परशुराम जी - साहस, वीरता और शौर्य के प्रतीक | Future Point

परशुराम जी - साहस, वीरता और शौर्य के प्रतीक

By: Acharya Rekha Kalpdev | 04-Apr-2024
Views : 522परशुराम जी - साहस, वीरता और शौर्य के प्रतीक

भगवान् राम जी नाम में राम है, और विष्णु जी के छठे अवतार परशुराम जी थे। भगवान् श्रीराम जी भी जिनकी वीरता, शौर्य को नमन करते है, ऐसे थे शस्त्रधारी, शास्त्रों के ज्ञाता श्री परशुराम जी। परशुराम जी की महिमा का वर्णन करना शब्दों में संभव नहीं है। परशुराम जी वेदों के जानकर, नीतियों में निपुण, योग, तंत्र एवं ब्रह्मास्त्र के साथ साथ सभी प्रकार के दिव्य अस्त्रों को चलाने में भी पारंगत और निपुण थे। युद्ध क्षेत्र से जुडी हर विद्या के जानकर परशुराम जी थे। परशुराम वैसे तो विष्णु जी की अवतार थे, पर उन्होंने भगवान् पशुपति नाथ (भगवान् शिव) का तप कर, भगवान शिव से उनका प्रिय शस्त्र फरसा प्राप्त किया।

परशुराम जी भगवान् राम जी और भगवान् श्रीकृष्ण जी को अतिस्नेह करते है। उन्होंने भीष्म पितामह को युद्ध शिक्षा दी, और उन्हें संसार का सबसे श्रेष्ठ शिष्य होने का वरदान भी दिया। ऐसे परशुराम जी का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था। इस तिथि को हम अक्षय तृतीया के नाम से भी जानते है। त्रेता युग की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से ही हुई थी। भगवान् परशुराम जी का जन्म ऋषि जमदग्नि तथा माता रेणुका के यहाँ आज के मध्यप्रदेश, इंदौर जिला, गाँव मानपुर, जानापाव पर्वत पर हुआ था। जन्म का समय प्रदोषकाल था।

परशुराम जी जयंती पूजा मुहूर्त 2024, तिथि

परशुराम जी की जयंती वर्ष 2024 में 10 मई, शुक्रवार की रहेगी। परशुराम जी की जयंती के दिन ही अक्षय तृतीया का शुभ पर्व भी होता है। ऐसे में यह दिन और भी शुभ हो जाता है। परशुराम जी की जयंती के दिन तृतीया तिथि का प्रारम्भ 02:50 प्रात: काल से शुरू हो रही है, और इसका समापन अगले दिन 02:04 प्रात: काल में हो रहा है।

परशुराम जी जयंती 2024 शुभ मुहूर्त - सुबह – 05:17 से लेकर 07:30 के मध्य का समय
अभिजीत मुहूर्त पूजा समय - 12:14 अपराह्न काल (दोपहर) से लेकर 12:58 तक का समय।

परशुराम जी की उपलब्धियां

परशुराम जी की शिक्षा महर्षि विश्वामित्र और महर्षि ऋचीक के सानिध्य में हुई। परशुराम जी को शिक्षा काल में अपने गुरुओं से वैष्णव धनुष, महर्षि कश्यप जी से अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। भगवान् शिव से दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक फरसा प्राप्त हुआ। भगवान शिव के आशीर्वाद से ही उन्हें कृष्ण जी का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं कल्पतरु मन्त्र प्राप्त हुआ। परशुराम जी ने 11छंद युक्त "शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र" रचित किया। कलयुग में कल्कि अवतार के काल में उन्हें गुरु भूमिका में शस्त्रविद्या देने का दायित्व सौंपा गया है। भगवान् परशुराम जी का उल्लेख त्रेता युग, द्वापर युग, भागवत पुराण और कल्कि अवतार के संदर्भ में मिलता है। उन्होंने पशु पक्षियों की भाषा भी आती थी।

परशुराम जी का वास्तविक नाम राम था। फरसा धारण करने और पशुपतिनाथ जी की आराधना करने के बाद उनका नाम परशुराम पड़ा। परशुराम जी ने धर्म की स्थापना के लिए अपनी शस्त्र विद्या का प्रयोग किया। परशुराम जी को भगवा वस्त्र भी भगवान् शिव से ही प्राप्त हुए। परशुराम जी वीर, साहसी, और अन्याय को बिल्कुल स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने अन्याय को समाप्त करने के लिए 21 बार अपने फरसे से अन्यायी राजाओं का वध किया था। परशुराम जी ने अपने साहस से उस समय समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त किया। परशुराम जी अत्याचार और शोषण के विरुद्ध थे। वो संहार और निर्माण दोनों कार्यों को कुशलता से करना जानते थे।

