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अथर्ववेद का एक उपवेद है स्थापत्य वेद। यह उपवेद ही हमारे वास्तु शास्त्र का आधार है। वेदों में ज्योतिष से संबंधित कुल 242 श्लोक हैं। ऋग्वेद में 37, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक हैं। ये श्लोक ही ज्योतिष का आधार हैं। स्थापत्य वेद भी अथर्ववेद का ही एक भाग है। वास्तु में मुहूर्त का भी बहुत महत्व है और बिना ज्योतिष के ज्ञान के आप मुहूर्त नहीं निकाल सकते। वास्तु शास्त्र का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार है। यदि आप वेदों पर और भगवान पर विश्वास करते हैं तो कोई कारण नहीं कि वास्तु पर विश्वास न करें। जिस प्रकार हमारा शरीर पंचमहाभूतों से मिल कर बना है, उसी प्रकार किसी भी भवन के निर्माण में पंच महाभूतों का पर्याप्त ध्यान रखा जाए तो भवन में रहने वाले सुख से रहेंगे।
अक्सर यह प्रश्न उठता है कि क्या उपायों से वास्तु दोषों को कम किया जा सकता है ? जिस प्रकार एक अच्छा चिकित्सक असाध्य रोग होने पर ही शल्य चिकित्सा की राय देता है, उसी प्रकार वास्तु में असाध्य दोष होने पर ही तोड़ फोड़ कर उसे सुधारने की सलाह दी जाती है। बिना तोड़ फोड़ किए केवल कुछ वस्तुआंे को इधर-उधर करके, खाने और सोने की सही दिशा का चुनाव करके तथा पूजा पाठ द्वारा भी वास्तु दोषों का निवारण किया जा सकता है। सुख समृद्धि पाने के लिए फेंगशुई, पिरामिड, यंत्र-मंत्र आदि का भी सहारा लिया जा सकता है। इस पुस्तक में वास्तु के संक्षिप्त विवरण के बाद उपायों के विभिन्न तरीकों का वर्णन किया गया है।