फुलेरा दूज – 8 मार्च, शुक्रवार, 2019
By: Future Point | 28-Feb-2019
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फुलेरा दूज एक प्रसिद्ध उत्सव है। उत्तर भारत में यह पर्व उत्सुकता और उत्साह के साथ भगवान कृष्ण के सम्मान में मनाया जाता है। फुलेरा दूज पर्व फाल्गुण मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। ग्रेगोरियन तिथि के अनुसार यह पर्व फरवरी से मार्च माह के मध्य आता है। फुलेरा शब्द का शाब्दिक अर्थ फूल है। फुलेरा पर्व पर व्यक्ति जीवन को आनंदित करने की इच्छा से फूलों से होली खेलते है। यह माना जाता है कि होली की यह रौनक जीवन के सभी पक्षों को भावविभोर करती है। फुलेरा दूज का उत्सव 'बसंत पंचमी' पर्व और 'होली' उत्सव के साथ समानता रखता है। फुलेरा दूज लोगों में उत्साह लाकर जीवन का अद्वितीय 'दर्शन' का आभास कराती है जिसमें भगवान कृष्ण होली मनाने की तैयारी कर रहे हैं।
फुलेरा दूज पर्व की धूम उत्तर भारतीयों द्वारा विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के मथुरा में श्रीकृष्ण मंदिर और वृंदावन में राधा वल्लभ मंदिर में उत्साह से मनाया जाता है। भक्त कृष्ण मंदिरों में आयोजित विभिन्न धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हैं। इस पर्व के दौरान मंदिरों को खूबसूरती से सजाया जाता है। कुछ मंदिरों में इस दिन भगवान कृष्ण के चेहरे पर थोड़ा सा रंग लगाया जाता है जो होली के स्वागत का प्रतीक है।
फुलेरा दूज को अबूझ मुहूर्तों की श्रेणी में रखा जाता है। इस दिन कोई भी शुभ कार्य शुरु करने से पूर्व मुहूर्त के अन्य नियमों को देखना आवश्यक नहीं है। चूंकि फुलेरा दूज बसंत पंचमी और होली के मध्य आता है, यह दर्शाता है कि भगवान कृष्ण ने रंगों के आगामी त्योहार की तैयारी शुरू कर दी है, जो आमतौर पर भारत के उत्तर में कृष्ण मंदिरों में आयोजित किया जाता है। इसलिए फुलेरा दूज आगे आने वाले रंगों के पर्व की शुरुआत का संकेत देता है। यह पर्व फाल्गुन शुक्ल द्वितीया को सूर्य उदय के समय मनाया जाता है। यदि यह द्वितीया तिथि सायंकाल में पड़ती है तो यह पर्व सूर्योदयकालीन ली जाती है।
इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा सहित कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। फुलेरा दूज के दिन लोग फूलों से खेलते हैं और आशा करते हैं कि होली के जीवंत रंग सभी के जीवन में खुशियाँ लाएँ। भगवान कृष्ण के सभी मंदिरों, विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन और उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में देखा जा सकता है। फुलेरा दूज के दिन इन मंदिरों में विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। होली के उत्सव को खास मनाने के लिए भगवान कृष्ण की मूर्तियों को हल्के रंगों के साथ सजाया भी जाता है।
फुलेरा दूज का त्यौहार भगवान कृष्ण को समर्पित है और मुख्य रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। भक्त पूरी श्रद्धा के साथ भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं और समृद्धि और खुशियों का जीवन जीने के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं। इस दिन लोग अपने घरों में भगवान कृष्ण की मूर्तियों को सुशोभित करते हैं। इस दिन उनके देवता के साथ फूलों से होली खेलने की रस्म होती है।
भगवान कृष्ण के लगभग सभी मंदिरों में, विशेष रूप से ब्रज क्षेत्र में जहां भगवान ने अपने जीवनकाल में सबसे अधिक समय बिताया है, फुलेरा दूज के पवित्र दिन पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। मंदिरों को सुंदर ढंग से सजाया गया है और दूर-दूर से भक्त इस दिन दर्शनों के लिए आते हैं। होली की तैयारी के लिए देवता के कमर में कपड़े में गुलाल भी बांधा जाता है। रात में 'शयन भोग' के बाद रंग हटा दिया जाता है। भगवान कृष्ण का इतना सुंदर भव्य दर्शन सभी के लिए दर्शनीय होता है। विशेष 'भोग' इस दिन तैयार किए जाते है और अन्य विशेष व्यंजन शामिल किए जाते है। भगवान कृष्ण को अर्पित किए जाने के बाद इस 'भोग' को भक्तों में 'प्रसाद' के रूप में वितरित किया जाता है। 'संध्या आरती' और रास रसिया कार्यक्रम आयोजित किए जाते है।
मंदिरों में होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में भगवान कृष्ण के भक्त भी भाग लेते हैं। वे भगवान कृष्ण की स्तुति में भजन व भक्ति गीत गाते हुए दिन बिताते हैं। होली का स्वागत करने के संकेत के रूप में कुछ रंगों को भगवान कृष्ण की मूर्तियों पर भी लगाया जाता है। कार्यक्रम के अंत में, मंदिर के पुजारी मंदिर में इकट्ठे हुए सभी भक्तों पर रंग या 'गुलाल' छिड़कते हैं। ये उत्सव देखने लायक होता है।