गुरु गोचर - 2019
बृहस्पति को न्याय और समर्पण का प्रतीक माना गया है और ज्योतिष में इसे शुभ प्रभाव देने वाले ग्रह के रूप में जाना जाता है। देवताओं के गुरु होने के कारण बृहस्पति को गुरु के नाम से भी जाना जाता है। विभिन्न राशियों में गुरु का गोचर बहुत लाभकारी और महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका धर्म, शिक्षा, संतान आदि पर प्रभाव पड़ता है। ये ग्रह इन क्षत्रों का प्रमुख कारक है। कुंडली में बैठे गुरु का प्रभाव पारिवारिक, प्रेम और प्रोफेशनल लाइफ पर पड़ता है। इसके कारण किसी व्यक्ति का धार्मिक कार्यों में रुझान बढ़ता है।
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बृहस्पति को न्याय और समर्पण का प्रतीक माना गया है और ज्योतिष में इसे शुभ प्रभाव देने वाले ग्रह के रूप में जाना जाता है। देवताओं के गुरु होने के कारण बृहस्पति को गुरु के नाम से भी जाना जाता है। विभिन्न राशियों में गुरु का गोचर बहुत लाभकारी और महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका धर्म, शिक्षा, संतान आदि पर प्रभाव पड़ता है। ये ग्रह इन क्षेत्रों का प्रमुख कारक है। कुंडली में बैठे गुरु का प्रभाव पारिवारिक, प्रेम और प्रोफेशनल लाइफ पर पड़ता है। इसके कारण किसी व्यक्ति का धार्मिक कार्यों में रुझान बढ़ता है। बृहस्पति को सूर्य से 5वां और सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। पीले रंग के इस ग्रह को गैस का दानव भी कहा जाता है। ये ग्रह अपनी शक्ति से किसी भी नकारात्मक स्थिति को बदल सकता है। स्वयं बृहस्पति हमारी पृथ्वी को विनाशकारी हमलों से बचाता है। इसे सबसे प्राचीन ग्रह भी माना जाता है एवं इसे आप बिना किसी यंत्र की मदद से खुली आंखों से देख सकते हैं। अन्य सभी ग्रहों के मुकाबले गुरु पर दिन सबसे छोटा होता है। इन्हें शील एवं धर्म का अवतार माना गया है। सत्व गुणी गुरु ग्रह ज्ञान और शिक्षण का प्रतिनिधित्व करते हैं। गुरु द्वारा ही शरीर में पाचन तंत्र, मेदा और वायु की अवधि को निर्धारित किया जाता है। गुरु को आकाश तत्व का आधिपत्य प्राप्त है। महिलाओं के वैवाहिक जीवन में सब कुछ बृहस्पति ही निर्धारित करता है।
गुरु साल 2019 में 30 मार्च को प्रात: काल 3 बजकर 11 मिनट पर धनु राशि में गोचर करेंगें। ये 22 अप्रैल को शाम 5 बजकर 55 मिनट पर वृश्चिक राशि में वक्री होंगें और फिर 6 बजकर 42 मिनट पर वापिस धनु राशि में प्रवेश करेंगें। इसका असर 12 राशियों पर अलग-अलग पड़ेगा। आइए जानते हैं कि गुरु गोचर 2019 आपकी राशि के लिए कैसा रहेगा।
ज्योतिषशास्त्र में बृहस्पति को विवाह एवं वैवाहिक जीवन का कारक माना गया है। विवाह में आ रही रुकावटें, विवाह में देरी या वैवाहिक जीवन में संकटों का कारण गुरु की खराब स्थिति हो सकती है। अगर कुंडली में बृहस्पति अशुभ स्थान में विराजमान हो तो इसके कारण व्यक्ति के संस्कार कमजोर होते हैं। उसे धन एंव विद्या की प्राप्ति में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इन्हें अपने बड़ों का सहयोग भी नहीं मिल पाता है। गुरु की कमजोर स्थिति पाचन तंत्र को दुर्बल बनाती है और इससे कैंसर एवं लिवर से संबंधित बीमारी होने का खतरा रहता है। कमजोर गुरु संतान पक्ष की ओर से भी कष्ट देता है और समाज में मान-सम्मान में कमी आती है। वहीं दूसरी ओर अगर गुरु मजबूत होकर कुंडली में बैठा हो तो व्यक्ति बलवान और ज्ञानी बनता है। उस पर दैवीय कृपा बरसती है और उसे अपार सम्मान भी मिलता है। यदि गुरु केंद्र में हो और पा ग्रहों से मुक्त हो तो जातक को अपने जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है। कभी-कभी गुरु की शुभ दृष्टि जातक को भोजन प्रिय और अहंकारी भी बना देती है। बृहस्पति ग्रह की कृपा पाने के लिए गुरुवार के दिन उपवास रखना फलदायी रहता है।
बृहस्पति को न्याय और समर्पण का प्रतीक माना गया है और ज्योतिष में इसे शुभ प्रभाव देने वाले ग्रह के रूप में जाना जाता है। देवताओं के गुरु होने के कारण बृहस्पति को गुरु के नाम से भी जाना जाता है। विभिन्न राशियों में गुरु का गोचर बहुत लाभकारी और महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका धर्म, शिक्षा, संतान आदि पर प्रभाव पड़ता है। ये ग्रह इन क्षत्रों का प्रमुख कारक है। कुंडली में बैठे गुरु का प्रभाव पारिवारिक, प्रेम और प्रोफेशनल लाइफ पर पड़ता है। इसके कारण किसी व्यक्ति का धार्मिक कार्यों में रुझान बढ़ता है।