इस दिन है माघ पूर्णिमा का गंगा स्‍नान, जानें क्‍या है पूजन विधि और पौराणिक कथा | Future Point

इस दिन है माघ पूर्णिमा का गंगा स्‍नान, जानें क्‍या है पूजन विधि और पौराणिक कथा

By: Future Point | 22-Jan-2023
Views : 2279इस दिन है माघ पूर्णिमा का गंगा स्‍नान, जानें क्‍या है पूजन विधि और पौराणिक कथा

हिंदू परंपरा के अनुसार पूर्णिमा एक महत्‍वूपर्ण दिन होता है और इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्‍व होता है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का बहुत महत्‍व होता है और चंद्रमा को मन, शांति, शीतलता, आध्यात्मिकता का प्रतीक है। हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ मास की पूर्णिमा या पूर्णिमा तिथि को माघ पूर्णिमा कहा जाता है। यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन स्नान, दान और जप करना पुण्यदायी होता है। साथ ही इस दिन स्नान करने का भी विशेष महत्व बताया गया है। तीर्थराज प्रयाग में कल्पवास करने के बाद माघ पूर्णिमा को त्रिवेणी स्नान का अंतिम दिन होता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, माघ स्नान करने वाले लोगों को भगवान कृष्‍ण धन, संतान, समृद्धि, भाग्य, सुख और मोक्ष का आशीर्वाद देते हैं।

माघ पूर्णिमा 2023 कब है

हिंदू कैलेंडर 2023 के अनुसार माघ पूर्णिमा 2023 5 फरवरी को पड़ रही है। यह तिथि 4 फरवरी को रात 9 बजकर 29 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 5 फरवरी को रात को 11 बजकर 58 मिनट पर होता है।

माघ पूर्णिमा का महत्‍व

माघ पूर्णिमा की उत्पत्ति माघ नक्षत्र से होती है। मान्यता है कि इस दिन देवता मानव रूप धारण कर पृथ्वी पर आते हैं और दान-पुण्य के साथ प्रयाग में डुबकी लगाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से मनोकामना पूरी होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार इस तिथि पर पुष्य नक्षत्र प्रकट होना प्रतीकात्मक हो जाता है।

माघ मास हिंदू कैलेंडर के महत्वपूर्ण महीनों में से एक है। इस दिन माघी पूर्णिमा व्रत रखते हैं, पवित्र जलमार्गों में स्नान करते हैं, मानवीय संगठनों को दान देते हैं और देवताओं से प्रार्थना करते हैं। इस पूर्णिमा पर गंगा, यमुना, कावेरी और अन्य नदियों में डुबकी लगाने का बहुत महत्‍व है।

माघ पूर्णिमा का धार्मिक महत्‍व

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु इस दिन गंगा नदी में निवास करते हैं। कई अनुयायियों का मानना है कि इस दिन प्रार्थना करने से उनकी मनोकामना पूरी होना लगभग तय है।

बौद्धों का मानना है कि भगवान बुद्ध ने इस दिन अपने आसन्न निधन की सूचना दी थी। बौद्ध धार्मिक अनुष्ठान करते हैं और बुद्ध से प्रार्थना करते हैं।

माघी पूर्णिमा का दिन ज्योतिष शास्त्र में भी महत्वपूर्ण है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और चंद्रमा कर्क राशि में प्रवेश करता है। इसलिए, यह माना जाता है कि माघी पूर्णिमा पर पवित्र स्नान करने से सूर्य और चंद्रमा से जुड़ी सभी कठिनाईयां दूर हो जाती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी माघ मास सहायक होता है। माना जाता है कि यह महीना मानव शरीर को बदलते मौसम के साथ तालमेल बिठाने में मदद करता है। फलस्वरूप माघी पूर्णिमा को स्नान करने से शरीर को बल और शक्ति की प्राप्ति होती है।

इसके अलावा माघ पूर्णिमा गंगा स्नान पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो वह दिन और भी शुभ हो जाता है। दिलचस्प बात यह है कि तमिलनाडु के क्षेत्रों में माघ पूर्णिमा के दिन एक प्रसिद्ध फ्लोट उत्सव आयोजित किया जाता है।

माघ पूर्णिमा का व्रत और पूजन

माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र अग्नि के सामने स्नान, उपवास, जप, दान और पूजा की जाती है। इस दिन पितरों का श्राद्ध करने और गरीबों को दान देने के साथ ही भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

