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ज्योतिष के मूलभूत ज्ञान के पश्चात दशा का फलादेश करना अत्यंत आवश्यक एवं महत्वपूर्ण होता है। दशा द्वारा पता चलता है कि जातक कब सुखानुभूति करेगा और कब दुखानुभूति करेगा। इसके लिए सबसे अधिक सटीक फल देने वाली दशा विंशोत्तरी दशा ही मानी गयी है। किसी भी ग्रह की महादशा जीवन में सिर्फ एक बार ही आ सकती है। परंतु प्रत्येक महादशा में नौ ग्रहों की अंतर्दशाएं होती हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में दशाफल का विश्लेषण इस प्रकार किया गया है कि सबसे पहले ग्रहों की महादशाओं का वर्णन किया गया है उसके पश्चात उसकी अंतर्दशाओं का वर्णन किया गया है, फिर ग्रह किस भाव में स्थित है तथा फिर भावाधिपति के आधार पर। इसके पश्चात किसी ग्रह की महादशा में उसकी अंतर्दशा के लिए क्या-क्या नियम हैं उसकी विस्तृत जानकारी दी गई है। अंत में लघु पाराशरी के मूलभूत सिद्धांतों को विस्तार पूर्वक समझाया गया है। साथ ही योगिनी दशा की गणना व उसके फल भी बताये गये हैं। अंत में अष्टोत्तरी दशा का परिचय भी दिया गया है।
शुभाशुभ दशा का ज्ञान होने के पश्चात उसके उपाय के बिना ज्योतिष ज्ञान का लाभ अधूरा है। इसीलिए इसमें ग्रहों के आसान व प्रभावशाली उपायो का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। ज्योतिष सीखने के इच्छुक व्यक्ति इसको पढ़कर अवश्य लाभान्वित हो सकेंगे, ऐसी हमें आशा ही नहीं, अपितु पूर्ण विश्वास है।