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ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष वह विद्या या शास्त्र है जिसके द्वारा आकाश में स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्यादि का आकलन किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति ‘द्युत दीप्तो’ धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।
ज्योतिष आत्म-प्रबंधन के लिए एक उत्कृष्ट माध्यम है। कुंडली में जन्म के समय ग्रहों की स्थिति जीवन में विभिन्न घटनाओं की प्रवृत्ति को दर्शाती है। ज्योतिष कर्म के सिद्धांतों पर आधारित है जो वैज्ञानिक सिद्धांतों के समान ही है। कुंडली में ग्रहों की स्थिति की तुलना थर्मामीटर से की जा सकती है जो केवल बुखार की माप को प्रकट करता है लेकिन बुखार का कारण नहीं बताता है।
जन्म के समय की प्रवृत्तियों को जान कर हम ग्रहों के हानिकारक प्रभाव से बचने के लिए विभिन्न तरीकों से उपचार कर सकते हैं। यह एक मात्र ज्ञान है जो हमें अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने और इस पृथ्वी पर रहने के लिए बेहतर बनाने में मदद करता है।