2022 संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत, जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय समय
By: Future Point | 13-Jan-2022
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भविष्य पुराण में कहा गया है कि जब-जब मनुष्य भारी कष्ट में हो, संकटों और मुसीबतों से घिरा महसूस करें, या निकट भविष्य में किसी अनिष्ट की आशंका हो तो उसे संकष्टी चतुर्थी/Sankashti Chaturthi का व्रत करना चाहिए। इससे इस लोक और परलोक दोनों में सुख मिलता है। इस व्रत को करने से व्रती के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मनुष्य वांछित फल पाकर अंत में गणपति को पा जाता है। इसके प्रभाव से विद्यार्थी को विद्या और रोगी को आरोग्यता की प्राप्ति होती है।
संकष्ट चतुर्थी व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इसे लंबोदर संकष्टी के नाम से भी जानते हैं यह व्रत स्त्रियां अपने संतान की दीर्घायु और सफलता के लिये करती है। इस व्रत के प्रभाव से संतान को रिद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है तथा उनके जीवन में आने वाली सभी विघ्न-बाधायें गणेशजी दूर कर देते हैं।
संकष्टी चौथ 2022 तिथि एवं मुहूर्त - Sakat Chauth Vrat 2022 Tithi & Shubh Muhurat
फ्यूचर पंचाग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 21 जनवरी सुबह 08 बजकर 51 मिनट पर है और अगले दिन 22 जनवरी सुबह 09 बजकर 14 मिनट तक है। इस दिन चंद्रमा का दर्शन चतुर्थी तिथि में 21 जनवरी को ही संभव है, इसलिए सकट चतुर्थी का व्रत 21 जनवरी दिन शुक्रवार को रखा जाएगा।
सौभाग्य योग में संकष्टी चतुर्थी -
ज्योतिष अनुसार इस साल संकट चौथ सौभाग्य योग में पड़ रही है। 21 जनवरी दोपहर 03 बजकर 06 मिनट तक सौभाग्य योग रहेगा, और उसके बाद से शोभन योग शुरू हो जाएगा। इन दोनों ही योगों को मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। संकट चौथ के दिन अभिजित मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक रहेगा। इस समय को भी मांगलिक कार्यों के लिए उत्तम माना जाता है।
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि-
इस दिन प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठ जाना चाहिए। व्रत करने वाले लोग सबसे पहले स्नान कर साफ़ और धुले हुए कपड़े पहन लें। इस दिन लाल रंग का वस्त्र धारण करना बेहद शुभ माना जाता है और साथ में यह भी कहा जाता है कि ऐसा करने से व्रत सफल होता है।
इस दिन सबसे पहले गणपति की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लेंना चाहिए। इसके पश्चात् पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल ताम्बे के कलश में पानी, धुप, चन्दन, प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रख लेना चाहिए।
इस दिन स्त्रियां पूरे-पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है और शाम को गणेश पूजन तथा चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात् ही जल ग्रहण करती है। इस दिन संकट हरण गणपति का पूजन होता है। इस दिन विद्या बुद्धि, वारिधि गणेश तथा चंद्रमा की पूजा की जाती है।
इस दिन गणेश जी की प्रिय चीज दूर्वा और मोदक उन्हें अर्पित किए जाते हैं। इस दिन व्रत के साथ सकट चौथ व्रत कथा, गणेश स्तुति, गणेश चालीसा का पाठ किया जाता है। इसके बाद गणेश जी की आरती की जाती है।
शाम के समय चांद के निकलने से पहले आप गणपति की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बाटें। रात को चाँद देखने के बाद व्रत खोला जाता है और इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण होता है।
संकष्टी चौथ चंद्रोदय -
संकष्ट चौथ की रात 09 लग-भग बजे चंद्रमा का उदय होता है। इस दिन जो लोग संकष्ट चौथ का व्रत रखते हैं, उन्हें चंद्रमा के दर्शन के बाद जल अर्पित करके पूजा करनी होती है। उसके बाद ही व्रत पारण करें, चंद्रमा दर्शन और पूजा के बाद ही सकट चौथ का व्रत पूर्ण माना जाता है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा -
एक बार माता पार्वती और भगवान शिव नदी के पास बैठे हुए थे तभी अचानक माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की। लेकिन समस्या की बात यह थी कि वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो खेल में निर्णायक की भूमिका निभाए।
इस समस्या का समाधान निकालते हुए शिव और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाल दी। मिट्टी से बने बालक को दोनों ने यह आदेश दिया कि तुम खेल को अच्छी तरह से देखना और यह फैसला लेना कि कौन जीता और कौन हारा। खेल शुरू हुआ जिसमें माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे कर विजयी हो रही थीं।
खेल चलते रहा लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया। बालक की इस गलती ने माता पार्वती को बहुत क्रोधित कर दिया जिसकी वजह से गुस्से में आकर बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया।
बालक ने अपनी भूल के लिए माता से बहुत क्षमा मांगे और उसे माफ़ कर देने को कहा। बालक के बार-बार निवेदन को देखते हुए माता ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो सकता लेकिन वह एक उपाय बता सकती हैं जिससे वह श्राप से मुक्ति पा सकेगा।
माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन पूजा करने इस जगह पर कुछ कन्याएं आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को सच्चे मन से करना।
बालक ने व्रत की विधि को जान कर पूरी श्रद्धापूर्वक और विधि अनुसार उसे किया। उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी। बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा को ज़ाहिर किया।
गणेश ने उस बालक की मांग को पूरा कर दिया और उसे शिवलोक पंहुचा दिया, लेकिन जब वह पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले। माता पार्वती भगवान शिव से नाराज़ होकर कैलाश छोड़कर चली गयी होती हैं।
जब शिव ने उस बच्चे को पूछा की तुम यहाँ कैसे आए तो उसने उन्हें बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है। यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न हो कर वापस कैलाश लौट आती हैं। इस कथा के अनुसार संकष्टी के दिन भगवान गणेश का व्रत करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है।
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