु सहस्त्रनाम, श्रीमदभागवत गीता, गजेंद्र मोक्ष आदि का पाठ करना चाहिए।
ग्रहण वाले दिन सूतक काल की समाप्ति तक गर्भवती स्त्रियों का घर के अंदर ही रहना उचित होता है, अन्यथा माना जाता है कि उनके ऊपर ग्रहण के दुष्प्रभावों का सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे उनके होने वाले बच्चे को क्षति पहुँच सकती है।
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