  1. माघ पूर्णिमा की सुबह किसी पवित्र नदी, सरोवर, पास के कुएं या जलाशय में स्नान करें। इसके बाद मंत्र बोलते हुए (ऊं सूर्याय देवाय नम:) भगवान सूर्य को जल अर्पित करें।
  2. व्रत और स्नान का संकल्प लेने के बाद भगवान मधुसूदन की पूजा करें।
  3. मध्यहंत काल में गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उदार दान दें।
  4. दान में तिल और काले तिल दें। माघ पूर्णिमा के महीने में, पवित्र हवन और पूर्वजों के लिए तर्पण करें।

गायत्री मंत्र या "ऊं नमो नारायण" मंत्र का लगातार 108 बार जप करें।

माघ मेला और कल्‍प वास

हर साल तीर्थराज प्रयागराज में माघ मेले का आयोजन किया जाता है जिसे कल्‍पवास भी कहा जाता है। भारत के हर कोने और विदेशों से भी श्रद्धालु इस मेले में आते हैं। सदियों से प्रयाग में कल्‍पवास की रीति चली आ रही है। माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में डुबकी लगाकर कल्‍पवास का समापन होता है। तीर्थराज प्रयाग संगम के तट पर रहने को कल्‍पवास कहते हैं। कल्‍पवास का मतलब है कि संगम के तट पर बैठकर वेदों का ज्ञान लेना। कल्पवास का अर्थ है धैर्य, अहिंसा का दृढ़ संकल्प और भक्ति।

माघ पूर्णिमा की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था। वह अपनी आजीविका के लिए दक्षिणा और दान मांगता था। घोर गरीबी के बावजूद दोनों पति-पत्नी अपनी छोटी सी दुनिया में मस्त थे। केवल एक चीज जिसने ब्राह्मण और उसकी पत्नी दोनों को दुखी किया वह यह थी कि उनके कोई संतान नहीं थी। एक दिन उसकी पत्नी शहर में भीख मांगने गई, लेकिन सभी ने उसे भीख देने से मना कर दिया क्योंकि उसके कोई संतान नहीं थी, जिससे उसका दिल टूट गया और वह बहुत दुखी और उदास हो गई।

उसके दु:ख और संकट को देखकर किसी ने उसे 16 दिनों तक मां काली की पूजा करने को कहा। ब्राह्मण दंपत्ति ने लगातार 16 दिनों तक मां काली की पूजा की। उनकी तपस्या और घोर भक्ति को देखकर देवी काली ने उन्हें आशीर्वाद दिया और ब्राह्मण की पत्नी को वरदान दिया कि वह जल्‍द ही गर्भवती हो जाएगी। लेकिन, ब्राह्मण की पत्नी से कहा कि वह अपनी क्षमता के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा के दिन एक दीपक जलाए।

इस प्रकार वह प्रत्येक पूर्णिमा को दीपों की संख्या में तब तक वृद्धि करती रहे जब तक कि कम से कम 32 दीपक न हो जाएं। ब्राह्मण पूजा के लिए पेड़ से कच्चे आम का फल लाया। उसकी पत्नी ने पूजा की, जिससे वह गर्भवती हो गई। हर पूर्णिमा को वह मां काली के निर्देशानुसार दीप जलाती रहीं। मां काली की कृपा से उनके एक पुत्र पैदा हुआ, जिसका नाम देवदास रखा गया। देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे मामा के घर पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। काशी में मां और भांजे के साथ हादसा हो गया औेर देवदास की धोखे से शादी करवा दी गई।

देवदास शादी नहीं करना चाहता था इसलिए उसने इस शादी को रोकने का अनुरोध किया क्योंकि वह छोटा था लेकिन फिर भी उसे शादी करने के लिए मजबूर किया गया। कुछ समय बाद यमराज काल के रूप में उनके प्राण लेने आए, लेकिन उस दिन ब्राह्मण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था, इसलिए काल देवदास का कुछ नहीं बिगाड़ सका। तभी से कहा जाता है कि माघी पूर्णिमा के दिन व्रत करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

माघ पूर्णिमा पर पितृ दोष से मुक्‍ति कैसे पाएं?

अगर आपकी कुंडली का नवम भाव राहु और केतु के प्रभाव में है, सूर्य और बृहस्पति राहु या केतु के प्रभाव में हैं, सूर्य पहले, दूसरे, चौथे, नौवें, सातवें या दसवें भाव में राहु या शनि के साथ युति में है तो उसे माघ पूर्णिमा पर अपने पूर्वजों का तर्पण करना चाहिए।