श्री रामचरित मानस में स्वयं बाबा तुलसीदास जी ने कहा है कि -

जो खल दंड करहुं नहिं तोरा, भ्रष्ट होय श्रुति मारग मोरा
भावार्थ- अरे दुष्ट! यदि मैं तुझे दण्ड न दूँ, तो मेरा वेदमार्ग ही भ्रष्ट हो जाए॥

परशुराम जी ने ऋषि मुनियों को अत्याचार से मुक्त करने के लिए बार बार शस्त्र उठाये। त्रेता युग में सीता स्वयंवर के अवसर पर परशुराम जी भगवान् शिव का धनुष टूटने पर क्रोधित अवश्य हुए, परशुराम श्री राम जी और राजा जनक से सत्य से अवगत होने पर उन्होंने गुरु वशिष्ठ, राजा जनक और भगवान् श्रीराम जी का अभिनन्दन भी किया।

इसी प्रकार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का समर्थन करने में उन्होंने जरा देर नहीं लगी, भले ही वो कौरवों की सभा में थे। परशुराम जी ने भगवान् श्रीकृष्ण जी को उनका सुदर्शन चक्र वापस लौटा दिया था। वो भीष्म पितामह और कर्ण जैसे योद्धाओं के गुरु भी रहें। झूठ बोलकर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने शिष्य को उन्होंने समय पर शिक्षा भूल जाने का श्राप भी दिया था। पौराणिक काल के पांच चरित्र ऐसे है जिनका उल्लेख त्रेता युग और दवापर युग दोनों में व् मिलता है वो हैं - हनुमान जी, परशुराम जी, जामवंत जी, रावण के ससुर मयासुर और ऋषि दुर्वासा। 8 देव और महापुरुष ऐसे हैं जो अमर है, चिरंजीवी है, उन्हीं में से हनुमान जी, परशुराम जी का वर्णन रामायण और महाभारत दोनों कालों में मिलता है। शेष 6 को अमरता, और चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त हैं। ये 6 है - महर्षि वेदव्यास, अश्वत्थामा, राजा बलि, विभीषण, कृपाचार्य और ऋषि मार्कंडेय।

परशुराम जी अपने क्रोध, साहस और वीरता के लिए जाने जाते है। उन्होंने अपने एक बाण से गुजरात से समुद्र को केरल तक पीछे धकेल दिया था। इसके अलावा परशुराम जी अपने पिता के आदर्श पुत्र थे, पिता आज्ञा से उन्होंने अपनी माता कि ह्त्या कर दी थी। प्रसंग अनुसार ऋषि जमदग्नि ने अपनी पत्नी रेणुका को यज्ञ हेतु नदी से जल लेने भेजा, नदी पर गन्धर्व राज चित्ररथ अप्सराओं के साथ स्नान कर रहे थे, यह देखने में मग्न रेणुका जी को जल लाने में विलंब हो गया और उनके देर से आने के कारण यज्ञ नहीं हो पाया। इस बार पर ऋषि जमदग्नि ने एक एक कर अपने पांचों पुत्रों से अपनी पत्नी और पुत्रों की माता रेणुका का वध करने का आदेश दिया। अपनी माता से स्नेहवश चार पुत्र रुक्मवान, सुखेण, वसु तथा विश्वानस ने वध करने से मना कर दिया।

अंत में ऋषि ने अपने पांचवें पुत्र परशुराम जी को अपनी माता का वध करने के लिए कहा। परशुराम जी ने पिता आज्ञा से माता का वध कर दिया। इस पर ऋषि जमदग्नि प्रसन्न हुए और अपनी योग शक्ति से परशुराम के द्वारा मांगे गए वरदान से अपने चारों पुत्रों और अपनी पत्नी को जीवित कर दिया।

एक बार भगवान शिव के पुत्र गणेश जी ने को भी एक बार परशुराम जी के क्रोध का सामना करना पड़ा। भगवान् शिव के दर्शनों के लिए आये परशुराम जी को गणेश जी ने रोका, जिस पर परशुराम जी ने क्रोध में आकर गणेश पर फरसे से वार किया, जिसके वार से गणेश जी का एक दांत टूट गया। दांत टूटने पर भगवान् श्री गणेशजी एकदन्त के नाम से जाने गए। परशुराम जी समाज में अन्याय कि क्रांतिकारी चेतना है। शस्त्र बल, अपने बाहुबल से हालत को बदलने वाले परशुराम जी ही है। भगवान् परशुराम जी का क्रोध उनका दोष नहीं, अपितु उनका गुण है, उनकी शोभा है।

परशुराम जी के शिष्य भी अपने समय के जाने माने योद्धा थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण और कर्ण को शिक्षा दी। परशुराम जी अपने समय एक परम साहसी योद्धा थे। आज के समय में केरल में प्रसिद्द मार्शल आर्ट और तमिलनाडु में सिखाई जाने वाली वदक्कन कलरी शैली मार्शल आर्ट के गुरु और संस्थापक परशुराम जी रहे है। वदक्कन कलरी शैली अस्त्र शास्त्र से जुडी युद्ध शैली है।