रत्न कब शुभ और कब अशुभ
By: Future Point | 04-May-2019
Views : 7507
रत्नों धारण कर हम अपने जीवन की अनेक समस्याओं को दूर कर सकते है। जिस प्रकार मंत्र जाप में शक्ति होती है, ठीक इसी प्रकार रत्न जीवन की दिशा और दशा दोनों को बेहतर कर सकते है। पौराणिक काल में समुद्र मंथन के समय में अमृत के साथ, १४ रत्न और नवनिधियां प्राप्त हुई थी। यही वजह है कि रत्न अपना विशेष महत्व रखते हैं। रत्न न केवल धारक की शोभा तो बढ़ाते है, साथ ही यह ग्रह दोषों को भी दूर करते हैं। प्राचीन काल में नवरत्न केवल राजा-महाराजा ही धारण करते थे। आज यह सभी की पहुंच में है। जन्मपत्री में स्थित ग्रहों की शुभता बढ़ाने और अशुभता को दूर करने के लिए रत्नों का सहारा लिया जाता है।
प्रत्येक ग्रह के लिए एक अंगूली निश्चित है, सूर्य, मंगल और केतु की शुभता प्राप्ति के लिए माणिक्य, मूंगा और लहसुनिया रत्न धारण किया जाता है, इसके लिए अनामिका अंगूली का चयन किया जाता है। चंद्र ग्रह का रत्न मोती है और बुध रत्न के लिए पन्ना रत्न धारण किया जाता है, चंद्र और बुध दोनों के ही रत्नों को सबसे छोटी अंगूली में धारण किया जाता हैं, जिसे कनिष्का अंगूली के नाम से भी जाना जाता है। शुक्र का रत्न हीरा हैं इसे अनामिका अंगूली में ही शनि का रत्न नीलम और राहु का रत्न गोमेद है, इन रत्नों को मध्यमा अंगूली में ही धारण किया जाता है।
किस ग्रह का रत्न धारण करना चाहिए?
लग्नेश, पंचमेश और नवमेश का रत्न सामान्यत: धारण किया जाता है। परन्तु इस नियम का प्रयोग करते समय विशेष सावधानी अवश्य रखनी चाहिए। क्योंकि कई बार ये त्रिक भावों में स्थित हों और त्रिक भावों के स्वामियों से पीड़ित हो तो व्यक्ति को लाभ के स्थान पर हानि का कारण बनते है। निर्बल ग्रह का रत्न पहनने से बचना चाहिए। इससे आत्मविश्वास कम होता है और स्वास्थ्य की भी हानि होती है।
Also Read: Gemstone for Shani Sade Sati
सूर्य और चंद्र यदि केंद्र भावों के स्वामी हो तो व्यक्ति को मोती और माणिक्य धारण करना चाहिए। जो ग्रह मारक भाव का स्वामी हों उस ग्रह का रत्न धारण करने से बचना चाहिए। अकारक ग्रहों का रत्न धारण करना हानि की वजह बनता है। जिन ग्रहों की राशि एक मारक भाव और दूसरी केंद्र में पड़ रही हो ऐसे ग्रहों का रत्न धारण करना, परेशानी देता है। कोई भी रत्न धारण करने से पूर्व इनका अभिमंत्रित होना आवश्यक है। रत्न शुभ समय, शुभ वार और शुभ दिन धारण करना चाहिए। रत्न केवल शुक्ल पक्ष में ही धारण करने चाहिए, अन्यथा अपना पूर्ण फल नहीं देते है।
रत्नों को लेकर समाज में अनेक प्रकार के विरोधाभास देखने में आते है, जैसे यदि विवाह न हो रहा हो पुखराज रत्न धारण करना चाहिए। मांगलिक है तो मूंगा पहनने से लाभ मिलता है, क्रोध अधिक है तो मोती पहनना चाहिए। इस विचारधारा से रत्न पहनना लाभ कम और हानि की वजह अधिक बनता है। इसलिए कोई भी रत्न कभी भी योग्य ज्योतिषी की सलाह लिए बिना धारण नहीं करना चाहिए। जिस प्रकार बिना चिकित्सक की सलाह के द्वा लेना नुकसानदेह हो सकता है ठीक उसी प्रकार बिना कुंड्ली की जांच कराये, रत्न धारण करना भी नुकसानहदेह हो सकता है।
