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मानव एक सामाजिक प्राणी है जिसमें शारिरिक, आत्मिक एवं मानसिक शक्ति अधिक पायी जाती है, यही शक्ति उसे सभी प्राणियों में उत्तम स्थान दिलाती है। संसार की विचित्रता है कि, मानव का चेहरा एक दूसरे के सदृश न होकर भिन्न-भिन्न आकृति का होता है। आधुनिक काल के अनेक वैज्ञानिकों का मानना है कि, गर्भाधान के समय ग्रहों का प्रभाव सीधे पिण्ड पर पड़ता है, जिस कारण एक दूसरे चेहरे आपस में भिन्नता लेकर पैदा होते हैं, इन्हीं ग्रहों के प्रभाव से भिन्न-भिन्न जातक में, भिन्न मानसिकता, आवेश, ज्ञान, दुर्गुण आदि उत्पन्न होते हैं। अनेक विद्वानों का कहना है कि, मनुष्य अपने चेहरे के अतिरिक्त अन्य अंग प्रत्यंग से भी भिन्नता रखता है। अनेक जातक ऐसे होते हैं, जिनका कद सामान्य होता है, परन्तु चेहरा बड़ा होता है। दूसरी ओर ऐसे भी जातक पाये जाते हैं, जिनकी शरीर बड़ी होने के बाद भी छोटा चेहरा होता है, यह जातक के गुण एवं अवगुण को स्पष्ट करता है।
चेहरा विज्ञान सामुद्रिक शास्त्र का महत्वपूर्ण अंग माना गया है। यह शास्त्र हस्तरेखा शास्त्र के सिद्धान्तों के विवेचन में हमें मदद करता है। भविष्य में आने वाले सुख एवं दुःख की जानकारी हमें कई विधाओं से प्राप्त होती है, जिसमें हस्तरेखा शास्त्र एवं चेहरा विज्ञान भी शामिल है। चेहरे की वनावट एवं आकृति देखकर चरित्र, व्यवहार, योग्यता आदि का ज्ञान उसी प्रकार किया जा सकता है, जिस प्रकार एक कुशल चिकित्सक अपने रोगी के चेहरे को देखकर रोग के बारे में समझ लेता है। यह बात भी समझना आवश्यक है कि, चेहरे की भावदशा प्राकृतिक है अथवा किसी रोग से ग्रसित है। रोग से प्रभावित चेहरा स्थायी स्वभाव का संकेत नहीं है। मुखाकृति अध्ययन के समय सिर का अध्ययन करना भी आवश्यक माना गया है।
हस्तरेखा विज्ञान भारतीय समाज और परिवेश में तो युगों पहले से ही प्रचलित है। माना जाता है कि समुद्र ऋषि ऐसे पहले भारतीय ऋषि थे, जिन्होंने क्रमबद्ध रूप से ज्योतिष विज्ञान की रचना की। अतः ज्योतिष शास्त्र या हस्तरेखा विज्ञान को सामुद्रिक शास्त्र भी कहा गया।