नवरात्र के प्रथम दिन ऐसे करें कलश और घट स्थापना
By: Future Point | 05-Oct-2018
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पूरे भारत में नवरात्र का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया है। चैत्र मास में शुक्ल प्रतिपदा और आश्विन माह की शुक्ल प्रतिपदा के नवरात्र को प्रमुख माना जाता है, बाकी की दो नवरात्रि गुप्त मानी जाती हैं। आश्विन मास के नवरात्र के दसवें दिन विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस अवसर पर सतसुग में भगवान राम ने रावण का वध किया था और मां दुर्गा के आशीर्वाद से ही उन्होंने रावण को युद्ध में हराया था।
शारदीय नवरात्र तिथि
साल 2018 में शारदीय नवरात्र की शुरुआत 10 अक्टूबर से हो रही है और नवरात्र का समापन 19 अक्टूबर को विजयादशमी पर्व से होगा। नवरात्र के दिनों में श्रद्धालु अपनी इच्छानुसार दो, तीन या पूरे नौ दिनों तक उपवास रखते हैं। नवरात्र के प्रथम दिन ही उपवास का संकल्प लेना चाहिए। उसी तरह संकल्प लें जिस तरह आपको उपवास रखना है। इसके बाद ही घट स्थापना शुरु होती है।
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कलश एवं घट स्थापना की पूजन सामग्री
घट स्थापना के लिए सोने, चांदी या तांबे या मिट्टी के कलश का उपयोग कर सकते हैं। कलश में भरने के लिए शुद्ध अथवा गंगाजल। जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र, जौ बोने के लिए साफ मिट्टी, पात्र में बोने के लिए जौ, आम के 5 पत्ते, पानी का वाला नारियल।
नारियल पर लपेटने के लिए लाल रंग का वस्त्र, पुष्प माला, मोली, इत्र, साबुत सुपारी, दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्के, पंचरत्न, कलश ढकने के लिए ढक्कन, अक्षत।
कलश एवं घट स्थापना की विधि
नवरात्र के प्रथम दिन व्रत का संकल्प लेने के बाद मिट्टी की वेदी बनाएं और उसमें जौ बोएं। इसी वेदी पर कलश की स्थापना की जाती है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पूर्व भगवान गणेश का स्मरण किया जाता है। कलश को भगवान गणेश का ही स्वरूप माना गया है।
कलश की स्थापना करने से पूर्व पूजन एवं स्थापना स्थल को गंगाजल से साफ व पवित्र कर लें। अब सभी देवी-देवताओं का आह्वान करें। कलश में सात तरह की मिट्टी, सुपारी और पैसे रखें। पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। कलश पर लाल रंग के वस्त्र में लिपटा हुआ नारियल भी रखें और उस पर मोली लपेट दें।
मिट्टी की वेदी पर सतनज व जौ बोए जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को पारण के समय काटा जाता है। कलश पर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन करें। इस दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। पाठ करने से पूर्व अखंड ज्योत जलाएं।
नवरात्र के प्रथम दिन मां दुर्गा के पहले रूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस दिन सभी भक्त उपवास रखते हैं और सुबह उपवास करने का संकल्प भी लेते हैं और शाम को मां दुर्गा का पाठ एवं पूजन कर व्रत खोलते हैं।
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मां दुर्गा की चौकी स्थापना
नवरात्र के प्रथम दिन प्रतिपदा तिथि को एक लकड़ी की चौकी या पाटे पर गंगाजल छिड़क कर उसे पवित्र कर लें। अब इसके ऊपर लाल रंग का वस्त्र बिछाएं। चौकी को कलश के दाईं ओर रखें। इसके बाद मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित करें। आप चाहें तो मूर्ति के स्थान पर मां दुर्गा की तस्वीर की पूजा भी कर सकते हैं।
मां दुर्गा को लाल चुनरी चढ़ाएं। अब मां दुर्गा से प्रार्थना करें – हे, मां दुर्गा आप नौ दिन के लिए चौकी पर विराजिए। इसके बाद सबसे पहले माता को दीप, धूप, पुष्प, माला, इत्र, फल और मिठाई चढ़ाकर पूजा करें। नवरात्र के नौ दिनों तक मां दुर्गा की रोज़ सुबह शाम आरती करें।
शारदीय नवरात्र कलश स्थापना मुहूर्त
घट स्थापना तिथि एवं मुहूर्त : 10 अक्टूबर को 6 बजकर 22 मिनट से 7 बजकर 25 मिनट तक
प्रतिपदा तिथि आरंभ : 9 अक्टूबर को 9 बजकर 16 मिनट
प्रतिपदा तिथि का समापन : 10 अक्टूबर को 7 बजकर 25 मिनट
नवरात्र के नौ दिनों को अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है। मां दुर्गा की उपासना और उनकी कृपा पाने के लिए ये अवसर बहुत मंगलकारी होता है। अगर आपकी कोई मनोकामना अधूरी रह गई है तो आप उसकी पूर्ति के लिए नवरात्र के दिनों में मां दुर्गा की पूजा कर सकते हैं। सच्चे मन से की गई पूजा से मां दुर्गा जल्दी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों के सारे दुखों को दूर करती हैं।
कुछ लोग मां दुर्गा के नौ दिनों तक उपवास भी रखते हैं। नवरात्र में कुछ बातों का ध्यान भी रखना जरूरी होता है जैसे कि नवरात्र के दिन बहुत पवित्र माने जाते हैं इसलिए इन दिनों में सहवास एवं शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए। इन दिनों में मांसाहार का सेवन भी नहीं करना चाहिए। अनैतिक कार्यों से दूर रहना चाहिए और झूठ-कपट आदि नहीं करना चाहिए। मां दुर्गा की कृपा पाने के लिए नवरात्र के नौ दिनों में इन बातों का ध्यान रखना अत्यंत जरूरी माना जाता है।