कई बार व्यक्ति अपनी समस्या को ध्यान में रखते हुए रत्न धारण कर लेता है जो बाद में जाकर उसके लिए कष्ट का कारण बनता है। इसलिए रत्नों का पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए, यह आवश्यक है कि अच्छे से जानने समझने के बाद ही रत्न धारण किए जाए। कुंडली का दूसरा और सातवां भाव मारक भाव है, इन दोनों भावों के स्वामियों का रत्न धारण करने से बचना चाहिए। तीसरा भाव भी अशुभ भावों की श्रेणी में आता है, इसी प्रकार 6, 8 और 12वें भाव के स्वामियों का रत्न भी धारण नहीं किया जाता। एकादश भाव वैसे तो लाभ भाव है, फिर भी लाभ पाने के लिए एकादशेश का रत्न धारण नहीं किया जाता है। इस प्रकार बताये गए भावेशों का रत्न लाभ ना देकर हानि की वजह बनता है।
रत्न, यंत्र समेत समस्त ज्योतिषीय समाधान के लिए विजिट करें: फ्यूचर पॉइंट ऑनलाइन शॉपिंग स्टोर
सूर्य और चंद्र दोनों के पास एक एक राशि का स्वामित्व है। जबकि अन्य ग्रहों में मंगल ग्रह के पास मेष और वृश्चिक, बुध के पास मिथुन और कन्या, गुरु के पास धनु और मीन, शुक्र के पास तुला और वृषभ एवं शनि ग्रह के पास मकर और कुम्भ राशि का स्वामित्व है।
रत्न अपना प्रभाव इसलिए भी पूरा नहीं दे पाते हैं क्योंकि रत्नों को धारण करने से पूर्व पूर्ण रुप से जांचा परखा नहीं जाता है। किसी कारणवश कोई व्यक्ति यदि रत्न धारण न कर पाए तो उसे उपरत्न धारण करना चाहिए। कुंड्ली के अनुसार जिस भी रत्न क धारण करना हो, उस रत्न की शुभता जांचने के लिए प्रारम्भ में दो-चार दिन उसे अपने पर्स में रखना चाहिए। अथवा सोते समय इसे अपने सिरहाने भी रखा जा सकता है। इस अवधि विशेष में यदि कुछ अशुभ स्वप्न आये या अशुभ घटनाएं घटित हो तो ऐसे रत्न को धारण करने से बचना चाहिए।
रत्न अनुकूल न होने पर यह भी संभव है कि धारक को नींद ना आए। रत्न हो या उपरत्न हो दोनों मं जिसे भी धारण किया जाए, उसे धारण करने के नियमों का सख्ती से पालन अवश्य करना चाहिए। जिस रत्न का कोई भाग टूटा हुआ हो उस रत्न को कभी धारण नहीं करना चाहिए। रत्न में किसी प्रकार की दरार होना भी शुभ नहीं माना जाता है। ऐसे रत्न को धारण करने से भी बचना चाहिए। किसे अन्य व्यक्ति के द्वारा धारण किया हुआ रत्न भी धारण नहीं करना चाहिए। शुभ फल पाने के लिए रत्न का अभिमंत्रित और उत्तम गुणवत्ता का होना आवश्यक है। अन्यथा रत्न धारण करने से शुभ फलों की अपेक्षा अशुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है।
ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव
कुंडली विशेषज्ञ और प्रश्न शास्त्री
ज्योतिष आचार्या रेखा कल्पदेव पिछले 15 वर्षों से सटीक ज्योतिषीय फलादेश और घटना काल निर्धारण करने में महारत रखती है. कई प्रसिद्ध वेबसाईटस के लिए रेखा ज्योतिष परामर्श कार्य कर चुकी हैं। आचार्या रेखा एक बेहतरीन लेखिका भी हैं। इनके लिखे लेख कई बड़ी वेबसाईट, ई पत्रिकाओं और विश्व की सबसे चर्चित ज्योतिषीय पत्रिका फ्यूचर समाचार में शोधारित लेख एवं भविष्यकथन के कॉलम नियमित रुप से प्रकाशित होते रहते हैं। जीवन की स्थिति, आय, करियर, नौकरी, प्रेम जीवन, वैवाहिक जीवन, व्यापार, विदेशी यात्रा, ऋण और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, धन, बच्चे, शिक्षा, विवाह, कानूनी विवाद, धार्मिक मान्यताओं और सर्जरी सहित जीवन के विभिन्न पहलुओं को फलादेश के माध्यम से हल करने में विशेषज्ञता रखती हैं।